Thursday, June 11, 2015

एक शाम : पाकिस्तान से आधुनिक कवितायेँ - 2


एक शाम

- तसद्दुक़ हुसैन ख़ालिद 

पहाड़ की बुलंदियों से
बढ़ते साए
गिरते आ रहे हैं
शाम की फ़सुर्दगी में
एक सुर्ख डोर सी
झिलमिला रही है
वादियों में
इक उदास रागिनी की गूँज सी लपक गयी
बिरह की आग
नगमा बन कर जाग उठी
उफ़क़ की डोर टूटकर
किसी अमीक़ ग़ार की सियाहियों में खो गयी
उदास रागिनी की गूँज
चीख़ बन कर रह गयी


(फ़सुर्दगी: अवसाद, अमीक़: गहरी, ग़ार: खाई, सियाहियों में: अँधेरे में)

---------

पेशावर पाकिस्तान में १९०० में जन्मे तसद्दुक़ हुसैन ख़ालिद  ने १९२४ में अंग्रेज़ी साहित्य में एमए किया. फिर लन्दन विश्वविद्यालय से पीएचडी. १९३५ में बार-एट-लॉ की उपाधि हासिल करने के बाद वकालत शुरू की. ऐतिहासिक दृष्टिकोण से उन्हें उर्दू का पहला आधुनिक कवि माना जाता है. उनके काम पर एज़रा पाउंड और डी. एच. लॉरेन्स का गहरा प्रभाव दीखता है. 'सुरूदे-नौ' और 'लामकां' संग्रहों में उनकी जो कविताएं संकलित हैं, उनमें उर्दू की आधुनिकता का पता दर्ज़ है. १९७३ में उनका निधन हुआ.

No comments: