तमगे और पोप
भौतिक विज्ञान के अलावा मेरे पिताजी ने एक और बात मुझे सिखलाई ,
पता नहीं यह सही है या नहीं, आदरणीय लोगों ... और कुछ ख़ास चीज़ों का निरादर करना.
मिसाल के लिए जब मैं एक छोटा बच्चा था ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में जब पहली बार तस्वीरें
छपना शुरू हुईं तो वे मुझे अपने घुटनों पर बिठाकर अखबार खोलकर किसी एक तस्वीर को आगे
रख देते और एक दफ़ा पोप की एक तस्वीर थी जिसमें तमाम लोग उनके आगे झुके हुए थे. और
वे बोले – “अब इन इंसानों को देखो. ये एक इंसान खड़ा हुआ है और बाकी सारे इंसान
उसके आगे झुके हुए हैं. अब इनमें फर्क क्या है? ये वाला इंसान पोप है.” उन्हें
वैसे भी पोप से नफरत थी – और वे कहते – “यह तमगों का फर्क है.” यह बात पोप पर तो
लागू नहीं होती थी पर मान लीजिये वह आदमी कोई जनरल होता – तो वह हमेशा अपनी यूनीफॉर्म
में होता, “लेकिन इस आदमी को भी वही इंसानी परेशानियाँ हैं, वह बाकी लोगों की तरह डिनर
खाता है, बाथरूम जाता है, उसे भी बाकी
लोगों जैसी दिक्कतें होती हैं. वह एक इंसान है. लेकिन बाकी लोग उसके आगे झुके हुए
क्यों हैं? उसके नाम और उसके पद के कारण. उसकी यूनीफॉर्म के कारण. इसलिए नहीं कि
उसने कोई बड़ा काम कर दिया है या उसके सम्मान में वे लोग झुके हुए हैं या ऐसी कोई और
बात की वजह से.” इत्तफाकन उनका धंधा
यूनीफॉर्म्स बनाने का था. सो उन्हें मालूम था कि यूनीफॉर्म पहने और बगैर यूनीफॉर्म
के इंसान में क्या अंतर होता है. दोनों मामलों में उनके लिए इंसान एक ही होता था.
मेरा यकीन है वे मुझसे खुश रहते थे. एक बार जब
मैं एम.आई.टी. से वापस आया – मैं वहां कुछ साल रह चुका था – वे मुझसे बोले – “अब
जब कि तुम इन चीज़ों के बारे में पढ़ लिख गए हो, मैं एक सवाल तुमसे पूछना चाहता हूँ
जो मेरी समझ में बहुत अच्छे से नहीं आया है. चूंकि तुम इसका अध्ययन कर
चुके हो मैं चाहूँगा तुम मुझे इसे समझाओ,” मैंने उनसे पूछा कि वे क्या जानना चाहते हैं. वे
कहने लगे कि वे इस बात को समझते हैं कि जब एक अणु एक अवस्था से दूसरी अवस्था में
जाता है तो वह प्रकाश का एक कण बाहर छोड़ता है जिसे फोटोन कहते हैं. मैंने कहा “बिलकुल
ठीक.” तब वे बोले “तो क्या अणु के भीतर का फोटोन उससे बाहर निकलते समय पहले से ही
होता है या शुरू में कोई फोटोन होता ही नहीं.” मैंने जवाब दिया – “उसमें कोई फोटोन
नहीं होता. जब भी एक इलेक्ट्रोन अपनी अवस्था बदल रहा होता है वह बाहर आ जाता है.”
उन्होंने कहा “तो वह आता कहाँ से है? और बाहर कैसे आता है?” सो मैं यह नहीं कह सका
कि “मन यह जाता है कि फोटोनों की संख्या संरक्षित नहीं रहती, वे तो इलेक्ट्रोन की
गति के कारण पैदा होते हैं.” मैं उन्हें ऐसी कोई चीज़ समझाने की कोशिश नहीं कर सकता
था कि – जो आवाज़ मैं अभी निकाल रहा हूँ वह मेरे भीतर नहीं थी. यह ऐसा नहीं था कि
जब मेरा छोटे बेटे ने जब बोलना शुरू किया तो उसने अचानक यह कहा हो कि अब वह एक ख़ास
शब्द को बोल नहीं पा रहा – मिसाल के लिए “बिल्ली” – क्योंकि उसके शब्दों के थैले
में से बिल्ली शब्द ख़त्म हो गया है. तो आपके पास शब्दों का को थेला नहीं होता
जिसके शब्द आपके मुंह से बाहर निकलते हुए कम होते जाते हों; आप उन्हें बनाते चलते
हैं. इसी तरह से अणु के भीतर भी फोटोन का कोई थैला नहीं होता और जब फोटोन बाहर
निकलते हैं तो वे कहीं से नहीं आते. लेकिन मैं इससे बेहतर कुछ कह भी नहीं सकता था.
वे मुझसे इस लिहाज़ से संतुष्ट नहीं हुए कि मैं ऐसी किसी भी चीज़ को उन्हें समझाने
लायक नहीं होता था जो उनकी समझ में नहीं आती थी. सो वे एक असफल इंसान थे, उन्होंने
मुझे तमाम विश्वविद्यालयों में भेजा ताकि वे इन चीज़ों को जान सकें लेकिन वे कभी
नहीं जान सके.
(जारी)
No comments:
Post a Comment