खुद को ढूँढना
-वीरेन डंगवाल
एक शीतोष्ण हँसी में
जो आती गोया
पहाड़ों के पार से
सीधे कानों फिर इन शब्दों में
ढूँढना खुद को
खुद की परछाई में
एक न लिए गए चुम्बन में
अपराध की तरह ढूँढना
चुपचाप गुजरो इधर से
यहाँ आँखों में मोटा काजल
और बेंदी पहनी सधवाएँ
धो रही हैं
रेत से अपने गाढ़े चिपचिपे केश
वर्षा की प्रतीक्षा में
- १८ फरवरी २०१३
एक शीतोष्ण हँसी में
जो आती गोया
पहाड़ों के पार से
सीधे कानों फिर इन शब्दों में
ढूँढना खुद को
खुद की परछाई में
एक न लिए गए चुम्बन में
अपराध की तरह ढूँढना
चुपचाप गुजरो इधर से
यहाँ आँखों में मोटा काजल
और बेंदी पहनी सधवाएँ
धो रही हैं
रेत से अपने गाढ़े चिपचिपे केश
वर्षा की प्रतीक्षा में
- १८ फरवरी २०१३
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