मेरठ में रहनेवाले अनुराग आर्य पेशे से डॉक्टर हैं और हिन्दी ब्लॉगिंग की शुरुआत से ही बहुत शानदार ढंग से लगातार अपनी उपस्थिति बनाए हुए हैं. उनके लेखन का मैं फैन हूँ.
प्रशांत प्रियदर्शी ने आज उनका एक स्टेटस शेयर किया है. मैं भी कर रहा हूँ.
अनुराग आर्य |
आपकी देशभक्ति हिलोरे मारती है, बात-बात पर आपका खून उबलता है, शहीदों को अक्सर आप याद करते रहते है. पर आपका कोई बच्चा आर्मी या पैरामिलटरी फ़ोर्स ज्वाइन
नहीं करता. वो या दूकान
पर बैठता है या सहूलियत की कोई नौकरी लेता है. अजीब इत्तेफ़ाक़ है पिछली कई पीढ़ियों से आपके यहाँ
से किसी के अंदर सेना में जाने की इच्छा नहीं हुई, न आपके मोहल्ले से, न आपके गाँव से!
आप देशभक्त हैं. इन दिनों ज़रा-ज़रा सी बात पर बॉईलिंग पॉइंट को आपका खून टच करता रहता है. बाहर नौकरी का मौका मिलते ही आप दो सेकण्ड सोचने में नहीं लगाते, कागजात इकट्ठे करने के जुगाड़ में लगते हो. "अपॉरचुनिटी अच्छी है " का डायलॉग आप अपने बूढ़े माँ-बाप और रिश्तेदारों से शेयर करते हो, पर चार साल बाद बैंगलोर, नोएडा, हैदराबाद, मुंबई, गुड़गांव से अच्छी सैलरी की ऑफर के बाद भी आप वापस नहीं आना चाहते. “नहीं यार, ‘क़्वालिटी ऑफ़ लाइफ़’ नहीं है" कहीं यारों से कहते हो. बहुत बार पर्स्यू करने पर "नहीं यार वो नहीं आना चाहती" कहकर आप शील्ड ले लेते हो.
अपनी गिल्ट आप भारत आये किसी नेता के सांस्कृतिक कार्यकर्म में तिरंगे कलर का कुर्ते पजामा पहनकर काम करते हो या इण्डिया के किसी क्रिकेट मैच में अपने फेस पर ट्राइकलर लगाकर.
रात को फेसबुक पर आप जे एन यू की सब्सीसीडी बंद करने को सपोर्ट का हैशटैग करते हो.
पता नहीं आपके इंस्टीट्यूट की सब्सिडी की भरपाई कौन करेगा.
आप की देशभक्ति और धर्म पिछली अप्रैल से सेंसिटिव हो गए है. बात-बात पर आपको धर्म याद आता है. धर्म से राष्ट्रप्रेम.
आपसे पूछा जाता है अथर्ववेद और ऋग्वेद में अंतर क्या है तो आपको पानी की प्यास लगने लगती है.
गायत्री मन्त्र लिखने को कहा जाये तो आपसे लिखा नहीं जाता अर्थ पूछने पर आप गूगल करते हो.
जतिन दास कौन थे ये आपके लिए मुश्किल प्रश्न है.
आप ही इन दिनों सबसे बड़े राष्ट्रप्रेमी है और धर्म के लम्बरदार हैं!
5 comments:
हैकिंग ऑफ एथिक्स है... :)
फर्ज कीजिए कि एक आदमी ऐसा आए जिसके परिवार के हर पीढ़ी में कम से कम एक सदस्य सेना में ही जाता रहा है, आज तक पांच सात शहीद दिए हैं, गायत्री मंत्र से लेकर ऋग्वेद जानता है, और बणिए की दुकान करने के साथ समाज सेवा के लिए कुछ लाख रुपए दान कर चुका है...
क्या उसे जेएनयू का चांसलर बना दिया जाएगा... ???
मोरल बार हाई कर देने से अनैतिक कार्यों को जायज नहीं ठहराया जा सकता।
बात जेएनयू की सब्सिडी की नहीं, अकाउंटेबिलिटी की है... :)
बेहद लाजवाब
सॉलिड बात.. यही है
वो देशद्रोह के बारे में जजमेंटल हो रहे हैं और हम उनकी देशभक्ति के बारे में। ये जजमेंटल होने का काम हम जज साहब पर क्यों नहीं छोड़ पा रहे?
कुछ हम जैसे लोग भी हैं जो बहुत कोशिश करने के बाद भी सेना में नहीं जा पाये, कहने में कोई शर्म नहीं कि अयोग्य थे, पर कहीं न कहीं योग्य थे, पर फिर भी इसका मतलब यह तो नहीं कि हम देशभक्ति नहीं दिखा पा रहे हैं, हम देशभक्त नहीं हैं। देशभक्ति शौक नहीं है, देशभक्ति एक दिल से उपजने वाला अहसास है, जैसे बीज पौधा बनता है वैसे ही बालक के अहसासों को पालन पोषण करना पड़ता है और देशभक्ति का बीज बोना पड़ता है।
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