Wednesday, February 10, 2016

ये चकड़ैतों की जमात है दिदा - राज्यगीत के बहाने कुछ बातें


बीते लम्बे समय से उत्तराखंड का राज्य गीत तैयार किये जाने के लिए तमाम लोग अथक प्रयास कर रहे थे. संयोगवश मैं गीत निर्माण कमेटी के सदस्यों को भी जानता हूँ और शानदार कुमाऊनी कवि हेमंत बिष्ट को भी जिनका लिखा गीत अंततः हमारे राज्य का राज्यगीत  चुना गया. हेमंत दा को इस उपलब्धि के लिए बधाई. अलबत्ता उत्तराखण्ड डॉट कॉम से लिया गया मनु पंवार का यह आलेख इस गीत के बहाने कई अति महत्वपूर्ण सवालों को छूता है और एक बार सलीके से पढ़े जाने की दरकार रखता है.  
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दिदासुना है बल कि तुम्हारे मुलुक की सरकार ने राज्य गीत तैयार कर लिया है ! भै, हमारी समझ में लेकिन ये बात नहीं आई कि आखिर वे कौन लोग हैं जिन्हें उत्तराखण्ड के राज्य गीत की जरूरत है? वे कौन हैं जो राज्य गीत के लिए मरे जा रहे थे? जरा हमको भी तो बिंगाओ कि ये राज्य गीत होता क्या है? जिस मुलुक में राजनीति, नौकरीशाही से लेकर मीडिया तक सब प्रशस्ति गान में जुटे हों, वहां प्रशस्ति के लिए अलग से राज्य गीत की ज़रूरत भला क्यों आन पड़ी?

आखिर वे कौन लोग हैं जिसे राज्य गीत की सबसे ज्यादा जरूरत है? वे कौन हैं जिनका निवाला राज्य गीत के बगैर हलक से नीचे नहीं उतर पा रहा था या जो सुबह-सुबह नित्यकर्म से निवृत्त नहीं हो पा रहे थे? ज़रा हमें भी तो बताओ कि क्या बगैर राज्य गीत के उन्हें उत्तराखंड से नीचे नहीं उतर पाने में दिक्कत महसूस हो रही थी? क्या उन्हें नजीबाबाद, मुजफ्फरनगर या मुरादाबाद में यूपी की पुलिस नाका लगाकर रोक दे रही थी? क्या राज्य गीत न होने के चलते देहरादून, हरिद्वार या हल्द्वानी में किसी को ट्रेन से टीटी ने धक्के मारकर बाहर फेंकवा दिया था या जॉलीग्राउंट हवाई अड्डे पर एयरपोर्ट अथॉरिटी वालों ने किसी को विमान पर चढ़ने नहीं दिया? क्या अल्मोड़ा के नैनसार में जिंदल के बाउंसरों ने स्थानीय लोगों को इसलिए पीटा कि हमारे लोगों के पास अपना राज्य गीत नहीं था? क्या पिछले पंद्रह बरस से उत्तराखंड की दुर्गति की वजह इसका राज्य गीत न होना था? क्या अब राज्य गीत तैयार हो जाने के बाद से उत्तराखंड का भाग्य बदल जाएगा?
दिदा, जरा ढंग से बिंगाओ भै. हमारी बुद्धि में कुछ घुस नहीं पा रहा है. वे कौन हैं जिन्हें अपना राज्य गीत न होने का कॉम्पलेक्स था? पड़ोस का हिमाचल तो पिछले छह दशक से बिना राज्य गीत के है. आखिर हम अपना कामधाम छोड़कर राज्य गीत के लिए इतने आतुर क्यों थे? ये चकड़ैतों की जमात है दिदा. राज्य गीत के लिए जैसी उत्तराखंड की अपनी बोलियां गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी ख़ारिज कर दी गईं, कल तो सियासतदां इसी तरह की दलील देकर गैरसैंण को भी ख़ारिज कर देंगे.
भै दिदा, तुम्हारे हरदा की प्राथमिकतायें क्या हैं, ये समझ में नहीं आ रहा है. एक राज्य जहां सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा, रोजगार और ज़मीन को बचाने की फिक्र मुंह बाए खड़ी है, वहां की सरकार के लिए राज्य गीत इतना बड़ा मसला कैसे हो गया? आखिर राज्य गीत के आकांक्षी कौन हैं? पहाड़, नदियां, हिमालय, हवा, पानी, जीवन, ज़मीन इस उत्तराखंड की खास पहचान हैं. इन पहचानों को धनकुबेरों के पास गिरवी रखकर आखिर हमारे मुखिया राज्य गीत किसे सुनाना चाहते हैं? ख़बरदार, कहीं यह राज्यगीत हमारे कौथिगेर मुख्यमंत्री का गुप्त हथियार तो नहीं? हमें राज्य गीत की धुन में मगन करके कहीं वो हमें हमारी ज़मीन से बेदखल करने की साज़िश तो नहीं रच रहे? कहीं ऐसा तो नहीं कि चाय बागानों को रौंदकर स्मार्ट सिटी बनाने के लिए राज्य गीत ज़रूरी हो? भै दिदा, ये चंट लोग हैं. इनकी नीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है. तुम होशियार रहना रे!

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

किसे होशियार रहना है? यहाँ सभी होशियार हो चुके हैं । राज्य बनने से अब तक । अब किसी को होशियार बनाने की जरूरत कहाँ है । जिस राज्य में एक गधा छाँट कर उससे एक ही खेत जोता जाता है जिसमें पक्ष और विपक्ष दोनों हल जोतने वाले को आशीर्वाद देते हैं इससे बड़ा लोकतंत्र और कहाँ मिलेगा रे ।