नज़ीर अकबराबादी का बसन्त – 1
आने को आज धूम
इधर है बसंत की
कुछ तुमको मेरी जान ख़बर है बसंत की.
होते हैं जिससे ज़र्द ज़मीं-ओ-ज़मां तमाम
ऐ महर तलअतो वह सहर है बसंत की.
लचके है ज़र्द जामा में खूबां की जो कमर
उसकी कमर नहीं वह कमर है बसंत की.
जोड़ा बसंती तुमको सुहाता नहीं ज़रा
मेरी नज़र में है वह नज़र है बसंत की.
आता है यार तेरा वह हो के बसंत रू
तुझ को भी कुछ 'नज़ीर' ख़बर है बसंत की.
कुछ तुमको मेरी जान ख़बर है बसंत की.
होते हैं जिससे ज़र्द ज़मीं-ओ-ज़मां तमाम
ऐ महर तलअतो वह सहर है बसंत की.
लचके है ज़र्द जामा में खूबां की जो कमर
उसकी कमर नहीं वह कमर है बसंत की.
जोड़ा बसंती तुमको सुहाता नहीं ज़रा
मेरी नज़र में है वह नज़र है बसंत की.
आता है यार तेरा वह हो के बसंत रू
तुझ को भी कुछ 'नज़ीर' ख़बर है बसंत की.
1 comment:
बहुत सुंदर
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