Sunday, July 10, 2016

उन लफ़्ज़ों में टूट कर जुड़ जाने से मोहब्बत नहीं रह जाती

कौन शायर रह सकता है
-अफ़ज़ाल अहमद सैय्यद


लफ़्ज़ अपनी जगह से आगे निकल जाते हैं 
और ज़िंदगी का निज़ाम तोड़ देते हैं 

अपने जैसे लफ़्ज़ों का गठ बना लेते हैं 
और टूट जाते हैं 
उन के टूटे हुए किनारों पर 
नज़में मरने लगती हैं
लफ़्ज़ मरने लगती हैं 
लफ़्ज़ अपनी साख़्त और तक़दीर में 
कमज़ोर हो जाते हैं 
मामूली शिकस्त उन को ख़त्म कर देती है
उन में
टूट कर जुड़ जाने से मोहब्बत नहीं रह जाती 
इन लफ़्ज़ों से
बदसूरत और बेतरतीब नज़में बनने लगती हैं 

सफ़्फ़ाकी से काट दिए जाने के बाद 
उन की जगह लेने को 
एक और खेप आ जाती है 

नज़मों को मर जाने से बचाने के लिए
हर रोज़ उन लफ़्ज़ों को जुदा करना पड़ता है
और उन जैसे लफ़्ज़ों को हमले से पहले 
नए लफ़्ज़ पहुँचाने पड़ते हैं

जो ऐसा कर सकता है 
शायर रह सकता है

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