डॉक्टर सुभाष को
सलाम
- सैयद
मोहम्मद इरफ़ान
किंग जॉर्ज
मेडिकल कॉलेज, लखनऊ से 1969 में MBBS करने के बाद डॉक्टर नरेश त्रेहन अमरीका
चले गए और उनके साथ पढ़े डॉक्टर सुभाष चन्द्र दुबे गुरुसहायगंज.
गुरसहायगंज कन्नौज जिले का एक छोटा सा क़स्बा है जो जीटी रोड पर दिल्ली से क़रीब 300 किमी और कानपुर से 100 किमी दूर है. क़रीब 25 साल तक जनरल फीजीशियन डॉक्टर सुभाष ने गुरुसहायगंज और आसपास के प्रायमरी हेल्थ सेंटर्स में सरकारी नौकरी की और आखिरकार 1994 में वीआरएस लेकर वे अब गुरसहायगंज में प्रायवेट प्रैक्टिस करते हुए स्थायी रूप से रहते हैं.
डॉक्टर सुभाष
ने अपने लंबे क्लीनिकल अनुभव और लोगों के लिए सेवाभाव से इलाक़े में जो ख्याति
अर्जित की है, उसकी
मिसाल मिलना मुश्किल है.
1950 से 1970 के दौरान पूरे फर्रुखाबाद जिले में चिकित्सा सुविधाएं न के बराबर थीं.
यहां बमुश्किल 3 डॉक्टरों पर इलाक़े की जनता इलाज के लिए
निर्भर थी. इनमें डॉक्टर पी एन टंडन और डॉक्टर मोहनलाल प्रमुख थे. इन डॉक्टरों की
दो मान्यताएं प्रमुख थीं - एक तो यह कि आप पैसे के पीछे मत भागिए, आप सेवा कीजिये पैसा खुद ही आपके पीछे भागेगा. और दूसरी यह कि आप अधिक से
अधिक सीरियस होकर काम कीजिये दूसरों की सेवा के लिए, क्योंकि
आराम करके मरना है और काम करके भी मरना है. इन डॉक्टरों से मिली यह सीख डॉ सुभाष
ने अपने जीवन में गांठ की तरह बांध ली और काम शुरू किया. डॉक्टर मोहनलाल उनके सगे
ताऊ थे जिनके बारे में कहा जाता है की छिबरामऊ में वो अपनी मृत्यु के ठीक पहले तक
मरीज़ देखकर ही उठे थे.
डॉक्टर सुभाष
पिछले लगभग 50 बरसों से
इलाक़े की जनता के बीच लगातार प्रैक्टिस करते हुए यहां के गरीब, मेहनतकश और मामूली लोगों के जीवन में एक अनिवार्य उपस्थिति हैं. लोगो का
विश्वास है कि अगर कोई बीमारी जगह-जगह दौड़ने पर भी ठीक न हो तो डॉक्टर सुभाष ही
आख़िरी सहारा हैं. उनके अपने घर और नर्सिंग होम पर सुबह से लेकर देर रात तक मरीजों
की कतारें लगी रहती हैं और इनमें से वो लोग खुद को सौभाग्यशाली समझते हैं जिन्हें
डॉक्टर देख लेते हैं. बेहद नाउम्मीद होकर आए मरीज भी डॉक्टर का स्पर्श पाकर नया
जीवन पाते हैं और उनके रिश्तेदार यही मानते हैं कि मरने से पहले डॉक्टर सुभाष एक
अंतिम पड़ाव हैं.
डॉक्टर सुभाष
को बिना थके 12 से 14 घंटे रोज काम करते देखना किसी को भी हैरान कर देनेवाला है. यह काम वो
अपने किसी निजी लाभ और व्यवसाय के लिए नहीं बल्कि पूरी तरह सेवा और समर्पण के भाव
से करते हैं.
सुभाष नर्सिंग
होम में कदम रखते ही आपको यह पता चल जाता है कि यह एक अस्पताल नहीं बल्कि भरोसे की
जगह ज़्यादा है. जहां मरीज को इलाज करा सकने का बल मिलता है. पहली नजर में यह
नर्सिंग होम आपके लिए एक शॉक की तरह लगेगा क्योंकि यहां ऐसा कुछ भी नही है जो आपके
देखे किसी नर्सिंग होम से मेल खाता हो. लकड़ी की बेंचें और तखत यहां मरीजों के
तीमारदारों और खुद मरीजों के लिए बिछे हैं. एक डिस्पेंसरी है, एक्स रे की मशीन और प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की अधखुली बोरियां वगैरह. दो तीन कम्पाउंडर दवा और दूसरी
जरूरतों के लिए तीन शिफ्टों में काम करते हैं. बीच का अहाता जहां हाल ही में शेड
पड़ गया है, पहले खुला हुआ ही था, यहां
मरीज छाते लेकर बारिश या धूप में खड़े रहते थे. अस्पताल में बीड़ी-सिगरेट पीने या
पान-गुटखा खाने और थूकने की आज़ादी भी एक ऐसा जनतांत्रिक स्पेस रचती है जिससे इस
पूरी दुनिया के साथ आत्मीय रिश्ता बन जाता है. यह एक ऐसी जगह है जहां आना किसी भी
तरह से डराने वाला अनुभव नहीं है. न डॉक्टर, न स्टाफ,
न फीस और न ही माहौल ऐसा है कि डर लगे. अपने साथ अपना ओढ़ना-बिछौना
और चना-चबेना लाकर इलाज कराना जैसे घर में ही इलाज कराने का दूसरा नाम है. ऊपर से
डॉक्टर ऐसा जो सिर्फ इलाज ही नहीं करेगा बल्कि बेहद अपनापे से पेश भी आएगा.
डॉक्टर सुभाष
आज दूर-पास के मरीजों के लिए ईश्वर जैसी आस्था का केन्द्र हैं और उनके बारे में
यहां के लोगों के बीच कई तरह की किंवदंतियां मशहूर हैं. डॉक्टर सुभाष का सबसे छोटा
पुत्र खुद एक कुशल दन्त चिकित्सक है और दिल्ली में कार्यरत है. पिता के समर्पण और
सेवाभाव से प्रेरित वह खुद भी हफ्ते में दो दिन अपने पिता के नर्सिंग होम में अपनी
सेवाएं देने के लिए हाजिर हो जाता है.
लोगों को
विशवास है कि जब तक डॉक्टर सुभाष जीवित हैं तब तक उनके जीवन में स्वस्थ हो सकने की
उम्मीद ज़िंदा है.
खुद डॉक्टर
सुभाष दो बातों पर पक्का विशवास रखते हैं - एक तो यह कि अपने से ऊपर जाने का
लक्ष्य रखो और अपने से ऊंचे जाने की हमेशा तमन्ना रखो. और दूसरी यह कि अपने से
नीचे देख कर सैटिस्फाइड रहो. जन-जीवन में व्याप्त यह विशवास ही उन्हें जीवनी शक्ति
देता है कि लोग तीन लोगों की दक्षिणा कभी नहीं रोकते - एक तो मल्लाह, दूसरा गुरु और तीसरा वैद्य.
डॉक्टर सुभाष
इलाज के दौरान फीस और दवाइयों का फैसला अपने मरीजों की आर्थिक और सामाजिक हैसियत
से काटकर कभी नहीं करते और यही बात उन्हें विशाल जन समूह का पारिवारिक डॉक्टर
बनाती है.
देश के अनेक
ऐसे इलाक़े स्वास्थ्य की सुविधाओं से वंचित होकर भी संजीवनी पा रहे हैं तो इसमें
डॉक्टर सुभाष जैसे समर्पित और कुशल डॉक्टरों का निस्वार्थ जीवन ही प्रमुख रोल
निभाता है जिन्होंने लोभ और व्यक्तिगत लाभ के सामने अपने लोगों की भलाई को
प्रमुखता दी है.
यही कारण है
कि पिछले हफ्ते अपने ही सहपाठी के अस्पताल मेदांता से अपने पैर का सफल ऑपरेशन
कराकर लौटे डॉक्टर सुभाष का स्थानीय जनता ने गर्म जोशी से स्वागत किया.
1 comment:
नमन।
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