वर्षा
में भीगकर
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इब्बार रब्बी
वर्षा
में भीगकर
सहज
सरल हो गया,
गल
गईं सारी क़िताबें
मैं
मनुष्य हो गया.
खाली-खाली
था
जीवन
ही जीवन हो गया,
मैं
भारी-भारी
हल्का-हल्का
हो गया.
बरस
रही हैं बूंदें
इनमें
होकर
ऊपर
को उठा
लपक
कर तना
पानी
का पेड़
आसमान
हो गया
वर्षा
में भीगकर
मैं
महान हो गया.
[1980]
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