उत्तराखंड
के पिथौरागढ़ जिले की सीमान्त व्यांस घाटी से होकर कैलाश-मानसरोवर का आधिकारिक रास्ता
गुज़रता है. युवा पत्रकारों - रोहित जोशी और उमेश पन्त - ने कुछ साल पहले व्यांस घाटी में
एक साहसिक यात्रा की थी. उस यात्रा के संस्मरण उमेश पन्त पहले ही एक पुस्तक के रूप
में प्रकाशित करवा चुके हैं. इसके कुछ अंश कबाड़खाने में हमने छापे भी थे. आज उसी
यात्रा से रोहित जोशी एक छोटा सा संस्मरण सुना रहे हैं.
ओम
पर्वत पर स्टालिन
-रोहित
जोशी
तेज़
बर्फीली हवाओं से घिरा नाभीडांग! मनमोहक वनस्पति को हम काफी नीचे छोड़ आए हैं. अब
जो है वो गहरी काली चट्टानें हैं या झक्क सफेद बर्फ. उसके अलावा बुग्याल की चरी जा
चुकी घास की कतरनें कुछ-कुछ जगहों पर हरा रंग फेरती हैं. तिब्बत कह लें या चीन, के साथ सरहद बनाता लिपुलेख
दर्रा यहां से महज 14 किमी के पैदल रास्ते पर है. यहां कैलास
मानसरोवर यात्रा के भारतीय हिस्से का अंतिम पड़ाव है. इसके बाद यात्रा लिपुलख
दर्रे से गुजरती है और तिब्बत में प्रवेश करती है.
यहीं
से दिखता है ठीक सामने एक विशाल पर्वत पर 'ॐ'(ओम का विहंगम आकार! यह
एकदम जबरदस्त है! कोई शक नहीं! बिल्कुल ओम! आश्चर्य, आपकी
नज़रों से चूने लगता है और दिमाग़ पहेलियां गढ़ने और बुझाने की ज़द्दोज़हद में
मशगूल हो जाता है.
भारतीय
उपमहाद्वीप में जन्मे कई धर्मों के लिए 'ॐ' एक पवित्र शब्द और ध्वनि
है. इसके सटीक ऐतिहासिक साक्ष्यों का पता लगाना बहुत मुश्किल है कि यह शब्द कब और
कैसे भारतीय जनमानस की चेतना के साथ जुड़ा होगा? या यह कि
क्या हिंदू धार्मिक वांग्मय में इस पर्वत की नकल से ही 'ॐ'
शब्द को जोड़ा गया या फिर यह वहां पहले आया और बाद में संयोग से इस
पर्वत में भी दिखाई दिया और चमत्कार माना गया. बहरहाल आश्चर्य का प्रश्नवाचक आपकी
निगाहों में तैरता रहता है.
आइए! नाभीडांग में खड़े होकर अब हम ओम पर्वत से
दाहिनी ओर अपनी निगाहें घुमाते हैं. अरे ये क्या? एक और दिलचस्प आकृति! फिर एक आश्चर्य! इस
पहाड़ में तो जैसे यह तो कोई आदमी है! जैसे कोई सैनिक. रौबीली मूंछें और मोटा फौजी
लबादा ओढ़े कोई सैनिक अफ़सर. और अगर आप मोटा रूसी सैन्य ओवरकोट पहने रूसी कम्युनिस्ट नेता स्टैलिन के उस मशहूर पोर्टेट से
वाकिफ़ हैं तो आप तुरंत चहक उठेंगे, ''अरे हां! यह तो वही है, सु/कु—विख्यात स्टैलिन!'' अब इस पर्वत को आप 'स्टैलिन पर्वत' कह सकते हैं। चलिए रूसियों और
कम्युनिस्टों से परहेज़ हो तो इसे एक भारतीय जाबांज सैनिक कह दीजिए जो कि चीनी
सरहद पर आक्रमणकारियों से हमारे देश को बचाने के लिए तैनात खड़ा है. या फिर कुछ और
ही ही कह दीजिए. यह सब आपकी कल्पनाओं पर निर्भर है.
हिमालय
में गहरे उतरते, कठोर
चट्टानों और बेतरतीब फैली बर्फ के बीच ऐसी अनगिनत संरचनाएं हैं, जिनमें आप अपनी कल्पनाओं को उड़ान भरने के लिए खुला छोड़ सकते हैं. आप कई
बार इनमें अपनी जानी-पहचानी कुछ आकृतियों को खोज निकालते हैं और फिर आश्चर्यचकित
होते हैं. हालांकि, यह केवल एक संयोग होता है, जैसे यहां, ''ॐ' पर्वत'
भी और स्टैलिन भी. हिमालय अपने इन खूबसूरत नज़ारों के
साथ, धार्मिक
और प्रकृतिप्रेमी दोनों ही किस्म के यात्रियों का स्वागत कर रहा है.
चीन
की सरहद की तरफ बढ़ती, उबड़-खाबड़
पगडंडियों में कई यात्राएं पसरी हुई हैं. उनकी कई कहानियां हैं. यहां नाभीडांग तक
और वापस गुंजी लौटकर आदि कैलाश तक की हमारी इस यात्रा में भी कई और भी कहानियां
हैं. कभी धीरे-धीरे खुलेंगी. अभी इतना ही.
1 comment:
बढ़िया।
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