फिल्म अभिनेता इरफ़ान खान ने राष्ट्रीय और
अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा में अपने लिए एक अलग स्थान बनाया है. वे हमारे उपमहाद्वीप
के सबसे प्रतिभावान और वर्सेटाइल कलाकार हैं. दुर्भाग्यवश कुछ दिन पूर्व उन्हें एक
खतरनाक बीमारी ने घेर लिया है जिसका इलाज वे फिलहाल लन्दन में करवा रहे हैं. वहां
से भेजे एक उन्होंने पत्र भेजा है जो सोशल मीडिया पर पिछले कुछ दिनों से चर्चा में
बना हुआ है. मनुष्य के अथाह जीवट और सादगी से भरे जीवनदर्शन की बानगी देता यह छोटा
सा पत्र इरफ़ान को मनुष्यता एक अलग स्तर पर पहुंचा देता है. अग्रज आशुतोष बरनवाल के
आग्रह पर इस का अनुवाद यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है -
काफ़ी समय बीत चुका जब मुझे हाई-ग्रेड
न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर बताया गया था. यह मेरे शब्दकोश में एक नया नाम है. मैं अब
एक प्रयोग का हिस्सा बन चुका था. मैं एक अलग गेम में फंस चुका था. तब मैं एक तेज
ट्रेन राइड का लुत्फ उठा रहा था, जहां मेरे सपने थे, प्लान थे, महत्वकांक्षाएं थीं, उद्देश्य था और इन सबमें मैं पूरी तरह से अस्त-व्यस्त
था. … और अचानक किसी ने मेरे कंधे को थपथपाया और मैंने मुड़कर देखा. वह टीसी था, जिसने कहा, ‘आपकी मंजिल आ गई है, कृपया उतर जाइए.’ मैं हक्का-बक्का सा था और सोच रहा
था, ‘नहीं नहीं, मेरी मंजिल अभी नहीं आई है.' उसने कहा, 'नहीं, यही है.'
जिंदगी कभी-कभी ऐसी ही होती है. इस
आकस्मिकता ने मुझे एहसास कराया कि कैसे आप समंदर के तेज तरंगों में तैरते हुए एक
छोटे से कॉर्क की तरह हो! और आप इसे कंट्रोल करने के लिए बेचैन होते हैं.
तभी मुझे बहुत तेज दर्द हुआ, ऐसा लगा मानो अब तक तो मैं सिर्फ दर्द को
जानने की कोशिश कर रहा था और अब मुझे उसकी असली फितरत और तीव्रता का पता चला. उस
वक्त कुछ काम नहीं कर रहा था, न किसी तरह की सांत्वना, कोई प्रेरणा … कुछ भी नहीं. पूरी कायनात उस वक्त आपको एक सी नजर आती है -
सिर्फ दर्द और दर्द का एहसास जो ईश्वर से भी ज्यादा बड़ा लगने लगता है.
जैसे ही मैं हॉस्पिटल के अंदर जा रहा था
मैं खत्म हो रहा था, कमजोर पड़ रहा था, उदासीन हो चुका था और मुझे इस चीज तक का
एहसास नहीं था कि मेरा हॉस्पिटल लॉर्ड्स स्टेडियम के ठीक ऑपोजिट था. क्रिकेट का मक्का जो मेरे
बचपन का ख्वाब था. इस दर्द के बीच मैंने विवियन रिचर्डस का पोस्टर देखा. कुछ भी
महसूस नहीं हुआ, क्योंकि अब इस दुनिया से मैं साफ अलग था.
हॉस्पिटल में मेरे ठीक ऊपर कोमा वाला वार्ड था.
एक बार हॉस्पिटल रूम की बालकनी में खड़ा
इस अजीब सी स्थिति ने मुझे झकझोर दिया. जिंदगी और मौत के खेल के बीच बस एक सड़क है, जिसके एक तरफ हॉस्पिटल है और दूसरी तरफ
स्टेडियम. न तो हॉस्पिटल किसी निश्चित नतीजे का दावा कर सकता है न स्टेडियम.
इससे मुझे बहुत कष्ट होता है. दुनिया में केवल एक ही चीज निश्चित है और वह है
अनिश्चितता. मैं केवल इतना कर सकता हूं कि अपनी पूरी ताकत को महसूस करूं और अपनी
लड़ाई पूरी ताकत से लड़ूं.
1 comment:
इरफान की लड़ाई में विजय होवे यही मंगलकामनाएं हैं।
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