Thursday, September 27, 2007

बदरीकाका 2

गोपाल के जापान जाने या ना जाने से थान सिंह को तो बहुत फर्क नहीं पड़ा लेकिन गोपाल की जापान यात्रा के तमाम किस्सों को उसके नए चेलों ने सारे शहर को सुनाया और दम ठोक कर घोषणा की कि बदरी काका की गप्पें अब पुराने जमाने कि बातें हो चुकी हैं।

गोपाल के जापान हो आने की खबर को बदरी काका ने बहुत गम्भीरता से नहीं लिया। भीतर ही भीतर वे जानते थे कि गोपाल हद से हद हल्द्वानी काठगोदाम तक गया होगा लेकिन था तो वो उनका चेला ही।

काका ने अपने एक पहचान वाले से कहकर गोपाल तक यह संदेसा भिजवाया कि काका उस से मिलना चाहते हैं और यह भी कि वे गोपाल कि तरक्की से बहुत खुश हैं।

शाम को गोपाल, थान सिंह को साथ रानीधारा बदरी काका के डेरे पहुंचा। बदरी काका के चेहरे पर देवताओं जैसी शांति थी।

"सुना तू जापान हो आया बल रे"

"हाँ कका ऐसे ही मौका लगा एक राउंड मार आया।"

"कुछ खास देखा या ऐसे ही वापिस आ गया?"

"बाक़ी तो क्या होने वाला हुआ कका सब साले एक जैसे दिखने वाले हुए। मूंछ हूँछ किसी की ठहरी नही। बस एक फैक्ट्री देखी अजब टाईप की। मैं तो देखता ही रह गया कका। हुए साब ... हुए जापानी गजब लोग।" आखिरी वाक्य बोलते हे उसने थान सिंह की तरफ देखा। यह वाली गप्प उसने खास काका को नीचा दिखाने को बचा रखी थी।

"बता, बता। मैं तो पता नहीं कब से ये अल्मोड़ा से बाहर नही गया यार। अब तुम जान जवान लोग ही हुए बाहर जा सकने वाले।"

"मैं ऐसे ही निकल रहा था कितौले जैसे खा कर एक होटल से। मैंने होटल वाले से पूछा कि यार यहाँ खास क्या है तुम्हारे जापान में देखने लायक। तो ... वो बोला कि हमारे यहाँ एक फैक्ट्री देखने की चीज़ है। शाम को मैंने वापिस आना था सोचा देख आता हूँ साले को ।"

भरपूर आत्मविश्वास अपने चहरे पर लाकर गोपाल ने बताना शुरू किया: "फैक्ट्री को बाहर ह्ज्जारों बकरे बांधे हुए ठहरे साब । ख़ूब नहा धो के तैयार। मैंने सोचा इन साले बानरों का कोई त्यौहार जैसा हो रहा होगा। किसी गोल गंगनाथ टाईप देवता के थान में बलि होने वाली होगी। बकरे भी बिल्कुल चुप्प ठहरे जैसे स्कूल जा रहे होंगे। अब टिकट हिकट लेके मैं घुसा फैक्ट्री में।"

थान सिंह कभी अपने बचपन के सखा को देखता था कभी बिल्कुल शांति से सुन रहे बदरी काका को.


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