Wednesday, October 10, 2007

मंगलेश डबराल का गाना


कबाड़ी जब बोलता है, तब गाता ही होता है. ज़ाहिर है कि जब गाता है तो अपनी उसी तरंग का विस्तार कर रहा होता है.
सुनिये एक श्रेष्ठ कबाड़ी का गाना.







यह एक रिकॉर्डिंग का हिस्सा है, जो मैंने मंगलेश जी के घर पर की थी.

2 comments:

शिरीष कुमार मौर्य said...

इरफान भाई प्रणाम।
मंगलेश दा की आत्मा में जो संगीत है उसे हम सब तक पहुंचाने पर प्यार के अलावा और क्या दिया जा सकता है आपको और खुद मंगलेश दा को भी।
आप दोनों को प्यार और सलाम।

आशुतोष उपाध्याय said...

मंगलेश जी की गायकी के बारे में सुना भर था। आपने कानों तक पहुंचा कर धन्य कर दिया। शुक्रिया।