हमारी ख़ुशक़िस्मती है कि लखनऊ में रहने वाले, पायनियर से जुड़े अनिल यादव जिनके ब्लॉग 'हारमोनियम' की सर्वत्र चर्चा है, आज से कबाड़ी बन गए हैं. ग़ौर किया जाए कि 'हारमोनियम' का पहला आधिकारिक विज्ञापन हमने ही लगाया था. बेहद धारदार गद्य लिखने वाले अनिल यादव अपनी मूल प्रकृति में कवि हैं. आवारगी के कीर्तिमान वे पुराने दिनों में रच चुके होंगे, उनके साथ टेलीफ़ोन पर हुईं कुछ पारलौकिक मुलाक़ातों के बाद ऐसा मेरा अपना पुख़्ता क़यास है. मीर तक़ी मीर के एक शेर को दोहराने की भरपूर इच्छा हो रही है सो मैं वैसा कर ले रहा हूं:
आज हमारे घर आया तू, तुझ पे जान निसार करें
इल्ला खेंच बग़ल में तुझको, देर तलक हम प्यार करें
कुछ ही घन्टों पहले लिखी गई अनिल यादव की एक अर्धसॉनेट* के साथ उनकी भाषा की एक बानगी देता हुआ मैं सारे कबाड़ी-कुनबे की तरफ़ से उनका ख़ैरमकदम करता हूं :
स्नैक्स के बतौर रिल्के के सॉनेट के छिल्के
काश कहीं से रम मिल जाए
और चने भी थोड़े
मेरी नसों में उड़ने लगते
इंद्रजीत के घोड़े।।
सिगरेट का धुंआं फर-फर-फर, नील गगन में जाता
अल्कोहल की लाल लहर पर
सुख अनूप मैं पाता.
*अर्धसॉनेट: यह काव्यविधा यूरोपियन उस्तादों से छूट गई थी. हमारे अपने बाबा त्रिलोचन भी जने क्यों इसे देख-परख नहीं पाए. सात पंक्तियों की अर्धसॉनेट नाम्नी इस विधा में अंतरंगता का स्कोप बहुत ज़्यादा है. तुक मिलाने की कोई हड़बड़ी-मजबूरी नहीं है - अनूप सुख का यही स्रोत खोज लाए हैं अनिल भाई हम-आप के वास्ते. जय हो.
12 comments:
भाई अशोकजी
अभी हाल आप बरेली आए और आपसे मुलाकात न हो सकी इसका मलाल रहेगा। अख़बार में आपका छोटा-सा इंटरव्यू पढ़कर आपकी आमद का पता चला।
बहरहाल, अगली दफा आएं तो सूचित करें। आपसे मिलने की इच्छा है।
anil yadav yani Hari anant, hari katha ananta. vo hamesha apne dosto ko kissakhori ka lutf dete rahe aur unki ghumakkai ke, unki arajktaka ke, unke beehad rasto ke kisse khoob chatkhare lekar sunaye gaye. halanki ve sab unkee izzat karne wale dost hain par unke paas unkee asadhaaran pratibha ke baare mein zyada shabd naheen hote ya usse ve prabhavit-atankit hote hue bhi yahee sunana zyada majedaar maante hain ki vo kab kis kabr mein, kab kis gumbad mein aur kab kis kandra mein paaye gaye. anil yadav naam ka jeev bhee isko pahchante hue iska pura lutf leta raha ya kahen ko dosto ki khatir lutf ka drama karta raha. Go ye pratibha kisi rashtrpati bhawan mein bandhkar naheen rah saktee. ab ek ghar, ek panjeekrit dost (beewi) aur ek beta hai aur khuskismatee se puranee bechainee bhee badastoor kayam hai. kabaadkhane mein is bechainee kee rachnatmk jhalak miltee rahegee
अनिल जी का गद्य उनके 'हारमोनियम' पर पढ़ा है. आज कविता की बानगी भी मिल गई. कबाड़ख़ाने में उनका स्वागत है और आशा करती हूं कि वे अपनी रचनात्मकता से पाठकों को बढ़िया चीज़ें पढ़वाएंगे.
अशोक जी,
हिंदी ब्लागरों के ईगो से घबराकर मैने कमेंट करने बंद कर दिए थे। आज इसे देखा तो अपने को रोक नहीं पाई। आपने पहली बार वाकई एक सटीक बंदे को कबाड़ी बनाया है। सानेट भी इसने क्या खूब अपने पर फबता हुआ लिखा है, जोकर कहीं का। इस करमजले को बहुत अच्छी तरह जानती हूं। यह कवि हो सकता था, अच्छा कथाकार हो सकता था, अभिनेता तो खैर पैदाइशी है एक जमाने में इलस्ट्रेशन भी बहुत अच्छा खींचता था, घंटों भाषण भी देना जानता था। लेकिन नहीं अहंकार, देखना दुनिया खुद मेरे लिए एक दिन लाल कालीन बिछाकर कहेगी सर, आइए। जिंदगी भर इंद्रजीत के घोड़े पर ही सवार रहा और जब कबाड़ का सामान हो गया तो वहीं पहुंच भी गया।
आपकी पहचान की दाद देती हूं। शुक्रिया।
इन्ही बिगड़े दिमागों में घनी खुशियों के लच्छे हैं।
हमें पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे हैं।।
याद है अनिल जी आपने कभी सुनाया था। अपने ब्लाग पर तो आप लिखते नहीं आशा है आपसे मुलाकात यहां होती रहेगी।
पांडेय जी, इनसे जरा बच के कालीदास हैं। आजकल बस जरा उदास हैं।
कबाडी कित्ते हुये ? :)
जय कबाड़खाना. जय हे नव कबाड़ी ...... कबाड़ की जितनी ज़रूरत है आज कल उतनी शायद पहले कभी नहीं थी .... खुश आमदीद सरकार ! कुछ और फैलायें, इस साफ़ सुथरी दुनियाँ से डर लगता है कभी कभी ..... और हाँ ....
अल्कोहल की लाल लहर पर
सुख मैं भी पा पाता !!!!
स्वागत है, भई स्वागत है अनिलजी का! हो यारा ढोल बजाके... हो यारा...
एक नया कबाड़ी, एक नए कबाड़ी का तहे दिल से स्वागत करता है।
अनिल भाई
यहाँ भी हारमोनियम से सुरीले बजते रहियेगा.
कबाड़ी और क्या चावे...
एक और कबाड़ी.
अशोक बाबा की जय.
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