Monday, October 1, 2007

सादी यूसुफ़ की ' १९४३ '

१९४३

हम लड़के पड़ोस के नंगे पांव
हम लड़के पड़ोस के वस्त्रहीन

हम लड़के जिनके पेट कीचड खाने के कारण फूल गए हैं
हम लड़के जिनके दांत खजूर और कद्दू के बीज खाने से गल चुके

हम लड़के हसन -अल -बसरी के मकबरे से अशार नदी के सोत तक कतार में खडे रहेंगे
सुबह आपका स्वागत करने को खजूर के हरे पत्ते लहराते हुए

हम नारे लगाएंगे: अमर रहें आप
हम नारे लगाएंगे: जीवित रहें आप अनंत तक

और हम ख़ुशी ख़ुशी स्कॉटिश मशक्बीनों का संगीत सुनेंगे
कभी कभी हम किसी हिंदुस्तानी सिपाही की दाढी पर हँसेंगे
लेकिन भय घुल जाएगा हमारी हंसी में और हम उनसे लडेंगे

हम चिल्लायेंगे: अमर रहें आप
हम चिल्लायेंगे: जीवित रहें आप अनंत तक
और हमारे हाथ तुम्हारे सम्मुख फैल जायेंगे
: हमें रोटी दो

हम भूखे हैं
इस गाँव में अपनी पैदाइश के बाद से ही हम मर रहे हैं भूख से
हमें मांस दो, चूईंग गम दो, टिन दो और मछली दो हमें
ताकि कोई भी माता अपने बच्चे को बाहर न निकाले
ताकि हम सिर्फ कीचड न खायें और सोते न रहें

हम लड़के पड़ोस के नंगे पांव
हम नहीं जानते थे तुम आये कहॉ से
या किस लिए
या हम क्यों चिल्लाये थे : अमर रहें
...
और अब हम पूछते हैं:
क्या तुम देर तक ठहरोगे?
और क्या हम तुम्हारे सामने हाथ फैलाते रहेंगे?

(३ दिसंबर २००२)

नोट: हसन - अल - बसरी (६४२ -७२८ या ७३७ ईस्वी ) : मदीना में पैदा हुए प्रख्यात अरबी दार्शनिक और इस्लाम के अध्येता.


1 comment:

Sunder Chand Thakur said...

Ashok,
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Sunder