Monday, October 1, 2007

सादी यूसुफ़ की ' स्वागत '

स्वागत


कैक्टस पर गिरती है बर्फ।फिर एक पुकार और एक कहवाघर।एक संत का लबादा जिसे चीथड़ा कर चुके भेड़िए।बढ़िया चमड़े के बने जूते।हादरामूट के किनारों पर किस तरह कांपते हैं कछुए?नदी की गहराईयों से कराहता है चांद॰॰॰ और एक लड़की चिल्लाती है खुशी में।मुझे नहीं है जरूरत किसी गोली की। इस दुनिया में मेरी इकलौती तकदीर मेरे पीठ पीछे की दीवार है।शाहराज़ूर के चरागाहों में किस कदर हरी है घास !मैंने देखी एक लटकती हुई रस्सी।यूसुफ़ कहां है ?मैं टिम्बकटू की बाजारों में था॰॰॰और मशक्कत कर रहा था।एक रात एक जहाज़ हमें ले गया जिबूती के उथले पानी के पार॰॰॰

मोगादीशू
उछालता है भेड़ का गोश्त शार्क मछलियों की तरफ़।मेरा कोई गन्तव्य नहीं है।मेरे पास एक बिल्ली है जिसने कुछ दिनों से मुझे मेरे जीवन की दास्तान बताना शुरू किया है।लगातार दूर जाती अमरता तुमने भी क्यों दगा किया मेरे साथ? इस दोपहर मैं सीखूंगा फूलों की पशुता की चुस्कियां लेना।दगा का स्वाद कैसा होता है? एक बार मैं घूमा किया अपने गति के साथ। सैनिकों की रेलगाड़ियां चलती जाती हैं ॰॰॰ चलती जा रही हैं। चलती जाती हैं। चलती जा रही हैं। चलती जाती हैं। मास्को की बर्फ मेरे आंसुओं को गरमाती है।ठहरते और फिर सफर पर निकलते चरवाहों में नहीं कोई गुण॰॰॰ अपनी उंगली के एक इशारे से शहर मिटा देते हैं गांवों को।मोटे चावल के आटे से बनी है मेरी डबलरोटी और राख है मेरी मछली पर नमक। लड़कियों की डोरमैट्री में आज रात उसका प्रेमी हो पाने की कोई संभावना नहीं मेरे वास्ते।नहीं ॰॰॰ शनिवार को वह अपना दरवाजा मेरे लिए बंद कर देती है।मैं जला दूंगा सारे काग़जों को।पुलिसवाला आ सकता है।रात की रेलगाड़ी में बेड़ियों में भी मेरी आंख लग गई।लकड़ी की सीट मेरा वह जहाज थी जो दुर्घटना का शिकार हुआ।बंदरगाह के शराबखाने वाली लड़की वो तुम्हारा नाम जप रह हैं।लौट आए हैं हीरों की खोज में निकले अजनबी।हैज़ा के पत्थरों पर आराम कर रहे हैं हमैर के बाज़।एक दफ़े मैंने करीब करीब पा लिया था शिशु चंद्रमा को अपनी हथेलियों में।लोगों को क्यों छोड़कर जाना पड़ा पार्क? मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा हाथ।मत फेंको धज्जियों से बनी अपनी रस्सी मेरी तरफ़।आज मैंने खोज ली है एक और मूसलधार बारिश।स्वागत है जीवन में ॰॰॰स्वागत मेरी दूसरी वाली प्रेयसी।

अम्मान
23 मार्च 1997

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