गालियाँ
कुशल कबाड़ी अशोक पांडे के लिए कविता जैसा कुछ ...
भाषा में
वे हमारे शरीर से आती हैं
और लौट जाती हैं अपना काम करके
वापस शरीर में
वे बेधक होती हैं कभी
और कातर भी
उनमें चहरे दिखायी देते हैं
कभी अपमान तो कभी क्रोध से भरे
उनमें झलकते हैं हमारे दिल
प्रेम और घृणा
साहस और कायरता से बने
वे ताकात का अभद्र बखान हो सकती हैं
और असमर्थता का हताश बयान भी
जो भी हो पूरी दुनिया में
हर कहीँ
वीभत्स और अश्लील करार दिए जाने के बावजूद
वे एक पुराना और ज़रूरी हिस्सा हैं
हमारी अभिव्यक्ति का
सोचिये तो ज़रा
कितना पराया लग सकता है एक दोस्त
अगर नहीं देता गालियाँ !
-शिरीष कुमार मौर्य
2 comments:
बढ़िया है लाला। "जेब्बात" ...
Khadak Singh ko Harak Singh ka pyaar aur pranaam....
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