पिल्लाटिक की कविता
वक़्त के साथ-साथ भरता गया पापों का घड़ा
तो प्लास्टिक भी बना टनों के हिसाब से
यहाँ-वहाँ इतना जमा हो गया प्लास्टिक कि दही जैसी चीज़ का स्वाद भी
मिटटी के कुल्हडों से
बेस्वाद होता बंद हो गया घटिया प्लास्टिक की
रबर बैंड लगी थैलियों में
प्लास्टिक लेकर आया भावहीन चेहरे और शातिर दिमाग
और जलने की ऐसी दुर्गन्ध
जो बस समय बीतने पर ही जायेगी
प्लास्टिक आया तो आये अधनंगे आवारा बच्चे
बड़ी-बड़ी गठरियाँ लेकर
दुनिया के चालाक लोगों के लिए
गंद के ढेरों को उलट-पुलट करने
चालाक लोग भूख की मशीन में डाल कर
कूड़े को बदल देंगे
नए प्लास्टिक में !
प्रस्तुति : शिरीष मौर्य
2 comments:
भई वाह पहली बार आया आपके ब्लॉग पर(पढ़ें कबाड़ पर)कमाल है. बधाई.
जे इरफ़ान है. इस इरफ़ान को मैं जानता हूँ. ये इरफ़ान भी मुझे जानता है. इरफ़ान अच्छा लड़का है. लेकिन पुराने दोस्तों से संपर्क नहीं रखता. इरफ़ान भौंहे मत चढ़ा. घर चल. खटपट मत कर. ब्लॉग लिख. संपर्क रख.
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