Sunday, October 7, 2007

क्या बात है इरफान

एक अदभुत दोस्त इरफान हमारी तकदीर से कबाड़ी बन के आये हैं। मेरे पास शब्द कम हो रहे हैं उनका स्वागत करने को। बाबू जी कुछ निगाह - ए- करम हियां कू भी। कम - अज़ - कम वीरेनदा की आवाज़ तो सुनवा देओ, इरफान !

"हर खरीदार खुद को पहचाने
आईने भी दुकान में रखिये।"


स्वर्गीय दोस्त हरजीत का शेर याद आ रहा है इस पल।(उड़न तश्तरी का वकिया अभी जेहन से उतर नहीं पा रिया साब। )

1 comment:

इरफ़ान said...

स्वागत करके आपने तो हमें एम्बरेस कर दिया.