एक अदभुत दोस्त इरफान हमारी तकदीर से कबाड़ी बन के आये हैं। मेरे पास शब्द कम हो रहे हैं उनका स्वागत करने को। बाबू जी कुछ निगाह - ए- करम हियां कू भी। कम - अज़ - कम वीरेनदा की आवाज़ तो सुनवा देओ, इरफान !
"हर खरीदार खुद को पहचाने
आईने भी दुकान में रखिये।"
स्वर्गीय दोस्त हरजीत का शेर याद आ रहा है इस पल।(उड़न तश्तरी का वकिया अभी जेहन से उतर नहीं पा रिया साब। )
1 comment:
स्वागत करके आपने तो हमें एम्बरेस कर दिया.
Post a Comment