Monday, November 19, 2007

मेहनाज़ अनवर से इरफ़ान की बातचीत: उर्फ रेडियो के रंग्

ऑल इंडिया रेडियो: कुछ भूले बिसरे चित्र



मुजीब सिद्दीक़ी (बीच में), स्टूडियो से बाहर आते हुए



प्रसारण के क्षण


पुरानी मशीनों पर रिकॉर्डिंग


उर्दू के प्रख्यात व्यंग्यकार मुज्तबा हुसैन


मुजीब सिद्दीक़ी (बाएं) प्रसारण के बीच


मरियम क़ाज़मी (बाएं)



जावेद अख़्तर



बाएं से, मुजीब सिद्दीक़ी, आई.के.गुजराल, रेवती सरन शर्मा और अन्य


बशीर बद्र


अमृता प्रीतम के साथ ऑल इंडिया रेडियो का स्टाफ़
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मेहनाज़ अनवर का नाम न सिर्फ़ पुरानी स्टाइल के रेडियो से जुड़ा हुआ है बल्कि वो FM सुननेवालों के लिये भी बेहद जाना-पहचाना नाम हैं. एफ़एम ब्रॊडकास्टिंग की जब शुरुआत हुई तो ग़ज़लों के प्रोग्राम आदाब और आदाब अर्ज़ है से उन्होंने नये सुनने वालों से एक बेहद अपनापे का रिश्ता बनाया, लोगों में ज़बान का शऊर पैदा किया और एक नये अन्दाज़-ए-बयां को मक़बूल बनाया. सुननेवालों से जज़्बाती रिश्ता बनाना कोई उनसे सीखे.वो जितनी दिलकश आवाज़ की धनी हैं उतनी ही खूबसूरत शख्सियत भी हैं.
आइये सुनतें हैं उन्ही की आवाज़ मे कुछ गुज़री बातें.पहला हिस्सा.
यह कहते हुए मैंने रेडियोनामा पर 28सितंबर 2007 को मेहनाज़ आपा के इंटरव्यू का एक शुरुआती हिस्सा जारी किया था. आज, जब कि रेडियो की वापसी की बातें बडे ज़ोर-ओ-शोर की जा रही हैं ; ये लाज़िमी हो जाता है कि रेडियो प्रोफ़ेशन पर एक मुकम्मल नज़र डाली जाए. बग़ैर इसके यह वापसी एक बेसिर पैर की क़वायद ही साबित होगी. कोई तीस बरस से रेडियो बिज़नेस में रही आई मेहनाज़ ने बहुत कुछ पुराने ब्रॉडकास्टर्स से सीखा और इस बीच रेडियो ब्रॉडकास्टिंग को मुतास्सिर किया है. लखनऊ की रहने वाली मेहनाज़ ने जेएनयू से बाद की पढाई की. उनकी दो बेटियां आज ख़ुद देश और विदेश के एफ़एम रेडियो पर लोकप्रिय प्रोग्राम पेश करती हैं.
तो पेश है वह पूरा और अनएडिटेड इंटरव्यू. सुनिये कि मेहनाज़ साहेबा के रेडियाई सफर में क्या-क्या मरहले आये और क्या उनके observations हैं.


मेहनाज़ अनवर के घर पर 26 फ़रवरी 2005 को रिकॉर्ड किया गया.
Dur. 50Min 54Sec

4 comments:

Ashok Pande said...

बेहतरीन इरफान! यकीन करो या न करो तीन दफा सुन चुका हूँ इस इंटरव्यू को। बहुत सारी बातें याद आयीं। ब्रुक हिल में सुबह रेडियो से होती थी। और आकाशवाणी की उर्दू सर्विस से। यार लोग कहा करते थे कि अगर आकाशवाणी की उर्दू सर्विस न होती तो हम लोग उठ ही नहीं सकते थे। मेहरबानी दोस्त!

दीपा पाठक said...

इरफान जी आप समय-समय पर बहुत ही दिलचस्प सा कंटेंट चस्पां करते रहते है कबाडखाने पर और कुछ टूटी कुछ बिखरी में, लेकिन मेरी मुश्किल यह है कि ब्राडबैंड कनेक्शन होने के कारण आडियो-वीडियो कंटेंट सुन नहीं पाती। लेकिन तस्सली इस बात की है कि यह सारा सामान नज़रों के सामने है जैसे ही इस तकनीकी कमी से उबरेंगे तो इसका मज़ा उठा सकेंगे।
रेडियो हमेशा ही मेरी पसंद रहा है। नवीं-दसवीं के दिनों में आल इंडिया की उर्दू नश्रियात का चस्का लगने के बाद तो ज़िद करके एक छोटा ट्राजिस्टर लिया गया था। सर्दियों में रात को कान से सटा कर देर रात तक हिंदी फिल्मी गानों और गज़लों के बीच मीठी सी आवाजों में उर्दू सुनने में जो मज़ा आता था वो भुलाए नहीं भूलता। एफएम पर इतवार को आने वाला मेहनाज अनवर का गज़लों का प्रोग्राम मुझे बहुत पंसद था।

आशीष said...

कबाडखाने के बहाने बिछडे हुए इरफान भाई फिर से मिल गए, इसके लिए अशोक पांडे का शुक्रिया। मेहनाज जी अपनी आवाज के जरिए वाकई अपने श्रोताओं से एक रिश्ता बना लेती हैं। लडकपन के दिनों में अक्सर राजेश जोशी के वाई-वन ग्रीन पार्क की बरसाती में बीयर या रम की चुस्की लेते हुए, खाना बनाते हुए मेहनाज जी का प्रोग्राम सुनने की यादें उन दिनों के नोस्टेल्जिक ट्रिप्स का हिस्सा बनी रहेंगी। जसदेव सिंह, रामानुज प्रसाद सिंह और अमीन सियानी भी ऐसी आवाज़े हैं जो मेरे रेडियो वाले बचपन से जुडी हुई हैं।

इरफ़ान said...

अरे मियां-बीबी सब मिलके लतियाने लगे? अमाँ कबाडीबाबा! यो क्या होरिया है? हमकू तो कोई गडबड लगे है.... हा..हा..
आशीष भाई और दीपा बहन आप का प्यार सर आँखों पर.