Monday, January 7, 2008

क्रिकेट, जाति और नस्लवादी आखेट

-दिलीप मंडल

ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख अखबार सिडनी मॉर्निंग हेरॉल्ड को लगता है कि भारतीय क्रिकेटरों के सेलेक्शन में जातिवाद चलता हैसिडनी मॉर्निंग हेरॉल्ड ने आज खत्म हुए टेस्ट मैच में खेलने वाले क्रिकेटरों की एक गलत-सही टाइप की लिस्ट छापी हैआप लोग भी देख लीजिए :

ब्राह्मण - अनिल कुंबले, राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, सचिन तेंडुलकर, सौरव गांगुली, आर पी सिंह (?), इशांत शर्मा
जाट - युवराज सिंह
राजपूत - महेंद्र सिंह धोनी
मुसलमान - वसीम जाफर
सिख - हरभजन सिंह.

पूरी खबर के लिए सिडनी मॉर्निंग हेरॉल्ड साइट के इस लिंक पर क्लिक कर लीजिएइसके साथ एक और लेख पढ़ लीजिए, जो है तो चार साल पुराना, लेकिन क्रिकेट की जाति चर्चा में इसका जिक्र रहा है

वैसे भारतीय क्रिकेट में जाति के आधार पर भेदभाव और दलित क्रिकेटर विनोद कांबली (54.20 का एवरेज और 227 का अधिकतम स्कोर) की सिर्फ 17 टेस्ट के बाद विदाई जैसी मार्मिक बातें छापने वाले सिडनी मॉर्निंग हेरॉल्ड के संपादक को मैंने एक मेल डाला हैउसके कुछ हिस्से का हिंदी अनुवाद आपके लिए पेश हैं

- क्या ये सच नहीं है कि यूरोपीय लोगों के आने से पहले ऑस्ट्रेलिया में एक सभ्यता थी। 1788 में वहां साढ़े तीन लाख से लेकर साढ़े लाख मूल निवासी रहते थे

- यूरोपीय लोगों के आने के बाद उनकी संख्या घटने लगी और 1911 आते आते ये संख्या घटकर 30,000 रह गई
- ऑस्ट्रेलिया के तस्मानिया द्वीप में 1803 में 8,000 मूल निवासी रहते थेयूरोपीय लुटेरों के आने के 30 साल बाद उनकी संख्या 300 रह गई

- ऑस्ट्रेलिया के दो सौ साल के इतिहास में मूल निवासियों के 100 से ज्यादा बड़े आखेट हुए हैंउन्हें घेरकर, चुनकर हर तरह से मार डाला गयानरसंहारों की खत्म होने वाली लिस्ट देखें

- ये सिलसिला 1930 तक चला हैआदमी तब तक काफी सभ्य हो चुका थाऔर गोरे लोग तो खुद को सबसे सभ्य मानते हैं

- आज ऑस्ट्रेलिया की जनगणना के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि देश की आबादी में सिर्फ ढाई प्रतिशत मूल निवासी हैं

- लेकिन ऑस्ट्रेलिया की जेलों में 14 परसेंट लोग मूल निवासी हैं

- ऑस्ट्रेलियाई मूल निवासी कम उम्र में मरता है, उसके बेरोजगार रहने के चांस ज्यादा हैंआंकड़े देखें

- इसलिए जाति का गणित कृपया हमें मत समझाइएजाति से हम लड़ रहे हैं, जीत लेंगेआप अपनी चिंता कीजिए

ये तो है मेरे पत्र के कुछ प्वायंटलेकन मुझे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से शिकायत हैउसमें दम नहीं हैवरना भारतीय टीम के प्रवक्ता को पूछना चाहिए कि ऑस्ट्रेलिया की टीम में कितने मूल निवासी हैंलेकिन लगता है कि हमारे अपने घर के कंस्ट्रक्शन में काफी शीशा लगा हैइसलिए पत्थर उछालने का जोखिम हम नहीं ले सकते

3 comments:

Ashok Pande said...

हमारे क्रिकेट बोर्ड में कितना दम है यह सभी को मालूम है. मैदान पर तमाम तरह की गालियां और जिल्लतें झेलने के बावजूद हमारे खिलाड़ी ही हर तरह की सज़ाएं पाते रहे हैं. अपने चैम्पियन स्टेटस को बरकरार रखने के लिए आस्ट्रेलियाई खिलाड़ी कुछ भी करते रहें, निकाला हरभजन और युवराज जैसों को ही जाएगा.

मुझे बहुत साल पहले देखी एक डाक्यूमेन्ट्री की याद है : 'सिली लिटिल सिक्स पेन्स'. यह गोरों द्वारा आस्ट्रेलिया के मूल निवासियों (एबोरिजिनीज़) पर पीढ़ियों से किए गए अत्याचारों का दर्दनाक द्स्तावेज़ है. इस फ़िल्म को वहां बैन कर दिया गया था.

टेस्ट क्रिकेट शुरू होने से पहले 1868 में एक एबोरिजिनीज़ क्रिकेट टीम ने इंग्लैंड का दौरा किया था. उस के बाद जेसन गिलेस्पी पहले एबोरिजिनीज़ टेस्ट खिलाड़ी बने थे १९९६ में.

जातिवाद किस देश में ज़्यादा है, यह बताने के लिए मेरे विचार से और किसी आंकड़े या इतिहास की ज़रूरत नहीं है.

बनी रहे आस्ट्रेलिया की टीम विश्व चैम्पियन लेकिन भारतीय बोर्ड में ज़रा भी माद्दा है तो सिडनी की बेईमानी के बाद उस ने वापस आ जाना चाहिए. और अगले दस साल तक आस्ट्रेलिया के साथ कोई मैच नहीं खेलना चाहिए.

VIMAL VERMA said...

ऐसा निर्ण्य देकर उन्होंने खुद को तो नस्लवादी साबित तो कर ही दिया है,पर इसका मजबूती से विरोध करने की ज़रूरत है, वैसे आज जाकर लग रहा है कि बीसीसीआई हरकत में आई है,मीडिया के विरोध के चक्कर में उन्हें भी सख्त कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ रहा है,अगर भारत,पाकिस्तान,श्रीलंका,बांग्लादेश इस मुद्दे पर एक रहेंगे तभी उनका गुरूर टूटेगा ।

नीरज गोस्वामी said...

लगता है आप के ब्लॉग को भारतीये क्रिकेट बोर्ड ने पढ़ लिया है...तभी वहाँ के दौरे पर प्रश्न चिन्ह लग गया है...अब देखना ये है की वो हरभजन के साथ कब तक रह पता है....गुलामी से मुक्त होना ही पड़ेगा हमारी सोच को और ईंट का जवाब पत्थर से देना सीखना ही होगा...बहुत भद्र बन के खेल लिए क्रिकेट..
नीरज