पिछली पोस्ट में मैंने अपने प्यारे दोस्त और शानदार शायर नूर मोहम्मद 'नूर' का एक शेर 'कोट' किया था। चन्द दोस्तों कि फ़रमाइश पर उस ग़ज़ल के दो और शेर पेश कर रहा हूं। शायद पिछले शेर का मतलब इन दो शेरों की रोशनी में और साफ़ हो कर निखर आए।
सांप हंसते रहे बेखौ़फ़ बिलों के अन्दर
धूप में बीन बजाते जो संपेरे निकले
हमने जाना था कि पैदा कोई सूरज होगा
'नूर' हर बार अंधेरों पे अंधेरे निकले
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हमने जाना था कि पैदा कोई सूरज होगा
'नूर' हर बार अंधेरों पे अंधेरे निकले
वल्लाह !
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