अमीर ख़ुसरो साहब की इस विख्यात रचना से मेरा पहला परिचय फ़िल्म 'ग़ुलामी' में हुआ था. जे. पी. दत्ता की इस मल्टीस्टारर फ़िल्म की बस एक ही याद बाक़ी है - 'ज़ेहाल-ए-मिस्किन ...' से शुरू होने वाला गीत. फ़िल्म जब आई थी तब मैं छोटा था और ज़्यादा चीज़ें समझ नहीं आती थीं. ज़ेहाल-ए-मिस्किन का मतलब समझ में नहीं आता था और जब थोड़ी बहुत जिज्ञासा हुई भी तो बताने वाला कोई न था. दस बारह साल पहले इसी मूल रचना को छाया गांगुली की आवाज़ में सुना तो आनन्द आया पर 'ज़ेहाल-ए-मिस्किन' का अर्थ जानने की इच्छा होने के बावजूद मैंने पर्याप्त कोशिशें नहीं कीं.
अभी तीनेक दिन पहले वही सीडी दुबारा से सुनना शुरू किया तो काफ़ी सारी स्मृतियां लौट कर आईं. इस बार मैंने कोताही नहीं दिखाई और कहीं से पहले तो मूल रचना खोजी. हिन्दी में तो अनुवाद नहीं मिला पर एक अनाम साहब द्वारा किया गया अंग्रेज़ी अनुवाद http://www.justsomelyrics.com/ पर मिल गया. पेश है छाया गांगुली की आवाज़ में यह शानदार रचना. पहले बोल देखिये और उसके बाद ख़ाकसार का अंग्रेज़ी से किया हुआ भावानुवाद:
ज़ेहाल-ए-मिस्किन मकुन तग़ाफ़ुल, दुराये नैना बनाए बतियां
कि ताब-ए-हिज्रां नदारम अय जां, न लेहो काहे लगाए छतियां
चो शाम-ए-सोज़ां चो ज़र्रा हैरां हमेशा गिरियां ब इश्क़ आं माह
ना नींद नैनां ना अंग चैना ना आप ही आवें ना भेजें पतियां
यकायक अज़ दिल बज़िद परेबम बबुर्द-ए-चश्मश क़रार-ओ-तस्कीं
किसे पड़ी है जो जा सुनाएं प्यारे पी को हमारी बतियां
शबान-ए-हिज्रां दराज़ चो ज़ुल्फ़ वा रोज़-ए-वस्लस चो उम्र कोताह
सखी़ पिया को जो मैं ना देखूं तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां
(आंखें फ़ेरकर और कहानियां बना कर यूं मेरे दर्द की अनदेखी न कर
अब बरदाश्त की ताब नहीं रही मेरी जान! क्यों मुझे सीने से नहीं लगा लेता
मोमबत्ती की फड़फड़ाती लौ की तरह मैं इश्क़ की आग में हैरान-परेशान फ़िरता हूं
न मेरी आंखों में नींद है, न देह को आराम, न तू आता है न कोई तेरा पैगाम
अचानक हज़ारों तरकीबें सूझ गईं मेरी आंखों को और मेरे दिल का क़रार जाता रहा
किसे पड़ी है जो जा कर मेरे पिया को मेरी बातें सुना आये
विरह की रात ज़ुल्फ़ की तरह लम्बी, और मिलन का दिन जीवन की तरह छोटा
मैं अपने प्यारे को न देख पाऊं तो कैसे कटे यह रात)
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13 comments:
ULTIMATE !
अब आप ही कहें मैं क्या कहूँ ? इस के बाद कोई क्या कहे ??
खूब बढ़िया,इस रचना में खास बात भी है कि पहली पंक्ति फ़ारसी में है तो दूसरी हिन्दी में,आपने अनुवाद करके इस गीत को समझने लायक बना दिया,मज़ा आ गया अशोक भाई.... और छाया गांगुली की आवाज़ में कुछ अलग सा रस मिल रहा है....बहुत बहुत शुक्रिया
मुझे खुसरो जी का ये गीत सबसे ज्यादा पसंद है.. कभी मौका मिले तो ये भी सुनाईयेगा..
आज रंग है ऐ माँ रंग है री, मेरे महबूब के घर रंग है री।
अरे अल्लाह तू है हर, मेरे महबूब के घर रंग है री।
मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया, निजामुद्दीन औलिया-अलाउद्दीन औलिया।
अलाउद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया, कुताबुद्दीन औलिया।
कुताबुद्दीन औलिया मोइनुद्दीन औलिया, मुइनुद्दीन औलिया मुहैय्योद्दीन औलिया।
आ मुहैय्योदीन औलिया, मुहैय्योदीन औलिया। वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।
अरे ऐ री सखी री, वो तो जहाँ देखो मोरो (बर) संग है री।
मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया, आहे, आहे आहे वा।
मुँह माँगे बर संग है री, वो तो मुँह माँगे बर संग है री।
निजामुद्दीन औलिया जग उजियारो, जग उजियारो जगत उजियारो।
वो तो मुँह माँगे बर संग है री। मैं पीर पायो निजामुद्दीन औलिया।
गंज शकर मोरे संग है री। मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखयो सखी री।
मैं तो ऐसी रंग। देस-बदेस में ढूढ़ फिरी हूँ, देस-बदेस में।
आहे, आहे आहे वा, ऐ गोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री। सजन मिलावरा इस आँगन मा।
सजन, सजन तन सजन मिलावरा। इस आँगन में उस आँगन में।
अरे इस आँगन में वो तो, उस आँगन में।
अरे वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री। आज रंग है ए माँ रंग है री।
ऐ तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन। मैं तो तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री। मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी सखी री।
ऐ महबूबे इलाही मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी। देस विदेश में ढूँढ़ फिरी हूँ।
आज रंग है ऐ माँ रंग है ही। मेरे महबूब के घर रंग है री।
वैसे हिंदी में उस गीत का मतलब ये है जिसे मैंने नेट से ही पाया था.. कहां से पाया था अब ये याद नहीं है.. शायद tdil.mit.gov.in से पाया था..
अर्थात मुझ गरीब मिस्कीन की हालत से यूँ बेख़बर न बनो। आँखें मिलाते हो, आँखें चुराते हो और बातें बनाते हो। जुदाई की रातें तुम्हारी कारी जुल्फ़ों की तरह लंबी व घनी है। और मिलने के दिन उम्र की तरह छोटे। शमा की मिसाल मैं सुलग रहा हूँ, जल रहा हूँ और ज़र्रे की तरह हैरान हूँ। उस चाँद की लगन में आ मेरी ये हालत हो गई कि न आँखों को नींद है न बदन को चैन, न आप आते हैं न ख़त लिखते हैं।''
जानकारी के लिये शुक्रिया प्रशान्त भाई! मौक मिलते ही आपका पसन्दीदा संगीत सुनाता हूं आपको.
"रोज़-ए-वस्लस चो उम्र कोताह"
छायाजी की आवाज में ये गीत पहले भी सुना था लेकिन गलती से वो "रोज-ए-वस्लत" को "रोज-ए-वस्लस" कह गयीं और किसी ने (संगीतकार etc.) ने ध्यान भी नहीं दिया ।
लेकिन इसके अलावा कोई शिकायत नहीं, बडे इत्मीनान से गाया है ।
इसे सुनवाने के लिये बहुत आभार,
नीरज
शायरी की ताक़त देखिये अशोक भाई ये ही रचना हम सब ने मुकेश-सुधा मल्होत्रा की आवाज़ में विविध भारती के लोकप्रिय कार्यक्रम रंगतरंग में ख़ूब सुनी थी .कम्पोज़िशन मुरलीमनोहर स्वरूप (वही हरिओम शरण जी रचनाओं के संगीतकार) का हुआ करता था जो एक लाजवाब हारमोनियम वादक थे और बेगम अख़्तर की संगत किया करते थे. छायाजी ने ख़ुसरो की रचना को बड़ी तसल्ली से गाया है. संगीत शायद फ़िल्मकार मुज़फ़्फ़र अली का है .(एलबम:हुस्नेजानाँ तो नहीं) एलबम तो कम ही बिका था लेकिन दर्दियों तक ज़रूर पहुँचा था.खुसरो का कमाल देखिये एक स्थापित भाषा के साथ दूसरी भाषा को कैसे ब्लैण्ड किया है. ...हम सब की क्या औक़ात कि सुनने के अलावा इन कारीगरों के नायाब काम पर बस आँसू बहाते जाएँ ?
मेरी पसंदीदा रचना सुनवाने और पढ़वाने का शुक्रिया अशोक भाई ।
संजय जी सही कह रहे है। मुकेश और सुधा मल्होत्रा की आवाज़ मे सुनी हुई बंदिश ही यादों में बसी हुई है।
बहुत जबरदस्त!! आभार सुनवाने का.
waah!!1
अशोक भाई, आपने कमाल कर दिया. लेकिन तब आप इतने छोटे नहीं रहे होंगे, क्योंकि गुलाम मैंने तब देखी थी जब मैं बाम्बे से गाँव गया था और नागौद में एक वीडियो टाकीज में यह फ़िल्म देखी थी. अमल की बात यह कि मैं गाना सुनकर मिथुन और अनिता राज का दुःख याद कर-कर के बहुर रोया था... ये शाम है या ...तुम्हारे दिल से उठा धुआं हमारे दिल से गुजर रहा है.. ओ माय गोड!
Ashok Ji I have just recently started logging on to this blog and it is too possesing........
PD sahab ko AJ RANG HAI ka shauk hai ... Abida ne gayi hai woh rachna, par to be frank, I dont know how to post it ....
aur yahi rachna, Warsi Banduon ne behi Qawwali ke andaz main gayi hai jo ki bahut sunder hai....
Shan (Is waqt China mein)
कबाड़खाने में पुराना माल ढूंढते हुए यहाँ तक आ पहुंचा. आप जानते ही होंगे कि इसे बाबा नुसरत ने भी गाया है. सौभाग्य से मेरे पास mp3 है. हुक्म करें तो भेज दूं. छाया गांगुली वाला वर्ज़न यहाँ सुन नहीं पाया तो यूट्यूब पर सुन लिया. शुक्रिया.
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