Sunday, June 22, 2008

'लुक छिप बदरा में चमके जइसे चनवां' सुना, अब इसे देख लें

गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो' के एक गीत-'लुक छिप बदरा में चमके जइसे चनवां' का आडियो अपलोड करने बाद विचार बना कि यदि इसका वीडियो भी अपलोड कर दिया जाय तो ठीक रहेगा लेकिन यह कैसे करते हैं पता तो है नहीं सो 'लर्निंग बाई डूइंग' के मंत्र का सहारा लेकर कोशिश कर रहा हूं .यदि यह सफल हो जाय तो बल्ले-बल्ले नहीं तो 'हमका माफी दई दो'

इस गीत का नृत्य निर्देशन बद्री प्रसाद ने किया है।यह आम भाषा में एक मुजरा है जो पुरानी भोजपुरी फिल्मों का एक जरूरी हिस्सा हुआ करता इस नृत्य-गीत में कुमकुम का अप्रतिम सौंदर्य अगर आप को बांध सके तो क्या कहेंगे.

और क्या कहू? आप तो इसे सुनें-देखें और मैं तो बस चुप ही रहूं-

10 comments:

sanjay patel said...

अशोक भैया;
लोक गीतों ने कितना सुरीला आसरा दिया है न फ़िल्मों को ...खैर यहाँ तो यह फ़िल्म ही है भोजपुरी सो लोकसंगीत अपनी श्रेष्ठता पर है.आवाज़ क्या सुमन कल्याणपुर की है ?
कुमकुम लख़नऊ घराने की प्रतिनिधि नृत्यांगना थीं.बेहतरीन चरित्र अभिनेत्री और कमाल की नर्तकी. आज की तरह आयटम डांस का दौर नहीं था वह...नृत्य भी कहानी में गूँथा हुआ होता था ऐसा नहीं नचवाना है तो कहीं भी नचवा लिया. बद्रीप्रसाद -सितारा देवी और गोपीकृष्ण का कोई संबध है ज़रूर ..कभी जाँच कर बताऊंगा.आज एक कार्यक्रम की एंकरिंग करते हुए तीसरी क़सम वाला मुजरा एनाउंस किया ..पान खाए सैंया हमारो ...और कार्यक्रम से लौटकर अपने पीसी पर देखा तो प्रकट हुई आपकी ये सुरीली पेशकश...साधुवाद ...कई.

कामोद Kaamod said...

बढिया प्रस्तुति.
साधुवाद

Alpana Verma said...

achchee prastuti--yah film bahut saal pahle doordarshan par pradeshik film prasaran ke waqt dekhi thi-

siddheshwar singh said...

'कबाड़्खाना' पर वीडियो अपलोड करने का यह मेरा पहला प्रयास था'.लगता है कि यह प्र्यास सफ़ल रहा और आप लोगों को पसंद भी आया.चलो जी चंगा. सभी को धन्यवाद और आभार.

भाई संजय पटेल जी,
आवाज को लेकर मुझे भी जरा भ्रम हुअ था.आप तो विशेष जानकारी रहते होंगे,जांच बतायें तो अच्छी बात होगी.

'कबाड़्खाना'के महंत अशोक पांडे के अलावा इस ठिए पर और भी कई लोग हैं और ये सब मिलकर यह दुकान चलाते हैं.

सादर-सप्रेम:
सिद्धेश्वर सिंह

Tarun said...

ये गीत पहली बार सुना और सच कहूँ मुझे कहीं से भी नही लगा कि कोई भोजपुरी गाने को सुन रहा हूँ, गीत के बोल, आवाज, संगीत सभी कुछ कमाल का है। इस मधुर गीत के लिये धन्यवाद

पारुल "पुखराज" said...

arey ye geet to hamare ghar me barson se gayaa jataa hai..bachey the to is par thumaktey rahtey they..ye geet to amar hain..post ka bahut aabhaar...

शिरीष कुमार मौर्य said...

कभी बचपन में देखी थी ये फिल्म! वैसे तो सिद्धेश्र चचा जानते ही हैं कि अब भी बचपन ही चल रहा है। बढ़िया काम !

Swapnil Srivastava said...

यह फिल्म मैंने जनपद देवरिया के धूसर कस्बे रामकोला के टूरिंग टाकीज में देखी थी.जिसे मैं अबतक नही भुला पाया हूं. इस भोजपुरी फिम में जो लोकजीवन गीतो में जो मस्ती है .उसका कोई जबाब नही उन्ही दिनों ..लागी नाही छूटे..बिदेसिया .हमार संसार जैसी भोजपुरी फिल्में आई थी .उनकी धज ही अलग थी.आज की भोजपुरी फिल्में उनके नाखून के बराबर नही है.आप् ने तो मेरी नस ही दबा दी

Swapnil Srivastava said...

इस फिल्म का जिक्र कर आपने मेरे पुराने दिन याद दिला दिये.मेरी तो नस ही दब गई है.कुछ फिल्में जीवन का हिस्सा बन जाती है .उन्ही दिनों लागी नाही छूटे राम .बिदेसिया भौजी और हमार संसार .जैसी फिल्मों की धूम थी .हम घर से भाग कर फिल्मे देखते थे .और फिल्मो के गाने गाते हुये घर लौटते थे..वे दिन कितने सुंदर थे

Swapnil Srivastava said...

क्या खूब फिल्म थी