Monday, September 15, 2008

भैरवी के स्वरों से भोर को भिगोते पं.अजय चक्रवर्ती


पटियाला घराने के उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब के एकलव्य शागिर्द
पं.अजय चक्रवर्ती का नाम संगीतप्रेमियों के लिये अनजाना नहीं है.अजय दा के साथ सबसे बड़ी बात यह है कि वे एक अत्यंत रचनाधर्मी फ़नकार हैं.नित नये प्रयोग करने वाले अजय चक्रवर्ती कोलकाता के आई.टी.सी.संगीत रिसर्च अकादमी से बरसों जुड़े रहे. वे एक कुशल हारमोनियम वादक भी हैं.मैने ख़ुद एक कंसर्ट में उन्हें विदूषी गिरिजादेवी को संगति देते सुना है.

बहरहाल आज भोर बेला में आइये सुन लेते हैं अजय दा की गाई ये भैरवी रचनाएँ.....इसमे प्रमुख है
बाट चलत नई चुनरी रंग डारी , जो एक अत्यंत लोकप्रिय बंदिश है और लगभग हर एक घराने में गाई जाती है.सरगम के साथ गमक भरी उनकी संक्षिप्त बलखाती तानें कहर ढा रहीं हैं .यहाँ अजय चक्रवर्ती ने मध्यलय और द्रुत लय में ये रचनाएँ पेश की हैं.बताता चलूँ अजय भाई ने उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब के दर्शन ज़रूर किये थे लेकिन सीखा उनके साहबज़ादे उस्ताद मुनव्वर अली ख़ाँ साहब से.पं.अजय चक्रवर्ती आज संगीत समारोहों में श्रोताओं के पसंदीदा गायक हैं.

तक़रीबन पन्द्रह मिनट की यह रसवर्षा आपकी सुबह को ज़रूर सुरीला बना देगी.
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5 comments:

Udan Tashtari said...

आह्हाहा!!! आनन्दम..आनन्दम!!! बहुत आभार इसे सुनवाने का!! क्या बात है.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

सुन्दर, ...आनन्द आ गया। ...धन्यवाद।

संजय पटेल said...

संगीतप्रेमी मित्र ध्यान दें !
एक बात लिखनी रह गई थी. एक जगह गाते गाते अजय दा एक जगह द्रुत बंदिश ...ऐसो निडर शुरू कर रहे हैं वहाँ दादाजी बोले हैं...तो ख़ुलासा कर दूँ कि अजय दा का इशारा उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब की तरफ़ है.घरानों के आदाब के मुताबिक गुरू या उस्ताद का वालिद दादा गुरू होता है इस लिहाज़ से.

Ashok Pande said...

तबाही!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Absolutely Magnificent !