Saturday, September 6, 2008

कोसी के पेटे से एफो़ - दूफो़ ... और तीफ़ो



एक फोनः हल्लोओ...(पगलाई कोसी के हहराने का शोर और रेलवे स्टेशन की चीखपुकार)

दूसरा फोनः हैलो (कंप्यूटर की खटपट, अखबार के दफ्तर का जल्दबाज खटराग)

एफोः मेरी गंज से आज ही पहुंचा, भाई अऱरिया में हूं ... आप जानिए कि उस इलाके में हूं जहां तीसरी कसम की शूटिंग हुई थी. राजकपूर खुद आए थे. कोसी का घटवार जहां हीरामन ने बाई जी यानि अपनी मीता को कत्था सुनाई थी.... पिंजरे वाली मुनिया का आलोक, हीरामन का गंवई निश्छल प्रेम...याद आ रहा है न. लेकिन यहां तो चारों तरफ तबाही है, जानवरों की फूली हुई लाशें और सरकारी हरामखोरी के सारे शेड्स. क्या लिखूं. सारे पुराने बिंब छितरा रहे हैं, सिर फटा जा रहा है. कुछ दो लाइन बोल दीजिए, दूर रहके ज्यादा समझ आता है. यहां तो सड़ांध, रूलाई और मौत से हालत खराब है. कुछ बोलिए ताकि खबर लिख सकूं.

दूफोः बिना तैयारी के सिर्फ सलीमा के सहारे बाढ़ कवर करने जाओगे तो सिर फटेगा ही. वहां लोग मर रहे हैं और आप बिंब तलाश रहे हैं। जो नजर आ रहा है सीधे लिखो ताकि सरकार और संस्थाओं का ध्यान छूटे इलाकों तक भी जाए और कुछ मदद पहुंचे.

एफोः बिना बिंब के लिख देंगे तो लोग बचने लगेंगे क्या. अब अखबार से कहीं सरकार की सेहत पर कोई फरक पड़ता है क्या? जरा सुनिए सीधे लिखते समय भी तो दिमाग में कोई न कोई बिंब तो होता ही है....आप बस दू लाइन कुछ बोल दीजिए. जल्दी सोचिए...मोबाइल नेटवर्क लड़खड़ा रहा है बड़ी मुश्किल से फोन लगा है.

दूफोः इतना ही फटाफट चाहिए था तो फना रेणु का ऋण जल-धन जल लेकर जाते बिंब ही बिंब मिल जाता. उसमें उस आदमी का जिक्र है जो बाढ़ में फंसे होने के बावजूद नाव पर बैठने से इसलिए इनकार कर देता है कि सेना वाले उसके कुत्ते को नहीं बिठा रहे है.... हमारा कुकुर नहीं जाएगा तो हम भी नहीं जाएगा ... फिर सेना वाले कुत्ते को बिठाते है आदमी जरा पीछे रह जाता है, कुत्ता पानी मे छपाक ... हमारा आदमी नहीं जाएगा तो हम भी नहीं जाएगा ...

एफोः अरे बुड़बक जी समझिए. ये वो वाला बाढ़ नहीं है. कुकुर बिलार छोड़िए यहां अपनी जान के अलावा किसी को कुछ नहीं दिखाई पड़ रहा है. प्रलय है ...

दूफोः तब से अब तक कुछ नहीं बदला है. मेरी गंज से आए न. जानते हो मेरी कौन थी. नील की खेती कराने आए डब्लू जी मार्टिन की इंग्लैंड से आई नई दुलहिन. जो जड़ैया बुखार से बेजार होकर अपने रेशमी, घुंघराले बालों वाले सिर गढ़ही का कीचड़ थोपते-थोपते मरी थी. मार्टिन वहां एक डिस्पेंसरी खुलवाने के लिए सालों पटना दिल्ली भटकता रहा और निराश रांची के पागलखाने में मरा. उस इलाके में कौवे को भी मलेरिया होता है.

एफोः हां हां ठीक है लेकिन ललमुनिया का आलोक और हिरामन...

दूफोः वहां हर आदमी हिरामन है. उसके जैसा ही बुड़बक, दिल का नरम और बेवकूफ. हिरामन को ही देखो- बांस और बाघ की लदनी न करने की कसम पहले ही खा चुका था. नाच मंडली की बाई को आइंदा कभी न बिठाने की कसम खाकर आगे जो थोड़ी कमाई हो सकती थी उससे भी हाथ धो बैठा.

एफोः भाई जरा सोचो...उसका कुछ घंटों का वह अमर प्रेम.

दूफोः ....बस जैसे मीता उर्फ बाई जी का क्षणभंगुर प्यार था. ठीक वैसे ही सरकारी योजनाएं, लोकतंत्र की सारी कल्याणकारी कसमें, नेता-अफसरों की नेक नीयत उन्हें थोड़ी देर के लिए सहला कर अपने ठिकाने चलीं जाती हैं.... और वे सुखाड़, बाढ़, मलेरिया, भूख से मरने के लिए वहीं छूट जाते हैं.... अ फुलिश लव व्हिच स्टिंक्स फार आल द लाइफ.

एफोः बस, बस, बास्स. हो गईल. (फोन कट जाता है)

एक फोन पटना से

एफोः का हाल है वहां?

तीफोः पूरा शहर ऐसे लोगों से भरा हुआ है जो बस चले आए हैं. अपने इलाके किसी आदमी का नाम जानते हैं बस. न मोहल्ला, न फोन नंबर न और कोई सुराग. यहीं नहीं बस नाम के सहारे मुंबई, सूरत, पंजाब तमाम जगहों के लिए उनके जत्थे निकल रहे हैं. स्टेशन पटे हुए हैं. अजीब उजबक लोग हैं. पागलों की तरह ढूंढ रहे हैं..एजी ततमा टोली के रामनेवास को देखे हैं. समझ नहीं आता क्या लिखा जाए.

एफोः पानी में बैठकर मरने का इंतजार करने से तो बेहतर है न कि किसी को खोजा जाए. सिर्फ एक नाम, एक आशा के सहारे खाली पेट, खाली जेब सूरत निकलने का मंसूबा. जिजिविषा और क्या है. जीवन यही तो है. बस यही एक बात लिखने लायक है बाकी सारा विलाप बेकार है. हो सकता अखबार की एक चिंदी किसी डूबते किशोर तक पहुंच जाए और वह माइकल फेल्पस की तरह बेअंदाज कोसी की धार चीरते हुए किनारे खड़ा हो और उंगली से वी बनाकर दुनिया को दिखाए.

दूफोः और जानते हैं चैनल वाला क्या दिखा रहा है. अभी दिखाया कि लोग अपने गाय-बछड़ों को पानी में ढकेल कर मार रहे हैं. वहां मौत बेच रहे हैं, मौत!

एफोः हो नहीं सकता कि किसान अपनी गाय को पानी में ढकेल कर मारे. वैसे भी गौ-हत्या लगेगी और फिर फसरी लगा कर भीख मांगनी पड़ेगी.

दूफोः इतना भी नहीं समझते. प्लांटेड था. बछड़ा था. कोमलता, नेह और गंवई जिंदगी के राग का प्रतीक. उसे पानी में ढकेल कर शाट दर शाट फिल्माया. आसमान में मुंह बाएं बछड़ा, कातर आंखे और असहाय बां-बां. फिर ब्लो बाई ब्लो कमेंटरी ... अब आप देख रहे हैं बछड़े की मौत को पहचान चुकी आंखें और हेल्पलेसली हिलते हाथ-पैर, कहीं जाईएगा मत, अभी मिलते हैं ब्रेक के बाद ... देखने वालों की सांस अटक गई और जुगुप्सा से कइयों ने ड्राइंग रूम के सोफे पर ही उल्टी कर मारी होगी. यही तो चाहते थे वे.

8 comments:

सतीश पंचम said...

गहरी पकड से लिखा गया लेख।

दीपा पाठक said...

बहुत बढिया, अनिल जी। बाढ से विस्थापन की त्रासदी और सरकार के साथ-साथ मीडिया का गैरजिम्मेदाराना रवैया, सब कुछ पूरी स्पष्टता के साथ उभर कर आया है इस टेलीफोनिक वार्तालाप में। बने रहें।

Ashok Pande said...

एवरेस्ट अभियान के बेस कैम्प से लेकर सेमिनार हॉल में आयोजित सम्मान समारोह तक के सारे दृश्य मय डीटेल्स से उपस्थित हैं. पता नहीं हंसा जाय या सामने पड़ी किसी चीज़ को दीवार पर मार कर चकनाचूर किया जाए. सम्मानित किए जाने वालों को पीठ पर लाद कर ले जाने वाले शेरपाओं की अनहर्ड त्रासदी का दस्तावेज़ है यह.

बहुत उम्दा!

Vineeta Yashsavi said...

बहुत सधा हुआ लेखन है आपका अनिल जी! उअह भी बहुत अच्छा है. लगातार हमारा ज्ञानवर्धन करते रहें.

Vineeta Yashsavi said...

बहुत सधा हुआ लेखन है आपका अनिल जी! यह भी बहुत अच्छा है. लगातार हमारा ज्ञानवर्धन करते रहें.

siddheshwar singh said...

आप क्या लिखते हो मेरे भाई!
सम्वेदनाओं की ऐसी पकड़ परतु .. पानी में घिरे लोग ..
और क्या कहूं ?

मुनीश ( munish ) said...

APKE STYLE KI TAREEF CONTENT KI SERIOUSNESS KO KHA JAYEGI & THEN THERE WILL BE NO DIFFERENCE BETWEEN US AND 'THEM' YANI CHANNEL PRASADS SO ITNA HI KEHTA HOON KI ''YAHAN AATE RAHIYE''.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

vकई दिनों से बिहार के ऊपर उड़ रहा हूँ !बहुत सारे लोगों की तरह मैं भी यही सोच रहा हूँ कि क्या किया जाए , मगर जैसे कि कुछ भी करने का कोई बहाना नहीं होता,वैसे ही कुछ न करने के सौ बहाने होते हैं !सो जैसे धरती के लोग जैसे अपने घर के दडबों में कैद हैं,वैसे ही मैं भी बेशक खुले आसमान में तैर रहा हूँ ,मगर हूँ एक तरह से दड्बो में ही ....!चारों और जो मंज़र देख रहा हूँ ,मेरी रूह कांप रही है .....पानी ऐसा सैलाब ....तिनकों की तरह बहते लोग ,पशु और अन्य वस्तुएं ......बेबसी,लाचारी,वीभत्सता,आंसू,कातारता,पीडा,यंत्रणा.....और ना जाने क्या-क्या ...! उपरवाला दुनिया बनाकर क्या यही सब देखता रहता है?सीधे शब्दों में बात कहानी मुश्किल हो रही है,थोड़ा बदलकर कहता हूँ ......
ये जो मंज़र-ऐ विकराल है .....क्या है ............. हर तरफ़ हश्र है,काल है .......क्या है ?c
पानी-ही-पानी है उफ़ ...हर जगह ,.................. कोशी क्यूँ बेकरार है ......क्या है ?
डबडबाई है आँख हर इंसान की ,................. बह रही है ये बयार है ...क्या है?
लीलती जाती है नदी सब कुछ को ,.............. गुस्सा क्यूँ इस कदर है .....क्या है ?
.....मुझको अपने ही रस्ते चलने दो ,........... ख्वाहिशें-आदम तो दयार है ..क्या है ?
मैं तो सबको ही भरती चलती हूँ ...,............. तुम बनाते हो मुझपे बाँध ...क्या है ?
मुझको हंसने दो.. खिलखिलाने दो ,................ मुझको छेडो ना इस कदर.. क्या है ?
कोई आदम को जा कर समझाओ,.................... धरती का चाक गरेबां है क्या है ?
हर तरफ़ खौफ से बेबस आँखें हैं,....................... मौत का इंतज़ार है .....क्या है ?
थाम लो ना इन सबको बाहों में ............कर रहे जो ये फरियाद है ...क्या है ?
कोई आदम का मुकाम समझाओ .......हर कोई क्यूँ बेकरार है ....... क्या है ?
जो भी बन पड़ता है इनको दे आओ .....वरना खुदाई भी शर्मसार है ...क्या है ?
किसने छीना है इनका चैनो-सुकून .....वो नेता है, अफसरान है .....क्या है ?
इनके हिस्से का कुछ भी मत खा जाना ,दोजख भी जाओगे तो पूछेंगे क्या है ?
नक्शे पे अब कुछ नज़र नही आता ....बाढ़ है या कि बिहार है .....क्या है ?
साल- दर-साल ये घटना होती है ,होती चली आ रही है ,हजारों लोग हर साल असमय काल-कलवित हो रहे है ,मगर ऐसी लोमहर्षक घटनाओं में भी तो अनेकानेक लोगों की तो चांदी ही कट रही है ! लोग ज़रूरत का सामान भी कई गुना ज्यादा महँगा बेच रहे हैं !नाव वालों का भाव शेयरों की तरह चढा हुआ है ! बहुत सारे राहतकर्मी ग़लत कार्यों में लगे हुए हैं !राहतराशि और सामान बाँटने वाले बहुत सारे लोग यह सब कुछ बीच में ही हजम कर जा रहे है !यह तो गनीमत है कि ऐसे मौकों पर अधिसंख्य लोगों में मानवता कायम रहती है ,सो बहुत काम सुचारू रूप से हो जाता है ,वरना तो पीड़ित लोगों का भगवान् ही मालिक होता !!मैं दंग हूँ कि ऐसे आपातकाल में भी कुछ लोग ऐसे निपट स्वार्थी कैसे हो सकते है ,जो शर्म त्याग कर इन दिनों भी गंदे और नीच कर्मों में ही रत रहे !!हे भगवान् इन्हे माफ़ कभी मत करना !!