Sunday, September 7, 2008

इब्बार रब्बी की पड़ताल

इब्बार रब्बी पिछले कई सालों से ऐसी कविता लिख रहे हैं, जो अपने स्वभाव में निहायत सार्वजनिक और `स्पेक्टैकुलर´ है। उनके यहां निजी मनोभाव और आत्मगत प्रसंग किसी विशेष निरूपण की मांग नहीं करते - आम चीज़ों की तरह निष्ठुरता और भोलेपन से दर्शा दिए जाते हैं। यह एक ऐसी कविता है, जिसके ऊपर कोई छत या गुम्बद नहीं है, वह खुले आकाश के नीचे लिखी जा रही है। वह समकालीन हिंदी कविता के सामने प्रस्तुत अनेक आंतरिक समस्याओं से बची हुई है, और इतिहास तथा समाज से अपने संबंध के चुनौती भरे पहलुओं का बिलकुल अलग और सीधे तरीके से सामना करती है - असद ज़ैदी

इस कविता को यहाँ सुन भी सकते हैं !
एक कविता 'पड़ताल'

सर्वहारा को ढूंढने गया मैं
लक्ष्मीनगर और शकरपुर
नहीं मिला तो भीलों को ढूंढा किया
कोटड़ा में
गुजरात और राजस्थान के सीमांत पर
पठार में भटका
साबरमती की तलहटी
पत्थरों में अटका
लौटकर दिल्ली आया

नक्सलवादियों की खोज में
भोजपुर गया
इटाढ़ी से धर्मपुरा खोजता फिरा
कहां कहां गिरा हरिजन का खून
धब्बे पोंछता रहा
झोपड़ी पे तनी बंदूक
महंत की सुरक्षा देखकर
लौट रहा मैं
दिल्ली को

बंधकों की तलाश ले गई पूणिZयां
धमदहा, रूपसपुर
सुधांशु के गांव
संथालों गोंडों के बीच
भूख देखता रहा
भूख सोचता रहा
भूख खाता रहा
दिल्ली आके रुका

रींवा के चंदनवन में
ज़हर खाते हरिजन आदिवासी देखे
पनासी, झोटिया, मनिका में
लंगड़े सूरज देखे
लंगड़ा हल
लंगड़े बैल
लंगड़ गोहू, लंगड़ चाउर उगाया
लाठियों की बौछार से बचकर
दिल्ली आया

थमी नहीं आग
बुझा नहीं उत्साह
उमड़ा प्यार फिर फिर
बिलासपुर
रायगढ़
जशपुर
पहाड़ में सोने की नदी में
लुटते कोरबा देखे
छिनते खेत
खिंचती लंगोटी देखी
अंबिकापुर से जो लगाई छलांग
तो गिरा दिल्ली में

फिर कुलबुलाया
प्यार का कीड़ा
ईंट के भट्ठों में दबे
हाथों को उठाया
आज़ाद किया
आधी रात पटका
बस अड्डे पर ठंड में
चौपाल में सुना दर्द
और सिसकी
कोटला मैदान से वोट क्लब तक
नारे लगाता चला गया
`50 लाख बंधुआ के रहते
भारत मां आज़ाद कैसे´
हारा थका लौटकर
घर को आया

रवांई गया पहाड़ पर चढ़ा
कच्ची पी बड़कोट पुरोला छाना
पांडवों से मिला
बहनों की खरीद देखी
हर बार दौड़कर
दिल्ली आया !

5 comments:

siddheshwar singh said...

बहुत ही अच्छी कविता, सुनी थी आज पढ़ भी ली,ऐसे ही प्रस्तुति करते रहो शिरीष और क्या कहूं? बाकी सब ठीकठाक है!

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छी कविता पढ़वाई एवं सुनवाई. आभार.

वर्षा said...

दिल्ली के खूंटे से पूरा देश देख लिया..बहुत ही सुंदर कविता

वर्षा said...

दिल्ली के खूंटे से पूरा देश देख लिया..बहुत ही सुंदर कविता

Ek ziddi dhun said...

इब्बार रब्बी की तारीफ इसीलिए है, हालांकि वे भी महान लोगों की दुनिया से बाहर ही हैं