Monday, September 8, 2008

पंकज श्रीवास्तवः नए कबाडी का स्वागत



इस नए कबाड़ी का परिचय कराने के लिए कहा गया तो मेरे भीतर ढेर सारा प्यार भर आया है, जिसने इस मौके के लिए आवश्यक चपलता को डुबो दिया है.

पहली बार उसे देखा तो वह बीएचयू गेट पर छात्रसंघ चुनाव में, गले में गमछा डाले, माइक के सामने आवाज का पहलवान बना खड़ा था। वह विपक्षियों की सभा उखाड़ने के लिए खड़ा हुआ था। नुक्कड़ नाटक करते-करते नाट्य शास्त्र पर पीएचडी कर चुका है। कुछ लोग उसे डाक्क साहब भी कहने लगे हैं जो उसके कपाल से पीछे खिसकती केश-रेखा पर फबता भी है। हमने अपनी महत्वाकांक्षाओं को लफंडरपन के नीचे ढक कर, पत्रकारिता के धंधेपन को जरा कोसते हुए एक अखबार में साथ काम किया फिर वह चैनल में गया और थोड़े दिनों के लिए उनका सितारा हो गया। पहली बार नार्थ-ईस्ट जा रहा था तो उसने (ठसाठस भरने के लिए) कई साल पुरानी एक डायरी दी जो उसे इरफान ने दी थी- कानपुर की टेनरी की गंध से बोझिल उस शाम अचानक लगा था कि कोई बहुत लंबा धागा है जो हमारे बेलगाम अरमानों को मुलायमियत से घेरता है। ईगो की खाद और व्यक्तिवाद के पानी से खिलते धंधे में होने के बावजूद वह कह सकता है मैं जो कुछ भी हूं आंदोलन और विचारधारा से बना हूं और पार्टी ने ही जीवन की भव्यता और शक्ति पर विश्वास करना सिखाया है। मैं चाहता हूं कि नानपोलिटिकल होने के गुरूर से टेढ़े, ड्राइंग रूम बहसों के हीरो उससे जिंदगी में एक बार जरूर मिलें।

आजकल दिल्ली में है। सदा गाने को आतुर रहता है, कोई मौका चूकता नहीं। आशा है ढेर सारा कबाड़ बटोर कर लाएगा और हमारे ठेले के पहियों की तीलियों को कभी चैन नहीं लेने देगा। कुनबे की तरफ से भीषण स्वागत। एक नफीस कबाड़ी की एक लाइन का दो बटा तीन हिस्सा उड़ाते हुए कहता हूं - आओ हे गले के आत्मविश्वासी बनवारी!

7 comments:

siddheshwar singh said...

स्वागत है एक कबाड़ी की तरफ़ से. चले आओ भैया ,रंगीले मैं वारी रे!

शिरीष कुमार मौर्य said...

पंकज भाई का स्वागत!
कानपुर के दिनों की एक उलाहना भरी चिट्ठी उनकी मेरे पास है। हम अधिक सम्पर्क में नहीं रहे पर उतना तो रहे कि सम्पर्क सम्बन्ध का आभास देने लगे।
नैनीताल में हूं जहां वो और उदय यादव नुक्कड़ नाटक की टीम लेकर आते थे।
पंकज भाई को ज़हूर आलम की भी ओर से याद!

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

हार्दिक स्वागत है पंकज जी का!

VIMAL VERMA said...

अहा पंकज जी आप भी आ गये तहे दिल से शुक्राना कुबूल कीजिये........स्वागत है भाई....आप ऐसे समय पर आये कि हमब थोड़ा दूर हो गये हैं....फिर भी अपने कबाड़ से मोती तो ज़रूर निकालेंगे ऐसी मुझे आशा है।

अजित वडनेरकर said...

स्वागत है भाई...
लाओ, रखो, बांटो,
देर मत करो...

ravindra vyas said...

pankajji ka swagat hai!

Ashok Pande said...

अनिल भाई,

पंकज को यहां खेंच लाने का शुक्रिया! अब रंग जमेगा.