कल आपने अस्धना गांव की रामलीला देखी थी. आज देखिये इसी गांव में होली के उपरान्त खेले जाने वाले एक विशिष्ट नाटक की झलक. इस नाटक की ख़ासियत यह होती है कि गांव के बुज़ुर्गवार इस के आयोजक, स्टेज मैनेजर, मेक अप आर्टिस्ट्स, निर्देशक इत्यादि तो होते ही हैं, इस में अधिकतर भूमिकाएं भी वही निभाते हैं.
इन तस्वीरों को यहां लगाते हुए मुझे उम्मीद जगती है कि नौजवान पीढ़ी इस तरह की सारी सामाजिक परम्पराओं को जीवित रखने का प्रयास करते रहेंगे.
6 comments:
फ़ोटू तो बड़े अच्छे हैंगे. उम्मीद है कि जे परम्परा आगे भी जागी. एक गुजारिश जे है बाबू जी कि इन फ़ोटुन पै कुछ चिप्पियां जरूर लगाय देव, ईमाअन से कै रिया हूं कि इनकी खपसूरती और भड़ जागी.
बाकी सब ठीक चल्लिया? अपनी तो सई है.
जै हो , जै हो!!
फोटो देख कर गांव की याद आ गई । कालेज से जब छुट्टी होती है तो गांव जाते, वहां रामलीला और नौटंकी का लुत्फ उठाते । वाकई मजा आ गया है, पूरी रामलीला और नौटंकी आंखों के सामने दिख गई..
फोटो देख बहुत कुछ याद आया कितना पुराना!!आभार इस प्रस्तुति के लिए.
तस्वीरें बहुत उम्दा हैं, एक शानदार कोशिश। इन्हें देखकर बीते हुए दस साल याद आते हैं। जब मैं इस गांव में किसी शादी में गया था। आजतक[dehli] में काम करते हुए रामलीला और ऐसी लोककलाओं से सामना तो अक्सर होता है लेकिन सच कहूं तो सब मशीनी होता है, भाई लेकिन आपकी पोस्ट की गई तस्वीरें सचमुच में जिंदा हैं जिनमें जीवन की धड़कन सुनाई देती है।
धन्यवाद, राजेंद्र
रोहित, मुझे पता है आज तुम अल्मोड़ा में हो. कल वहां के ऐतिहासिक द्शहरे की तुम्हारी तस्वीरों का इन्तज़ार है.
ये फ़ोटू भी अजब हैं.
अजब के अलावा ग़ज़ब भी!!
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