Sunday, October 5, 2008

अनायास कविता कहता बच्चा

बड़े भैया
टीवी देख रहे हैं
पिताजी अखबार पढ़ रहे हैं
दादी मां
मन्दिर जा रही है
प्यारी बिल्ली
बाहर धूप में सो रही है
मेरी मां
सुबह से
लगातार
लगातार
कपड़े धो रही है ।
( अवतार एनगिल की यह कविता ' नया ज्ञानोदय' के अंक - अक्टूबर २००६ से साभार ली गई है )

6 comments:

Ashok Pande said...

कबाड़ी ज़बान में - बौफ़्फ़ाइन!

वीनस केसरी said...

हर घर का ये ही हाल है
अच्छी कविता



वीनस केसरी

Udan Tashtari said...

सुन्दर शब्द चित्रण!!

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

लगता है बच्चा आगे चलकर क्रिकेट कमेण्ट्रेटर बनेगा। बिलकुल सच्चा आँखॊं देखा हाल बताता है।

सुन्दर कविता। यहाँ लाने का आभार।

महेन said...

बच्चा ही लिखा है क्या? सही है।

Vineeta Yashsavi said...

kavita aur photo dono hi bahut achhe lagaye hai apne.