Saturday, October 11, 2008

येहूदा आमीखाई की तीन कविताएँ - प्रेम की स्मृतियां

पिछली पोस्ट के क्रम में ....
(अशोक दा ने मुझे आमीखाई से परिचित कराया और मैं इस कवि के बीहड़ सम्मोहन में भटक गया। अशोक ने और मैंने आमीखाई के अनुवादों पर एक साथ काम किया और परिणाम एक किताब `धरती जानती है´ के रूप में सामने आया जो 2006 में संवाद प्रकाशन से छपी। अशोक की और मेरी कई सारी साझा योजनाओं में यही एक योजना थी, जो सफल हो सकी। एक स्तर पर हम दोनों ही एक विशिष्ट किस्म के झक्की हैं और बहुत भीतरी रिश्तों और निकटताओं के बावजूद बहुत कम काम हम साथ कर पाते हैं। यहां प्रस्तुत है मेरे द्वारा अनूदित एक कविता-श्रृंखला ...)

1. छवि

हम कल्पना नहीं कर सकते
कि हम कैसे जियेंगे एक-दूसरे के बिना
ऐसा हमने कहा

और तब से
हम रहते हैं इसी एक छवि के भीतर
दिन-ब-दिन
एक-दूसरे से दूर, उस मकान से दूर
जहां हमने वो शब्द कहे

अब जैसे कि बेहोशी की दवा के असर में होता है
दरवाज़ों का बंद होना और खिड़कियों का खुलना
कोई दर्द नही !

वह तो आता है बाद में !

2. शर्तें और स्थितियां

हम उन बच्चों की तरह थे
जो समुद्र से बाहर आना नहीं चाहते
इसी तरह नीली रात आई
और फिर काली

हम क्या वापस ला पायेंगे अपने बाक़ी के जीवन के लिए
एक लपट भरा चेहरा
जलती हुई झाड़ियों -सा
जो ख़त्म नहीं कर सकेगा ख़ुद को
हमारे जीवन के अखीर तक

हमने अपने बीच एक अजीब-सा बंदोबस्त किया
यदि तुम मेरे पास आती हो, तो मैं आऊंगा तुम तक
अजीब-सी शर्तें और स्थितियां
यदि तुम भूल जाती हो मुझको, तो मैं तुम्हें भूल जाऊंगा
अजीब-से क़रार और प्यारी बातें

बुरी बातें तो हमें करनी थी
हमारे बाद के बाक़ी जीवन में !

3. वसीयत का खुलना

मैं अभी कमरे में हूं
अब से दो दिन बाद मैं देखूंगा इसे
केवल बाहर से
तुम्हारे कमरे का वह बंद दरवाज़ा
जहां हमने
सिर्फ़ एक-दूसरे से प्यार किया, पूरी मनुष्यता से नहीं

और तब
हम मुड़ जायेंगे नए जीवन की ओर
मृत्यु की सजग तैयारियों वाले विशिष्ट तौर-तरीक़ों के बीच
जैसे कि बाइबिल में
मुड़ जाना दीवार की ओर

जिस हवा में हम सांस लेते हैं
उसके भी ऊपर जो ईश्वर है जिसने हमें
दो आंखे और पांव दिए
उसी ने बनाया हमें दो आत्माएं भी

और वहां बहुत दूर
किसी दिन हम खोलेंगे इन दिनों को
जैसे कोई खोलता है वसीयत
मृत्यु के कई बरस बाद !

3 comments:

पारुल "पुखराज" said...

padhvaney ka shukriyaa....saath hi ye bhi ki ek ek kar post kijiye...to padhney aur gun ney ka mazaa milta hai...

Unknown said...

Sir :: aapnbe bahut achche anuvaadkiye hain. aap dwaara anudit kaaya-kitaab mere paas hain. ummeed hain aap aage bhi sarthak rachnaon se humein roobaroon karwaate rahenge.
piyush daiya

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचनाए प्रेषित की है। आभार।