......यदि आप नीचे दी गई (बे-तरतीब) पंक्तियों को कविता या कविता जैस कुछ मानने जा रहे हैं तो इस बाबत यह कहना / बताना जरूरी-सा लगता है कि यह एक सहकारी प्रयास था - एक सामूहिक कविकर्म। वर्ष २००५ की गर्मियों में १८ जून से ९ जुलाई तक एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के सिलसिले में शिमला में रहने का सुयोग बना था। उस दौरान पढ़ने-लिखने, प्रोजेक्ट-प्रेजेंटेशन,परिचर्चा-परीक्षा के साथ /अलावा खूब मजे किए.समरहिल,बालूगंज और शिमला के इस अविस्मरणीय प्रवास में अनौपचारिक रूप से छह कविता प्रेमियों का एक ऐसा ग्रुप बन गया था जिसके सदस्य भारत के अलग अलग हिस्सों से आए थे लेकिन कविता के अदॄष्य तंतुजाल उन्हें एक किए हुए थे.इसी ग्रुप द्वारा समकालीन हिन्दी कविता के कुछ चर्चित हस्ताक्षरों के कविता संगहों को गूंथ - पिरो कर नीचे लिखी कविता (!) तैयार की गई थी और कोर्स के समापन समारोह में 'कविता पहेली' के रूप मे पेश भी की गई थी. आप इसे पढ़ें - देखें ,हो सकता है ठीक लगे.
पहाड़ पर कविता जैसा कुछ.....
हम आए थे पहाड़ पर
'गाँव का बीजगणित' १ पढ़ने
और खो गए
'कागज के प्रदेश में' २
चलो वहां चलें
जहां 'जमीन पक रही है' ३
और जिस जगह
'एक दिन बोलेंगे पेड़' ४
और होगा 'युग परिवर्तन'. ५
कभी हमने देखी थी
'पहाड़ पर लालटेन ६
जो 'अंधेरे में' ७ टिमटिमा रही थी
और आसमान में 'चाँद का मुंह टेढ़ा' ८ था.
कुछ लोग भटक रहे थे
'संसद से सड़क तक' ९
'दूसरे प्रजातंत्र की तलाश में' १०
और कुछ (लोग) अटके थे
'गंगा तट' ११ पर
'साए में धूप' १२ खोजते हुए
'चकमक की चिंगारियों' १३ के साथ
'आज 'निरुपमा दत्त बहुत उदास' १४ थी
हालांकि वह जानती थी
कि 'बीच का कोई रास्ता नहीं होता' १५
सड़क पर घूमता हुआ 'रामदास' १६
'आत्महत्या के विरुद्ध' १७
इस 'अकाल वेला में' १८
खोज रहा था - 'अपनी केवल धार' १९
'बस्स, बहुत हो चुका' २०
'गूंगा नहीं था मैं' २१
'कल सुनना मुझे' २२
'दो पंक्तियों के बीच' २३
'इसी दुनिया में' २४
इसी जगह
जहां 'दुनिया रोज बनती है' २५
_____________
१-कुमार कॄष्ण २-संजय कुंदन ३-केदारनाथ सिंह ४-राजेश जोशी ५-सुदर्शन वशिष्ठ ६-मंगलेश डबराल ७-मुक्तिबोध ८-मुक्तिबोध ९-धूमिल १०-धूमिल ११-ज्ञानेन्द्रपति १२-दुष्यंत कुमार १३- मुक्तिबोध १४-कुमार विकल १५-पाश १६-रघुवीर सहाय १७-रघुवीर सहाय १८-केदारनाथ सिंह १९-अरुण कमल २०-ओमप्रकश बाल्मीकि २१-जयप्रकाश कर्दम २२-धूमिल २३-राजेश जोशी २४-वीरेन डंगवाल २५-आलोक धन्वा
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'गाँव का बीजगणित' १ पढ़ने
और खो गए
'कागज के प्रदेश में' २
चलो वहां चलें
जहां 'जमीन पक रही है' ३
और जिस जगह
'एक दिन बोलेंगे पेड़' ४
और होगा 'युग परिवर्तन'. ५
कभी हमने देखी थी
'पहाड़ पर लालटेन ६
जो 'अंधेरे में' ७ टिमटिमा रही थी
और आसमान में 'चाँद का मुंह टेढ़ा' ८ था.
कुछ लोग भटक रहे थे
'संसद से सड़क तक' ९
'दूसरे प्रजातंत्र की तलाश में' १०
और कुछ (लोग) अटके थे
'गंगा तट' ११ पर
'साए में धूप' १२ खोजते हुए
'चकमक की चिंगारियों' १३ के साथ
'आज 'निरुपमा दत्त बहुत उदास' १४ थी
हालांकि वह जानती थी
कि 'बीच का कोई रास्ता नहीं होता' १५
सड़क पर घूमता हुआ 'रामदास' १६
'आत्महत्या के विरुद्ध' १७
इस 'अकाल वेला में' १८
खोज रहा था - 'अपनी केवल धार' १९
'बस्स, बहुत हो चुका' २०
'गूंगा नहीं था मैं' २१
'कल सुनना मुझे' २२
'दो पंक्तियों के बीच' २३
'इसी दुनिया में' २४
इसी जगह
जहां 'दुनिया रोज बनती है' २५
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१-कुमार कॄष्ण २-संजय कुंदन ३-केदारनाथ सिंह ४-राजेश जोशी ५-सुदर्शन वशिष्ठ ६-मंगलेश डबराल ७-मुक्तिबोध ८-मुक्तिबोध ९-धूमिल १०-धूमिल ११-ज्ञानेन्द्रपति १२-दुष्यंत कुमार १३- मुक्तिबोध १४-कुमार विकल १५-पाश १६-रघुवीर सहाय १७-रघुवीर सहाय १८-केदारनाथ सिंह १९-अरुण कमल २०-ओमप्रकश बाल्मीकि २१-जयप्रकाश कर्दम २२-धूमिल २३-राजेश जोशी २४-वीरेन डंगवाल २५-आलोक धन्वा
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( इस सामूहिक कविता प्रयास से जुड़े जो छह लोग थे उनके नाम हैं - इकरार अहमद (उत्तर प्रदेश) , देवेन्द्र चौबे (दिल्ली) , अनिल धीमान (पंजाब) , नरेश कोहली (मध्य प्रदेश) , गोपीलाल मेहरा (राजस्थान) और सिद्धेश्वर सिंह (उत्तराखंड). साथ लगा चित्र समरहिल रेलवे स्टेशन का है जहां रात के भोजन के बाद सूने प्लेटफार्म पर हमारी महफ़िल जमती थी और रेल की ठंडी पटरियों के साथ किशोर, युवा और बुजुर्ग -बलिष्ठ देवदार वॄक्ष श्रोताओं में शामिल हुआ करते थे )
3 comments:
वाह सिद्धेश्वर भाई, प्रयास गजब था। सामूहिक कविता-कर्म।
सुन्दर!
अत्यंत सुंदर प्रस्तुति !! धन्यवाद
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