येहूदा आमीखाई ने युद्ध और आतंकवाद के विद्रूप और उसकी त्रासदियों को अपनी कविता का ज़रूरी और महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया. उनकी कविता मनुष्यता की कविता है. अच्छाई और उम्मीद की कविता. उन्हें आप जितना पढ़ते जाते हैं आप पाते हैं कि यह कवि इज़राइल भर की बात नहीं कर रहा, उसका सरोकार दुनिया भर में हो रहे युद्धों और आम जन के दुःखों से है. उनकी कविता श्रृंखला 'देशभक्ति के गीत' से एक छोटा अंश प्रस्तुत है:
मेरे प्रेम भी नापे जाते हैं युद्धों से
मैं कह रहा हूं यह गुज़रा दूसरे विश्वयुद्ध के बाद
हम मिले थे छह दिनी युद्ध के एक दिन पहले
मैं कभी नहीं कहूंगा '४५-'४८ की शान्ति के पहले
या '५६-'५७ की शान्ति के दौरान
लेकिन शान्ति के बारे में जानकारी
एक देश से दूसरे देश पहुंचती है
बच्चों के खेलों की तरह
जो लगभग एक से होते हैं हर जगह.
3 comments:
युद्ध के विरुद्ध शांति के विस्तार की कविता है। मगर युद्ध की समाप्ति के लिए भी युद्ध तो करना होता है।
बहुत सुंदर
!!!
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