Thursday, December 25, 2008

बड़ा दिन' पर बाँसुरी

(यह पोस्ट भाई अशोक पांडे से क्षमायाचना के साथ कि उनकी पोस्ट को 'ओवरलैप' करने की धॄष्टता कर रहा हूँ. क्या करूँ दोस्त ! ब्लागरी आपकी ही सिखाई हुई है , सो अब .. आप ही समझो!)

इंदौर नगर के वासी प्रिय भाई सलिल दाते हैं.
बाँसुरी बजाते नहीं , वह तो बाँसुरी में गाते हैं.
प्रेमी हैं मदन मोहन के और संगीत के मर्मज्ञ.
ईश्वर करे जारी रहे उनका विलक्षण वेणु-यज्ञ.
यह सुरमई सौगात भाई संजय पटेल ने भिजवाई है.
'कबाड़खाना' के प्रेमियों को 'बड़ा दिन' की बधाई है।




आइए आज सुनते हैं उर्दू कहानी को नई ऊँचाइयाँ बख्शने वाले मशहूर फिल्मकार राजेन्द्र सिंह बेदी की एक अद्भुत सिनेमाई कृति १९७० में रिलीज 'दस्तक' में संकलित मजरूह सुल्तानपुरी की यह कालजयी कविता - 'माई री...' जिसे अपनी बाँसुरी पर गा रहे हैं सलिल दाते.




माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की

ओस नयन की उनके मेरी लगी को बुझाए ना
तन - मन भिगो दे आके ऐसी घटा कोई छाए ना
मोहे बहा ले जाए ऐसी लहर कोई आए ना
ओस नयन की उनके मेरी लगी को बुझाए ना
पड़ी नदिया के किनारे मैं प्यासी....
माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की

पी की डगर में बैठे मैला हुआ रे मोरा आँचरा
मुखड़ा है फीका-फीका नैनों में सोहे नाहीं काजरा
कोई जो देखे मैया प्रीत का वासे कहूं माजरा
पी की डगर में बैठा मैला हुआ रे मोरा आँचरा
लट में पड़ी कैसी बिरहा की माटी.....
माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की

आँखों में चलते फिरते रोज मिले पिया बावरे
बैंयाँ की छैयाँ आके मिलते नहीं कभी साँवरे
दुख ये मिलन का लेकर काह करूँ कहाँ जाउँ रे
आँखों में चलते फिरते रोज मिले पिया बावरे
पाकर भी नहीं उनको मैं पाती....
माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की


(पुनश्च : 'दस्तक' फ़िल्म जब टीवी के परदे पर पहली बार देखी थी तो यह सिर्फ देखना भर नहीं था।उस अनुभव और इस फ़िल्म पर एक अलग पोस्ट जल्द ही... वैसे बेहद खुशी होगी कि कोई और सम्मानित 'कबाड़ी' यह काम कर देवे , अगर ठीक समझे तो !)

6 comments:

Ashok Pande said...

बेहद सुरीला और शायद ओरिजिनल गाने से ज़्यादा दर्दभरा. बाबूजी क्या मुझे बाकी के गाने मेल कर सकते हैं एक - एक कर.

सलिल दाते को सलाम. और भाई संजय पटेल को भी.

siddheshwar singh said...

जरूर साहब! सीडी बना के ही ना भेज दूँ. नये साल का 'तोफ़ा' समज लीजो. आपका दिया दीवाली को तोफ़ा तो अभी बाट जोह रिया है आपकी.घर कब आओगे?

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बेहद सुरीली बाँसुरी बजाई है -ँजय भाई और आपके जाल घर का शुक्रिया सदा बढिया प्रस्तुति के लिये

Vineeta Yashsavi said...

bahed surili Bansuri sunwayi apne.
maza aa gaya.

deepak sanguri said...

main nahi sun pa raha hoo, dhukhi houn bahut,laptop barbad ho gaya sayad......help karo bhai ,koi sun raha hai kya.......? mar bhi sakta hoo.. agar or 1 or 2 din main na sun paya ........

Smart Indian said...

बहुत ही सुंदर, धन्यवाद!