Monday, January 26, 2009

एक अमरीकी करोड़पति का सौ साल पहले लिया गया इन्टरव्यू: भाग दो

(पिछली पोस्ट से जारी ...)

जब हमारे मुल्क में बहुत सारे ऐसे आप्रवासी हो जाएंगे जो कम पैसे पर काम करें और खूब सारी चीजें खरीदें तब सब कुछ ठीक हो जाएगा.

उसकी बच्चों जैसी बुद्धिमत्ता के सामने मैं खुद को बहुत छोटा पा रहा था।

"लेकिन अगर एक आदमी कई लोगों को बर्बाद कर रहा हो तो क्या वह व्यक्तिगत काम माना जाएगा?" मैंने विनम्रता के साथ पूछा।

"बर्बादी?" आंखें फैलाते हुए उसने जवाब देना शुरू किया "बर्बादी का मतलब होता है जब मजदूरी की दरें ऊंची होने लगें। या जब हड़ताल हो जाए। लेकिन हमारे पास आप्रवासी लोग हैं। वो खुशी खुशी कम मजदूरी पर हड़तालियों की जगह काम करना शुरू कर देते हैं। जब हमारे मुल्क में बहुत सारे ऐसे आप्रवासी हो जाएंगे जो कम पैसे पर काम करें और खूब सारी चीजें खरीदें तब सब कुछ ठीक हो जाएगा।"

वह थोड़ा सा उत्तेजित हो गया था और एक बच्चे और बूढ़े के मिश्रण से कुछ कम नजर आने लगा था।उसकी पतली भूरी उंगलियां हिलीं और उसकी रूखी आवाज मेरे कानों पर पड़पड़ाने लगी:

"सरकार? ये वास्तव में दिलचस्प सवाल है। एक अच्छी सरकार का होना महत्वपूर्ण है उसे इस बात का ख्याल रहता है कि इस देश में उतने लोग हों जितनों की मुझे जरूरत है और जो उतना खरीद सकें जितना मैं बेचना चाहता हूं; और मजदूर बस उतने हों कि मेरा काम कभी न थमे। लेकिन उससे ज्यादा नहीं! फिर कोई समाजवादी नहीं बचेंगे। और हड़तालें भी नहीं होंगी। और सरकार ने बहुत ज्यादा टैक्स भी नहीं लगाने चाहिए। लोग जो देना चाहें वह मैं लेना चाहूंगा। इसको मैं कहता हूं अच्छी सरकार।"

"वह बेवकूफ नहीं है। यह एक तयशुदा संकेत है कि उसे अपनी महानता का भान है।" मैं सोच रहा था। "इस आदमी ने वाकई राजा ही होना चाहिए …"

"मैं चाहता हूं" वह स्थिर और विश्वासभरी आवाज में बोलता गया "कि इस मुल्क में अमन चैन हो। सरकार ने तमाम दार्शनिकों को भाड़े पर रखा हुआ है जो हर इतवार को कम से कम आठ घण्टे लोगों को यह सिखाने में खर्च करते हैं कि कानून की इज्ज्त की जानी चाहिए। और अगर दार्शनिकों से यह काम नहीं होता तो वह फौज बुला लेती है। तरीका नहीं बल्कि नतीजा ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। गाहक और मजदूर को कानून की इज्ज्त करना सिखाया जाना चाहिए। बस!" अपनी उंगलियों से खेलते हुए उसने अपनी बात पूरी की।

"नहीं यह शख्स़ बेवकूफ नहीं है। राजा तो यह हर्गिज नहीं हो सकता।" मैंने विचार किया और फिर उससे पूछा : "क्या आप मौजूदा सरकार से संतुष्ट हैं?"

उसने तुरन्त जवाब नहीं दिया।

"असल में वो जितना कर सकती है उस से कम कर रही है। मैं कहता हूं : आप्रवासियों को फिलहाल देश में आने देना चाहिए। लेकिन हमारे यहां राजनैतिक आजादी है जिसका वो लुत्फ उठाते हैं सो उन्हें इसकी कीमत देनी चाहिए। उन में से हर किसी ने अपने साथ कम से कम पांच सौ डालर लाने चाहिए। ऐसा आदमी उस आदमी से दस गुना बेहतर है जिसके पास फकत पचास डालर हों। जितने भी बुरे लोग होते हैं : मिसाल के लिए आवारा, गरीब, बीमार और बाकी ऐसे ही, वो भी किसी काम के नहीं हाते।"

"लेकिन" मैंने श्रमपूर्वक कहा "इस की वजह से आप्रवासियों की तादाद कम होने लगेगी।"

बूढ़े ने सहमति में सिर हिलाया।

"मैं प्रस्ताव दूंगा कि कुछ समय के बाद उनके लिए हमारे देश के दरवाजे हमेशा के लिए बन्द कर दिए जाएं ॰॰॰ लेकिन फिलहाल के लिए हर किसी ने अपने साथ थोड़ा बहुत सोना लेकर आना चाहिए ॰॰॰ जो हमारे देश के लिए अच्छा होगा। इसके अलावा यह भी जरूरी है कि यहां के हिसाब से ढलने के लिए उन्हें ज्यादा समय दिया जाए। समय के साथ साथ यह सारा पूरी तरह बन्द कर दिया जाना चाहिए। अमेरीकियों के लिए जो भी काम करना चाहे वह इस के लिए आजाद हे लेकिन यह कतई जरूरी नहीं कि उन्हें भी अमरीकी नागरिकों की तरह अधिकार दिए जाएं। वैसे भी हमने पर्याप्त अमेरिकी पैदा कर लिए हैं। उन में से हर कोई हमारी आबादी बढ़ा पाने में सज्ञाम है। यह सब सरकार का सिरदर्द है। लेकिन इस सब को एक दूसरे आधार पर व्यवस्थित किए जाने की जरूरत है। सरकार के सारे सदस्यों को औद्योगिक इकाइयों में शेयर दिए जाने चाहिए ताकि वे देश के फायदे की बात अच्छे से और जल्दी सीख सकें। फिलहाल तो मुझे सीनेटरों को खरीदना है ताकि मैं उन्हें ॰॰॰ इस या उस बात के लिए पटा सकूं। तब उसकी जरूरत भी नहीं पड़ेगी।"

उसने आह भरी और अपनी टांग को झटकते हुए जोड़ा :

"जिन्दगी को सही कोण से देखने के लिए आपको बस सोने के पहाड़ की चोटी पर खड़ा होना होता है"

"और धर्म के बारे में आप का क्या ख्याल है?" अब मैंने प्रश्न किया जबकि वह अपना राजनैतिक दृष्टिकोण स्पष्ष्ट कर चुका था।

"अच्छा!" उसने उत्तेजना के साथ अपने घुटनों को थपथपाया और बरौनियों को झपकाते हुए कहा : "मैं इस बारे में भली बातें सोचता हूं। लोगों के लिए धर्म बहुत जरूरी है। इस बात पर मेरा पूरा यकीन है। सच बताऊं तो मैं खुद इतवारों को चर्च में भाषण दिया करता हूं ... बिल्कुल सच कह रहा हूं आप से।"

"और आप क्या कहते हैं अपने भाषणों में?" मैंने सवाल किया।

"वही सब जो एक सच्चा ईसाई चर्च में कह सकता है!" उसने बहुत विश्वस्त होकर कहा। "देखिए मैं एक छोटे चर्च में भाषण देता हूं और गरीब लोगों को हमेशा दयापूर्ण शब्दों और पितासदृश सलाह की जरूरत होती है ... मैं उनसे कहता हूं ..."

एक क्षण को उस के चेहरे पर बच्चों का सा भाव आया और उसने अपने होंठों को आपस में कस कर चिपका लिया। उसकी निगाह छत की तरफ उठी जहां कामदेव के शर्माते हुए चाकर एक मांसल औरत के निर्वसन शरीर को छिपा रहे थे। औरत का बदन यार्कशायर की किसी घोड़ी की तरह गुलाबी था। छत के रंग उसकी बेचमक आंखों में प्रतिविम्बित हुए और उनमें एक कौंध रेंग आई। फिर उसने शान्त स्वर में बोलना शुरू किया :

"ईसामसीह के भाइयो और बहनो! ईष्र्या के दैत्य के लालच से खुद को बचाओ और दुनियादारी से भरी चीजों को त्याग दो। इस धरती पर जीवन संक्षिप्त होता है : बस चालीस की आयु तक आदमी अच्छा मजदूर बना रह सकता है। चालीस के बाद उसे फैक्ट्रियों में रोजगार नहीं मिल सकता। जीवन कतई सुरक्षित नहीं है। काम के वक्त आपके हाथों का एक गलत काम और मशीन आपकी हडि्डयों को कुचल सकती है। एक सनस्ट्रोक और आपकी कहानी खत्म हो सकती है। हर कदम पर बीमारी और दुर्भाग्य कुत्ते की तरह आपका पीछा करते रहते हैं। एक गरीब आदमी किसी ऊंची इमारत की छत पर खड़े दृष्टिहीन आदमी जैसा होता है। वह जिस दिशा में जाएगा अपने विनाश में जा गिरेगा जैसा जूड के भाई फरिश्ते जेम्स ने हमें बताया है। भाइयो आप को दुनियावी चीजों से बचना चाहिए। वह मनुष्य को तबाह करने वाले शैतान का कारनामा है। ईसामसीह के प्यारे बच्चो तुम्हारा सामाज्य तुम्हारे परमपिता के सामाज्य जैसा है। वह स्वर्ग में है। और अगर तुम में धैर्य होगा और तुम अपने जीवन को बिना शिकायत किए बिना हल्ला किए बिताओगे तो वह तुम्हें अपने पास बुलाएगा और इस धरती पर तुम्हारी कड़ी मेहनत के परिणाम के बदले तुम्हें ईनाम में स्थाई शान्ति बख्शेगा। यह जीवन तुम्हारी आत्मा की शुद्धि के लिए दिया गया है और जितना तुम इस जीवन में सहोगे उतना ज्यादा आनन्द तुम्हें मिलेगा जैसा कि खुद फरिश्ते जूड ने बताया है।"

उसने छत की तरफ इशारा किया और कुछ देर सोचने के बाद ठण्डी और कठोर आवाज में कहा:

"हां मेरे प्यारे भाइयो और बहनो अगर आप अपने पड़ोसी के लिए चाहे वह कोई भी हो इसे कुर्बान नहीं करते तो यह जीवन खोखला और बेहद आम है। ईर्ष्या के राक्षस के सामने अपने दिलों को समर्पित मत करो। किस चीज से ईर्ष्या करोगे? जीवन के आनन्द धोखा भर होते हैं; राक्षस के खिलौने। हम सब मारे जाएंगे¸ अमीर और गरीब¸ राजा और कोयले की खान में काम करने वाले मजदूर¸ बैंकर और सड़क पर झाड़ू लगाने वाले। यह भी हो सकता है कि स्वर्ग के उपवन में आप राजा बन जाएं और राजा झाड़ू लेकर रास्ते से पत्तियां साफ कर रहा हो और आपकी खाई हुई मिठाइयों के छिलके बुहार रहा हो। भाइयो¸ यहां इस धरती पर इच्छा करनो को है ही क्या? पाप से भरे इस घने जंगल में जहां आत्मा बच्चों की तरह पाप करती रहती है।प्यार और विनम्रता का रास्ता चुनो और जो तुम्हारे नसीब में आता है उसे सहन करो। अपने साथियों को प्यार दो उन्हें भी जो तुम्हारा अपमान करते हैं …"

(... जारी है)

3 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

अच्छी पोस्ट और गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत बधाई

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

'Gantantra divas' amar rahe! aur yeh series jaaree rahe!

Naveen Joshi said...

मैंने इसके बारे में सुना था. आपने पडवा दिया, धन्यवाद.अग्ली किश्तों का इंतजार रहेगा.
आशा है आप अच्छे होंगे.