(पिछली पोस्ट से जारी)
उसने फिर से आंखें बन्द कर लीं और अपनी कुर्सी पर आराम से हिलते हुए बोलना जारी रखा:
"ईर्ष्या की उन पापी भावनाओं और लोगों की बात पर जरा भी कान न दो जो तुम्हारे सामने किसी की गरीबी और किसी दूसरे की सम्पन्नता का विरोधाभास दिखाती हैं। ऐसे लोग शैतान के कारिन्दे होते हैं। अपने पड़ोसी से ईर्ष्या करने से भगवान ने तुम्हें मना किया हुआ है। अमीर लोग भी निर्धन होते हैं :प्रेम के मामले मे। ईसामसीह के भाई जूड ने कहा था अमीरों से प्यार करो क्योंकि वे ईश्वर के चहेते हैं। समानता की कहानियों और शैतान की बाकी बातों पर जरा भी ध्यान मत दो। इस धरती पर क्या होती है समानता? आपने अपने ईश्वर के सम्मुख एक दूसरे के साथ अपनी आत्मा की शुद्धता में बराबरी करनी चाहिए। धैर्य के साथ अपनी सलीब धारण करो और आज्ञापालन करने से तुम्हारा बोझ हल्का हो जाएगा। ईश्वर तुम्हारे साथ है मेरे बच्चो और तुम्हें उस के अलावा किसी चीज की जरूरत नहीं है!"
बूढ़ा चुप हुआ और उसने अपने होंठों को फैलाया। उसके सोने के दांत चमके और वह विजयी मुद्रा में मुझे देखने लगा। "आपने धर्म का बढ़िया इस्तेमाल किया" मैंने कहा। "हां बिल्कुल ठीक! मुझे उसकी कीमत पता है।" वह बोला "मैं अपनी बात दोहराता हूं कि गरीबों के लिए धर्म बहुत जरूरी है। मुझे अच्छा लगता है यह। यह कहता है कि इस धरती पर सारी चीजें शैतान की हैं। और ए इन्सान अगर तू अपनी आत्मा को बचाना चाहता है तो यहां धरती पर किसी भी चीज को छूने तक की इच्छा मत कर। जीवन के सारे आनन्द तुझे मौत के बाद मिलेंगे। स्वर्ग की हर चीज तेरी है। जब लोग इस बात पर विश्वास करते हैं तो उन्हें सम्हालना आसान हो जाता है। हां धर्म एक चिकनाई की तरह होता है। और जीवन की मशीन को हम इससे चिकना बनाते रहें तो सारे पुर्ज़े ठीकठाक काम करते रहते हैं और मशीन चलाने वाले के लिए आसानी होती है …"
"यह आदमी वाकई में राज है" मैंने फैसला किया।
"और क्या आप अपने आप को अच्छा ईसाई समझते हैं ?" सूअरों के झुण्ड से निकली उस नवीनतम संतति से मैंने बड़े आदर से पूछा।
"बिल्कुल!" उसने पूरे विश्वास के साथ कहा "लेकिन" उसने छत की तरफ इशारा करते हुए धीरगम्भीर आवाज में कहा "साथ ही मैं एक अमरीकी हूं और कड़ा नैतिकतावादी भी …"
उसके चेहरे पर एक नाटकीय भाव आया और अपने होंठों पर जबान फेरी। उसके कान उसकी नाक के नजदीक आ गए।
"आपका सही सही मतलब क्या है ?" मैंने धीमी आवाज में उससे पूछा।
"आपके मेरे बीच की बात है" वह फुसफुसाया "एक अमरीकी के लिए ईसामसीह को पहचानना असंभव है।"
"असम्भव?" थोड़ा ठहरकर मैंने फुफुसाते हुए पूछा।
"बिल्कुल" वह सहमत होते हुए फुसफुसाया।
"लेकिन क्यों?" एक क्षण को खामोश हो कर मैंने पूछा।
"उसका जन्म किसी विवाह का परिणाम नहीं था।" आंख मारते हुए बूढ़ा अपनी निगाह कमरे में इधर उधर डालता हुआ बोला। "आप समझ रहे हैं ना ? जिसका भी जन्म किसी विवाह का परिणाम न हो उसे तो यहां अमरीका में ईश्वर के बारे में बोलने का अधिकार तक नहीं मिल सकता। भले लोगों के समाज में कोई उसकी तरफ देखता भी नहीं। कोई भी लड़की उस से शादी नहीं करेगी। हम लोग बहुत कड़े कायदे कानूनों वाले होते हैं। और अगर हम ईसामसीह को स्वीकार करते हैं तो हमें सारे हरामियों को समाज में सम्मानित नागरिकों की तरह स्वीकार करना होगा ... चाहे वे किसी नीग्रो और किसी गोरी औरत की पैदाइश क्यों न हों। जरा सोचिए कितना हैबतनाक होगा यह सब! है ना!"
ऐसा वास्तव में हैबतनाक होता क्योंकि बूढ़े की आंखें हरी हो गईं और किसी उल्लू की सी नजर आने लगीं। अपने निचले होंठ को उसने बमुश्किल ऊपर की तरफ खींचा और अपने दांतों से चिपका लिया। उसे यकीन था कि ऐसा करने से वह ज्यादा प्रभावशाली और कठोर नजर आता होगा।
"और आप किसी भी नीग्रो को सीधे सीधे इन्सान नहीं समझते?" एक लोकतांत्रिक देश की नैतिकता से उदास होकर मैंने पूछा।
"आप भी कितने भोले हैं!" उसने मुझ पर दया जताते हुए कहा। "एक तो वे काले होते हैं। दूसरे उन से बदबू आती है। हमें जब भी पता लगता है कि किसी नीग्रो ने किसी गोरी औरत को बीवी बना कर रखा है तो हम तुरन्त उसका इन्साफ कर देते हैं। हम उसकी गरदन पर एक रस्सी बांधकर बिना ज्यादा सोचविचार के सबसे नजदीकी पेड़ पर लटका देते हैं। जब भी नैतिकता की बात आती है हम लोग बहुत कठोर होते हैं …"
अब उसके लिए मेरी भीतर वह इज्जत जागने लगी जो एक सड़ती हुई लाश को लेकर जागती है। लेकिन मैंने एक काम उठाया हुआ था और मैं उसे पूरा करना चाहता था।
"समाजवादियों के लिए आपका क्या रवैया है ?"
"वे तो शैतान के असली चाकर हैं!" उसने अपने घुटने पर हाथ मारते हुए तुरन्त जवाब दिया "समाजवादी जीवन की मशीन में बालू की तरह होते हैं जो हर जगह घुस जाती है और मशीन को ठीक से काम नहीं करने देती। अच्छी सरकार के सामने कोई समाजवादी नहीं होना चाहिए। तब भी वे अमरीका में पैदा हो रहे हैं। इसका मतलब यह हुआ कि वाशिंगटन वालों को उनके काम धन्धों की जरा भी जानकारी नहीं हे। उन्होंने समाजवादियों को नागरिक अधिकारों से वंचित कर देना चाहिए। कुछ तो होगा इस से। मेरा मानना है कि सरकार को वास्तविकता के ज्यादा नजदीक रहना चाहिए। और ऐसा तब हो सकता है जब उसके सारे सदस्य अरबपति हों। असल बात यह है।"
"आप अपनी बातों पर कायम रहने वाले इन्सान हैं" मैने कहा।
"बिल्कुल सही!" उसने स्वीकार करते हुए अपना सिर हिलाया। उसके चेहरे पर से बच्चों वाला भाव समाप्त हो गया और उसके गालों पर गहरी झुर्रियां उतर आईं।
मैं उस से कला के बारे में कुछ सवाल करना चाहता था।
"आपका रवैया ..." मैंने बोलना शुरू किया पर उसने उंगली ऊंची करते हुए कहा :
"दिमाग में नास्तिकता और शरीर में अराजकता : यही होता है समाजवादी। उसकी आत्मा को शैतान ने पागलपन और गुस्से के पंखों से सुसज्जित कर दिया है …। समाजवादी से लड़ने के लिए हमें और ज्यादा धर्म और सिपाहियों की जरूरत पड़ेगी। नास्तिकता के लिए धर्म और अराजकता के लिए सैनिक। पहले तो समाजवादी के दिमाग को चर्च के उपदेशों से भरा जाए। और अगर इस से उसका उपचार न हो सके तो सैनिकों से कहा जाए कि उसके पेट में गोलियां ठूंस दें।"
उसने ठोस विश्वास के साथ सिर हिलाते हुए कहा:
"शैतान की ताकत बहुत बड़ी होती है।"
"यकीनन ऐसा ही है" मैंने तुरन्त स्वीकार कर लिया।
ऐसा पहली बार हो रहा था कि मुझे सोना नाम के पीले दैत्य की ताकत और उसके प्रभाव देखना का मौका मिला था। इस बूढ़े की जर्जर हडि्डयों वाली कमजोर देह ने अपनी त्वचा के भीतर सड़े हुए कूड़े का ढेर छिपा रखा था जो इस वक्त झूठ और अध्यात्मिक भ्रष्टाचार के परमपिता की ठण्डी और क्रूर इच्छाशक्ति के प्रभाव में उत्तेजित हो गया था। बूढ़े की आंखें जैसे दो सिक्कों में बदल गई थीं और वह ज्यादा ताकतवर और रूखा दिखने लगा था। अब वह पहले से कहीं ज्यादा एक नौकर लगने लगा था लेकिन मुझे मालूम चल गया कि उसका मालिक कौन है।
"कला के बारे में आपके क्या विचार हैं?" मैंने सवाल किया।
उसने मुझे देखा¸ और अपने चेहरे पर हाथ फिराते हुए वहां से कठोर ईर्ष्या के भाव हटा दिए। एक बार फिर कोई बालसुलभ चीज उसके चेहरे पर उतर आई।
"क्या कहा आपने?" उसने पूछा।
"कला के बारे में आपके क्या विचार हैं?"
"ओह" उसने ठण्डे स्वर में जवाब दिया "मैं उसके बारे में कुछ नहीं सोचता। मैं उसे खरीद लेता हूं …"
"मुझे मालूम है। पर शायद कला के बारे में आपके कुछ विचार हों और यह कि आप उस से क्या उम्मीद रखते हैं?"
"ओह शर्तिया। मैं जानता हूं मुझे कला से क्या चाहिए होता है ... कला ने आपका मनोरंजन करना चाहिए। उसे देख कर मुझे हंसी आनी चाहिए। मेरे धन्धे में ऐसा ज्यादा कुछ नहीं जो मुझे हंसा सके। दिमाग को कभी कभी ठण्डाई की जरूरत पड़ती है .... और शरीर को उत्तेजना की। छतों और दीवारों पर लगे कुलीन चित्रों ने भूख बढ़ाने का काम करना चाहिए ... विज्ञापनों को सबसे बढ़िया और चमकीले रंगों से बनाया जाना चाहिए। विज्ञापन ने आपको एक मील दूर से ललचा देने लायक होना चाहिए ताकि आप तुरन्त उसकी मर्जी का काम करें। तब तो कुछ फायदा है। मूर्तियां और गुलदस्ते हमेशा तांबे के बढ़िया होते हैं बजाय संगमरमर या पोर्सलीन के। नौकरों से पोर्सलीन की चीजें टूट जाने का खतरा बना रहता है। मुर्गियों की लड़ाई और चूहों की दौड़ भी ठीक होती हैं। मैंने उन्हें लन्दन में देखा था ... मजा आया था। मुक्केबाजी भी अच्छी होती है पर यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि मुकाबले का अन्त किसी हत्या में न हो ... संगीत देशभक्तिपूर्ण होना चाहिए। मार्चेज़ अच्छे होते हैं पर अमेरिकी मार्च सब से बढ़िया होता है। अच्छा संगीत हमेशा अच्छे लोगों के पास पाया जाता है। अमेरिकी दुनिया के सबसे अच्छे लोग होते हैं। उनके पास सबसे ज्यादा पैसा है। इतना पैसा किसी के पास नहीं। इसीलिए बहुत जल्दी सारी दुनिया हमारे पास आएगी ॰॰॰"
जब मैं उस बीमार बच्चे की चटरपटर सुन रहा था मैंने कृतज्ञता के साथ तस्मानिया के जंगलियों को याद किया। कहते हैं कि वे लोग नरमांस खाते हैं लेकिन उनका सौन्दर्यबोध तब भी विकसित होता है।
"क्या आप थियेटर जाते हैं?" पीले दैत्य के गुलाम से मैंने पूछा ताकि मैं उसकी उस शेखी को रोक सकूं जो वह अपने मुल्क के बारे में बघार रहा था जिसे उसने अपने जीवन से प्रदूषित कर रखा था।
"थियेटर? हां हां वह भी कला है!" उसने आत्मविश्वास के साथ कहा।
"और थियेटर में आपको क्या पसन्द है?"
"एक तो वहां बहुत सारी जवान महिलाएं होती हैं जिन्होंने नीची गरदन वाले गाउन पहने होते हैं। आप ऊपर से उन्हें देख सकते हैं" एक पल सोचने के बाद उसने कहा।
"लेकिन थियेटर में आप को सब से ज्यादा क्या पसन्द आता है?" मैंने बेचैन महसूस करते हुए पूछा।
"ओह" अपने होंठों को करीब करीब अपने कानों तक ले जाते हुए उसने कहना शुरू किया। "जैसा हरेक को लगता है मुझे भी अभिनेत्रियां सबसे ज्यादा पसन्द हैं ... अगर वे सारी जवान और खूबसूरत हों तब। लेकिन तुरन्त देख कर आप बता नहीं सकते कि उनमें से कौन सी जवान है। वे सब इस कदर बनी संवरी रहती हैं। मेरे ख्याल से यही उनके पेशे की मांग होती होगी। लेकिन कभी कभी आप को लगता कि वो लड़की बढ़िया दिखती है! मगर बाद में आपको पता लगता है कि वह पचास साल की है और उसके कम से कम दो सौ आशिक हैं। यह शर्तिया बहुत अच्छा नहीं लगता। सर्कस की लड़कियां उन से कहीं बेहतर होती हैं। वो हमेशा ज्यादा जवान होती हैं और उनके शरीर लोचदार ..."
निश्चय ही इस विषय पर वह उस्ताद की हैसियत रखता था। खुद मैं जो जीवन भर पापों में उलझा रहा था¸ इस आदमी से काफी कुछ सीख सकता था।
"और आप को कविता कैसी लगती है?" मैंने पूछा।
"कविता?" अपने जूतों को देखते हुए उसने मेरी ही बात को दोहराया। उसने एक क्षण को सोचा अपना सिर उठाया और अपने सारे दांत एक ही बार में दिखाता हुआ बोला "कविताएं? अरे हां! मुझे कविताएं पसन्द हैं। अगर हरेक आदमी विज्ञापनों को कविता में लिखना चालू कर दे तो जिन्दगी बहुत खुशनुमा हो जाएगी।"
"आप का सब से प्रिय कवि कौन है?" मैंने जल्दी जल्दी अगला सवाल पूछा।
कुछ परेशान होते हुए बूढ़े ने मुझे देख कर धीमे से पूछा: "आपने क्या कहा?"
मैंने अपना सवाल दोहराया।
(... जारी है)
1 comment:
बहुत बढिया। जारी रखिये।
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