Thursday, February 26, 2009

ग़म-ए-हस्ती का असद किस से हो जुज़ मर्ग इलाज



मेहदी हसन साहेब ने कुछ बरस पहले तरन्नुम नाज़ के साथ एक अल्बम निकाला था - नक़्श फ़रियादी. चचा ग़ालिब की तमाम लोकप्रिय ग़ज़लें इस अल्बम का हिस्सा थीं. ये बात अलहदा है कि इन ग़ज़लों में शास्त्रीयता का वह उस्तादाना-ख़लीफ़ाना पुट नहीं है जो बाबा मेहदी हसन ख़ान साहेब की गायकी का ट्रेडमार्क है. मगर किसी-किसी सुबह मुझे इस अल्बम को सुनना और तसव्वुर-ए-जानां किये हुए देर तलक लेटे रहना बहुत सुकूनभरा लगता है. शायद आपको भी लगे.



डाउनलोड का लिंक ये रहा:

आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक

3 comments:

Anonymous said...

कर लिया। सुन लिया। पसंद आया। आभार।

अनिल कान्त said...

pasand aaya .....

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

VIMAL VERMA said...

सुकून मिला सुनकर। शुक्राना अशोक भाई।