मेहदी हसन साहेब ने कुछ बरस पहले तरन्नुम नाज़ के साथ एक अल्बम निकाला था - नक़्श फ़रियादी. चचा ग़ालिब की तमाम लोकप्रिय ग़ज़लें इस अल्बम का हिस्सा थीं. ये बात अलहदा है कि इन ग़ज़लों में शास्त्रीयता का वह उस्तादाना-ख़लीफ़ाना पुट नहीं है जो बाबा मेहदी हसन ख़ान साहेब की गायकी का ट्रेडमार्क है. मगर किसी-किसी सुबह मुझे इस अल्बम को सुनना और तसव्वुर-ए-जानां किये हुए देर तलक लेटे रहना बहुत सुकूनभरा लगता है. शायद आपको भी लगे.
3 comments:
कर लिया। सुन लिया। पसंद आया। आभार।
pasand aaya .....
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सुकून मिला सुनकर। शुक्राना अशोक भाई।
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