Monday, March 23, 2009

आज तेईस मार्च है - सरदार भगत सिंह सिंह की शहादत का दिन



... फांसी के बाद दिया गया गांधी का बयान पुनः जारी किया गया : "भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दी गई. वे अमर शहीद हो गए. उनकी मृत्यु बहुत से लोगों के लिए निजी क्षति की तरह है. मैं इन युवकों की स्मृति को नमन करता हूं. परन्तु मैं देश के नवयुवकों को इस बात की चेतावनी देता हूं कि वे उनके पथ का अनुसरण न करें, हमें अपनी ऊर्जा, आत्मोत्सर्ग की भावना, अपने श्रम और अपने अदम्य साहस का इस्तेमाल उनकी भांति नहीं करना चाहिये. इस देश की स्वतंत्रता रक्तपात के जरिये नहीं प्राप्त होनी चाहिये."

... कांग्रेस अधिवेशन के तीन दिन पहले कराची में प्रेस से साक्षात्कार में उन्होंने कहा: "मैं भगत सिंह और उसके साथियों के मत्युदंड को निरस्त करवाने में असफल रहा, इसलिये युवावर्ग ने मुझे अपने क्रोध का निशाना बनाया. मैं इसके लिए तैयार भी था. वे मेरे ख़िलाफ़ बुरी तरह भड़के हुए थे, इसके बावजूद उन्होंने अपने क्रोध का प्रदर्शन काफ़ी सौजन्यपूर्ण ढंग से किया. वे मुझे शारिरिक चोट भी पहुंचा सकते थे और दूसरे तरीकों से मेरा अपमान कर सकते थे. लेकिन उन्होंने सिर्फ़ मुझे काले कपड़े में बंधे फूल देने का निश्चय किया, जो संभवतः इन तीनों देशभक्तों की अस्थियों के प्रतीक थे. वे ये फूल भी मुझ पर दूर बरसा या फेंक सकते थे, लेकिन उन्होंने इन्हें मेरे हाथ में देने का निश्चय किया, जिन्हें मैंने कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार किया. हां वे 'गांधीवाद हाय-हाय' और 'महात्मा गांधी वापस जाओ' के नारे ज़रूर लगाते रहे."

"मैं इसे उनके बहुत गहरे क्रोध की एक विनम्र अभिव्यक्ति के रूप में देख रहा था. मैं सिर्फ़ यह उम्मीद करता हूं कि वे अपने-आप पर थोड़ा नियन्त्रण रखते हुए - जैसा कि उन्होंने कल कांग्रेस की बैठक में भी किया - यह समझने की कोशिश करेंगे कि मेरा और उनका लक्ष्य एक ही है. सिर्फ़ मेरा रास्ता उनसे पूरी तरह भिन्न है. मुझे इस में ज़रा भी सन्देह नहीं है कि वक़्त के साथ उन्हें अपनी ग़लती का अहसास होगा. जो बात दूसरे देशों के लिए सत्य है, वह ज़रूरी नहीं कि हमारे देश के लिए भी सत्य हो. हमारे देश की आबादी और ग़रीबी को देखते हुए हिंसा का रास्ता पूरी तरह बेमानी है. आत्मदमन और लगभग कायरता को छूते दब्बूपन वाले इस देश में हम बहुत ज़्यादा साहस और आत्मत्याग की उम्मीद नहीं कर सकते. भगत सिंह की बहादुरी और त्याग के आगे किसी का भी सिर झुक जाएगा. लेकिन ऐसा कहते हुए मेरा अपने युवा मित्रों को भड़काने का कोई इरादा नहीं है - एक ऐसी बहादुरी जो किसी दूसरे को नुकसान पहुंचाए बिना सूली पर चढ़ने को तैयार हो."

... (गांधी से) दूसरा प्रश्न था: 'क्या वे हज़ारों व्यक्तियों की हत्या करने वाली सरकार को क्षमा करना राजनीतिक दृष्टि से ठीक समझते हैं?

(गांधी ने उत्तर दिया) "मेरे सामने एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है जहां क्षमादान किसी राजनीतिक उद्देश्य से जुड़ा होता है."

... ... ... ... ...

कुलदीप नैयर की किताब The Martyr Bhagat Singh: Experiments in Revolution के हिन्दी अनुवाद 'शहीद भगत सिंह : क्रान्ति के प्रयोग' (अनुवादक: आलोक श्रीवास्तव) से एक अंश.

शहीद-ए-आज़म को कबाड़ख़ाने की विनीत श्रद्धांजलि

7 comments:

Unknown said...

gandhiji apne prati kitne sensitive hain ki virodh karnevaale yuvakon ne unka shaaleen virodh kiya. magar bhagat singh ko apni nazar mein wah mahaz aatmaghaati maante hain aur logon ke krodh se bachane ke liye unke jazbe ki taarif bhi kar dete hain ! agarche desh ke baare mein unka yah mantavya bilkul sach hai ki aksar aatmadaman karnevaala yah ek kaayar aur dabbu mizaaj waala desh hai. darasal isi andaaz ko gandhiji ne satya, ahimsa aur asahayog ki sambhraant chaadar lapetkar garimamay bana diya. magar is tarah ki dhokhadeh garima aaj sawaalon ke daayare mein aa gayi hai, kyonki desh theek dhang se aazaad hi nahin hua tha, is bhayaavah sach ko aaj ke daur mein jinevaale insaan se zyaada koun jaanta hai ?
iske alaawa is write-up se yah bhi pata chalta hai ki tab ke naujawaan ek daarun haqeeqat ke baavujood kitna sammaanjanak virodh kar sakte the aur aaj hindi saahitya-sansaar mein kis tarah mahaz vaichaarik asahmatiyon se khinn hokar vigat kuchh varshon se lagataar kabhi jnaanranjan, kabhi viren dangwaal, kabhi asad zaidi, kabhi mangalesh dabraal, kabhi devi prasad mishra, kabhi kisi aur ko nishaane par rakhkar kutsit abhiyaan chalaaye ja rahe hain. jo is kutsa ke qhilaaf kuchh bolta hai, wah fir ek nayi kutsa ka shikaar hota hai. maslan abhi pranay krishna ke baare mein kisi ne kaha hai ki mangalesh dabral ne unhen devi shanker awasthi sammaan dilwaaya hai, isliye wah unhen defend kar rahe hain ! is maha-jnaani ko itna bhi nahin maaloom ki us puraskaar ki moujaada r nirnaayak-mandal mein 5 sadasya hain----sushri krishna sobti, sarva-shri vishwanaath tripaathi, chandrakant devtaale, ashok vaajpeyi aur manglesh dabraal. umra ke lihaaz se mangalesh dabral is samiti ke sabse kanishth sadasya hain aur pranay ko sammaanit karne ka faisla meeting mein sarva-sammati se liya gaya hai. fir mangaleshji akele kaise award de ya anya sadasyon ke mat ko prabhaavit kar sakte the ?
yah bhi kaha gaya ki niyamon ko taaq par rakhkar yah award diya gaya hai. yah zaroor nahin bataaya gaya ki kis niyam ki avahelna hui hai ? behtar ho ki is tarah khaaham-khaah dukhi hoti rahnevaali aatmaayen pahle puraskar-samiti se bhi kuchh jaankaari haasil kar liya karen, jisse ve bebuniyaad aarop chaspa karne ki haasyaaspad qavayad mein gharq hone ki niyati se apne ko bacha saken !
baaqi in abhiyaanon ki vyarthata is sach se bhi ujaagar hoti hai ki doosaron ka charitra-hanan karne se aapka charitra to samujjwal ho nahin jaayega. wah to vaisa-ka-vaisa hi rahega. uski kaalikh dikhaayi padegi, jab kabhi qhud ko aaine mein dekhiyega ! aqheer mein aapki qhidmat mein ghalib ka yah sher----

chaahte hain qhoobroo-on ko asad
aapki soorat bhi dekha chaahiye

-----pankaj chaturvedi
kanpur

Ek ziddi dhun said...

अभी मैंने पेरियार का एक लेख पढ़ा जो उन्होंने भगत सिंह की फांसी पर अपनी पत्रिका के संपादकीय के रूप में लिखा था। वे गांधी के प्रशंसकों के गांधी के साथ विरोधाभासी संबंधों का उल्लेख करते हैं और भगत सिंह के सोचने के तरीके और उनके बलिदान की दाद देते हैं। वे भगत सिंह की फांसी को इसलिए भी महत्वपूर्ण मानते हैं कि गांधी को वैचारिक रूप से चुनौती देने की परंपरा पड़ी है।
मेरा मानना यह है कि गांधी और भगत सिंह के वैचारिक मतभेद, भगत सिंह की फांसी के प्रकरण में गांधी का स्टेंड आदि बातें साफ हैं पर इन्हें हम किस मकसद से औऱ किस तरह से पेश करते हैं, यह महत्वपूर्ण है। मसलन यह तथ्यों को जानने और शोध करने के मकसद से भी हो सकता है औऱ एक कुटिल सियासत के तहत भी। जैसे कि सांप्रदायिक शक्तियां जिनका न गांधी से लेना-देना है औऱ न भगत सिंह से, वे गांधी बनाम भगत सिंह को खासा भुनाने की कोशिश करती हैं। कम से कम सांप्रदायिकता के खिलाफ निर्भीक स्टेंड तो दोनों नेताओं की समानता रही औऱ इस वक्त तो सांप्रदायिकता से लड़े जाने की सख्त जरूरत है। यह मोर्चा तो हम हार ही गए हैं

मुनीश ( munish ) said...

Both are stalwarts in their uniqe ways. We should feel indebted to both and move on with gratitude.

मुनीश ( munish ) said...

There is no denying the fact,however, that martyrs like Chandra Shekhar Azad, Bhagat Singh and Netaji didn't get there due in our history . A section of red thinkers still remembers Bhagat Singh ,but even this section has ignored Azad. So, therez nothing in the blame game, lets move on.

Ek ziddi dhun said...

क्या मुनीश भाई अच्छी अदा है...ब्लेम गेम खेलते हो और खेलने से मना भी करते हो। आजाद को किसने भुलाया,किसने याद किया। भगवा बौद्धिक किसे क्या बना दें, आप तोजानते ही हैं। एक तमंचा टांगों,एकजनेऊ औऱ मूंछों पर रगड़ दिला दो,हो गए याद आजाद। इसी तरह वे भगत सिंह को वल्गराइज करने की कोशिश करते रहे, कांग्रेसियों के साथ मिलकर।
आजाद पर अच्छे लेख, इन्हीं रेड थिंकर्स के हैं जो उनके दोस्त भी रहे।

जयंत - समर शेष said...

Very thought provoking and at the same time very clear post.

I think this goes to show that Mahatma and Bhagat Singh were two great people who had same "lakshya" but different paths, as has been acknowledged by Mahatma himself. Mahatma also respected Bhagat Singh's courage.

"भगत सिंह की बहादुरी और त्याग के आगे किसी का भी सिर झुक जाएगा. "
"भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी दी गई. वे अमर शहीद हो गए. उनकी मृत्यु बहुत से लोगों के लिए निजी क्षति की तरह है. मैं इन युवकों की स्मृति को नमन करता हूं."

Why is there always people who try to throw muck on the face of Mahatma??

Why can we NOT simply acknowledge and accept that they were BOTH greats in their own ways??

They were our great ancestors and I am fiercely proud of them.

Jay Hind.

~Jayant

आशुतोष पार्थेश्वर said...

भगत सिंह और उनके साथियों को नमन. भगत सिंह और देश के क्रांतिकारी आन्दोलन के सम्बन्ध में प्रेमचंद के विचार क्या थे देखने के लिए इस लिंक पर आयें .http://parthdot.blogspot.com/