Friday, April 1, 2011

वह जन मारे नहीं मरेगा नहीं मरेगा

आज महान हिंदी कवि स्व. केदारनाथ अग्रवाल (१ अप्रैल, १९११ - २२ जून २०००) की जन्मशताब्दी है. इस अवसर पर उन्हें याद करते हुए कबाडखाना उनकी एक कविता प्रस्तुत करता है


जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है

जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है
जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है
जो रवि के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा

जो जीवन की आग जला कर आग बना है
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा

(इत्तेफाकन यह मेरे प्यारे दद्दा राजेश सह निवासी हैडिंगली नैनीताल वालों का बड्डे भी है. राजेश दा बामुहब्बत आपको खूब सारी हैप्पी हैप्पी)

3 comments:

Pratibha Katiyar said...

Tasveer bhi bahut achchi hai. Kavita to jabrdast hai hi.

अजेय said...

नही मरेगा

प्रवीण पाण्डेय said...

यह युग के रथ का घोड़ा है, नहीं मरेगा।