Tuesday, March 31, 2009

किस कदर सख़्त है रफ़्तारे-ज़माना कुछ सोच



हाल ही में कबाड़ी बने योगेश्वर सुयाल का लिखा यह परिचय और उनके द्वारा उपलब्ध कराई गई यह सामग्री दुर्लभ और ऐतिहासिक है. अभी कुछ दिन पहले मुनीश भाई ने कुछ पुरानी अंग्रेज़ी कविताएं यहां लगाने का अनुरोध किया था. इत्तेफ़ाक देखिये यह सब कल ही मुझ तक पहुंच भी गया. हर लिहाज़ से यह पोस्ट भाई योगेश्वर की है.

कविता ढाई सौ साल पुरानी। तर्जुमा 1959 का। मूल कवि हैं विलियम कूपर। अनुवादक - रोलैंड लॉरेंस।

परिचय बस इतना कि लॉरेंस साब कभी मुरादाबाद की नाक रहे पारकर कालेज में करीब चालीस साल गणित पढ़ाने के बाद अब उसी के धोरे जॉर्डन बॉयज़्‌ होम कैंपस में अपनी पत्नी शीला वाजयेपी के साथ रहते हैं।

हमें भी यह कालेज छोड़ने के बाद ही पता चला कि लॉरेंस साब कविताएं भी लिखते हैं, वो भी उर्दू में। अभी पिछले दिनों मुरादाबाद जाना हुआ तो मुद्दत बाद उनके दर्शन हुए और लगे हाथ हम उनकी कुछ कविताएं देवनागरी में उतरवा लाए। सुनाई उन्हीं ने थी।


यह अंग्रेज कवि विलियम कूपर की एक कविता का भावानुवाद है। कवि को अपनी कज़न से प्रेम हो गया था मगर विवाह की इजाजत नहीं मिली। तब कवि ने उसे भावपूर्ण पत्र लिखे थे। ये उन्हीं का अनुवाद है। यह उनकी पुस्तक 'गाहे-गाहे' में संकलित है, जिसे उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हो चुका है।

देवनागरी में पहली बार इनका लिप्यंतरण पेश है.


तजदीदे-वफ़ा
(रिवाइवल ऑव फ़ेथ)

किस कदर सख़्त है रफ़्तारे-ज़माना कुछ सोच
इसके धारे पे मुसर्रत का गुजर भी तो नहीं
गमो-अन्दोह के तारीक घने सायों में
कहीं हम प्यार की घड़ियों को न जाया कर दें

अपनी सीमाबिए-फितरत से कनारा कर ले
चंद लम्हे हैं यही प्यार भरे अपने रफीक
इनको ठुकरा के हमें चैन न मिल पाएगा
दामने-गम का कोई चाक न सिल पाएगा

तेरी आंखें कि जिन्हें प्यार किया है हमने
जिन पे ठहरी हैं निगाहें मेरी अक्सर जाकर
मेरी जुर्रत पे न रूठेंगी यकीं है मुझको
उनके आंचल में कोई गम नहीं लहराएगा

मेरी बेबाकियां मालूम हैं मुझको ऐ दोस्त!
तुमको नफरत पे न मजबूर करेंगी हरगिज
आज भी तेरे करम पर है भरोसा मुझको
आज फिर तेरी इनायत का तलबगार हूं मैं

आ शबो-रोज को रंगीन बना लें कुछ देर
सारी बेकैफिए-अय्याम मिटा लें कुछ देर
तुझसे दूरी में तबाही के सिवा कुछ भी नहीं
एक शिकायत की सियाही के सिवा कुछ भी नहीं

जबकि आलाम-ओ-मसाइब है मुकद्दर अपना
दामने-ज़ब्त को हम हाथ से क्यूं जाने दें
वक्त ने हमको संभलने की इजाजत दी है
क्यूं गुजर जाएं जमाने से कनारा कर के।


विलियम कूपर (१७३१-१८००) अठारहवीं सदी के बड़े अंग्रेज़ कवि माने जाते थे. उनकी कविताएं साधारण जन के रोज़मर्रा दुख सुख के अनन्य दस्तावेज़ों में शुमार की जाती हैं. अंग्रेज़ी में मूल कविता इस तरह है.

Revival of Faith

Think, Delia, with what cruel haste
Our fleeting pleasures move,
Nor heedless thus in sorrow waste
The moments due to love.

Be wise, my fair and gently treat
These few that are our friends;
Think thus abus'd what sad regret
Their speedy flight attends!

Sure in those eyes I lov'd so well,
And wis'd so long to see,
Anger I thought could never dwell
Or anger aim'd at me.

No bold offence of mine I knew
Should e'er provoke your hate;
And, early taught to think you true,
Still hop'd a gentler fate.

With kindness bless the present hour;
Or oh! we meet in vain!
What can we do in absence more
Than suffer and complain?

Fated to ills beyond redress,
We must endure our woe;
The days allow'd us to possess,
'Tis madness to forego.

लॉरेन्स साहब द्वारा अनूदित कूपर की एक और कविता अगली पोस्ट में देखिये.

(सबसे ऊपर का चित्र: ब्रिटिश पेन्टर जॉर्ज फ़्रेडरिक वॉट्स (१८१७-१९१७) की कलाकृति 'होप')

8 comments:

बवाल said...

जबकि आलाम-ओ-मसाइब है मुकद्दर अपना
दामने-ज़ब्त को हम हाथ से क्यूं जाने दें
वक्त ने हमको संभलने की इजाजत दी है
क्यूं गुजर जाएं जमाने से कनारा कर के।

इतनी बेहतरीन कविता बातर्जुमा आप लाए साहब और हमें पढ़वाई। इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका। बहुत बड़ा काम किया आपने। अगली कविता जल्द पढ़ने मिले अब ऐसा लग रहा है।

पारुल "पुखराज" said...

तुझसे दूरी में तबाही के सिवा कुछ भी नहीं
एक शिकायत की सियाही के सिवा कुछ भी नहीं.....बेहतरीन चीजे पढ़वा रहे हैं - शुक्रिया

मुनीश ( munish ) said...

It reminds me of Thomas Hardy's 'Jude the Obscure'in which the protagonist Jude is madly in love with his cousin. They eventually marry each other,but meet a very tragic fate due to society's hardline approach combined with their misfortune. The film based on this novel has Kate Winslet as the cousin and the film has some very aesthetically shot nude love scenes.

मुनीश ( munish ) said...

That apart, thanx for the poem and i still look forward to translated versions of Romantic era English poetry.

मुनीश ( munish ) said...
This comment has been removed by the author.
मुनीश ( munish ) said...
This comment has been removed by the author.
yogeshwar suyal said...

hindi font's ki gaflat hui hai. doosra stanza ki doosri line ese parhna chhahiye :

chhand lamhe hain yahi pyar bhare apne rafiq.

Unknown said...

Hamko nahi pata Talent Moradabad Ka Wo to Yogesh Hai jo hamari aankhen khol Gaya