पहला कबित्त
जले तो जलाओ गोरी,पीत का अलाव गोरी,
अभी न बुझाओ गोरी, अभी से बुझाओ ना .
पीत में बिजोग भी है, कामना का सोग भी है,
पीत बुरा रोग भी है, लगे तो लगाओ ना .
गेसुओं की नागिनों से, बैरिनों अभागिनों से ,
जोगिनों बिरागिनों से, खेलती ही जाओ ना .
आशिकों का हाल पूछो, करो तो ख़याल- पूछो ,
एक-दो सवाल पूछो, बात जो बढ़ाओ ना .
दूसरा ( कबित्त)
रात को उदास देखें, चांद को निरास देखें ,
तुम्हें न जो पास देखें, आओ पास आओ ना .
रूप-रंग मान दे दें, जी का ये मकान दे दें ,
कहो तुम्हें जान दे दें, मांग लो लजाओ ना .
और भी हज़ार होंगे, जो कि दावेदार होंगे ,
आप पे निसार होंगे, कभी आज़माओ ना .
शे'र में 'नज़ीर' ठहरे, जोग में 'कबीर' ठहरे,
कोई ये फ़क़ीर ठहरे, और जी लगाओ ना .
शब्द : इब्ने इंशा
स्वर : नय्यरा नूर
चित्र जामिनी राय
6 comments:
Insha is like a shining lotus blooming in the rotten swamp called Pakistan . Kudos!
Thanx for Shabd Sansad link . Forest fire issue needs to be pursued vigourously.
बहुत ही दिल छु लेने वाली रचना...!सुन कर तो मज़ा आगया...
इंशाजी के ये कबित्त हमें भी प्रिय है। नैय्यरा की आवाज़ में सुनकर तो आनंद ही आ गया।
शुक्रिया सिद्धेश्वर जी।
बेहद सुरीली रचनाओं के उपहार के लिए धन्यवाद शब्द बहुत अपर्याप्त है.
in rachnao ke liye haardik dhanyavaad...
in rachnao ke liye haardik dhanyavaad...
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