Saturday, May 9, 2009

वापस करो गोली मार दी गई उम्मीदों के मेरे चीथड़े



२९ जून १९२२ को जन्मे सर्बियाई कवि वास्को पोपा (मृत्यु ५ जनवरी १९९१) दूसरे विश्वयुद्ध के बाद साहित्य में आये प्रगतिशील यथार्थवाद से कहीं अधिक सर्रियलिज़्म और सर्बियाई लोक-परम्पराओं से प्रभावित रहे. पोपा के कुछ अनुवाद 'नन्हीं डिबिया' (वाणी प्रकाशन १९८८) के नाम से ख्यात अनुवादक श्री सोमदत्त ने किये थे.

पोपा की कविताओं पर एक कोलाज मैंने कुछ समय से सम्हाला हुआ था. आयरिश-फ़्रांसीसी मूल के कवि-अनुवादक एन्थनी वाईर द्वारा पोपा की अपेक्षाकृत नई कविताओं से बना यह कोलाज कुल ग्यारह कविताओं और कवितांशों से बना है. कोलाज के अन्त में पोपा को याद करते हुए एन्थनी वाईर एक छोटी कविता में कहते हैं:

और सब के अलावा
मैं कौवों को सुनता हूं
और अप्रैल के महीने में खिले
सुर्ख़ लाल जापानी फूलों को निहारता हूं

सर्बियाई दांतों वाला
लम्बा लबादा पहने एक नर्तक
हंसता है
जबकि मैं रियाज़ करता हूं भेड़िये की आवाज़ निकालने का

जो कि कविता है.


कहना न होगा भेड़िये की इमेज समूचे सर्बियाई लोक साहित्य में सबसे सशक्त मानी जाती है. स्लाविक गाथाओं में व्सेलाव नामक एक राजकुमार का ज़िक्र आता है जो कई नगरों में राज्य करता था. रात को वह भेड़िये में बदल जाया करता था. वहीं सर्बियाई देवता दाबोग जो अन्डरवर्ल्ड का बादशाह था, मान्यताओं के मुताबिक भेड़ियों का एक लंगड़ा गड़रिया था. वही संभवतः इस कोलाज में बार-बार अलग अलग रूपों में आता है. स्लोवाक-सर्बियाई लोकसंसार के अधिक विस्तार में जाने की फ़िलहाल मेरी कोई मंशा नहीं लेकिन इतना ज़रूर कहना चाहूंगा कि कविता और ख़ासतौर पर बड़ी कविता आमतौर पर अपने आप से बाहर होती है और वहीं उसे खोजा जाना होता है. और यह कार्य थोड़ा श्रम और अध्ययन तो मांगता ही है.

प्रस्तुत है एन्थनी वाईर के कोलाज 'भेड़ियों का गड़रिया' का अनुवाद. मुझे पता है कि एक ही पोस्ट में एक साथ ग्यारह कविताएं या उनके टुकड़े लगाना कई मित्रों को नागवार भी गुज़र सकता है पर इसे दो या अधिक पोस्ट्स में लगाना रचना के साथ अन्याय हो जाएगा.

भेड़ियों का गड़रिया



१. इसके पहले कि तुम खेलना शुरू करो

अपनी एक आंख बन्द करो.
झांक कर देखो अपने भीतर
देखो हरेक कोने में
सुनिश्चित कर लो कि वहां न कोई नाख़ून हों, न चोर
न गौरैया के अण्डे

फिर बन्द करो अपनी दूसरी आंख भी
थोड़ा झुको और छलांग लगाओ
छलांग लहाओ ऊंचे, ऊंचे, ऊंचे
जब तक कि ख़ुद अपने से ऊपर न पहुंच जाओ

तब तुम्हारा भार तुम्हें नीचे घसीटेगा
तुम दिनों तक नीचे गिरते जाओगे नीचे
अपने पाताल की तली तक

अगर तुम चकनाचूर न हो चुके हो
अब भी अगर बचे हो एकमुश्त और खड़े हो सकते हो एकमुश्त
तो शुरू कर सकते हो खेलना.

२. घर

पहले झूठे सूरज के साथ
हमसे मिलने आया एगिम
प्रिश्तीना के नज़दीक रहने वाला वह लकड़हारा.

वह हमारे वास्ते लाया था दो लाल सेब
स्कार्फ़ में तहाए हुए
और एक समाचार कि आख़िरकार उसका भी एक घर है अब.

आख़िरकार तुम्हारे ऊपर भी एक छत है अब, एगिम.

न, छत नहीं
हवा उड़ा ले गई उसे

तो तुम्हारे पास दरवाज़े और खिड़कियां हैं.

न दरवाज़े हैं न खिड़कियां
जाड़े ले गए उन्हें दूर अपने साथ

चार दीवारें तो हैं न कम से कम
मेरे पास चार दीवारें भी नहीं
जैसा मैंने कहा मेरे पास एक घर के अलावा कुछ नहीं

बाक़ी सब तो बहुत आसान होता है.

(एगिम: एक अल्बानियाई नाम जिसका अर्थ होता है भोर. प्रिश्तीना: कोसोवो में एक जगह)

३. पागल प्रस्थान

उन्होंने मुझे यह कहकर डराना शुरू किया
कि मेरे दिमाग का एक पुर्ज़ा ढीला है

उन्हें मुझे और डराया यह कहकर
कि वे मुझे दफ़ना देंगे
ढीले पुर्ज़ों वाले एक बक्से में

वे मुझे डराते हैं लेकिन उनकी समझ में नहीं आता
कि असल में मेरे ढीले पुर्ज़ों से
डर लगता है उन्हें

हमारी गली का प्रसन्न पागल
मेरे आगे शेखी बघारता है.

४. रास्को पेत्रोविच की कब्र

गांव में कपड़े धोने वाली एक स्त्री ने सुना
कि मैं होकर कर आया हूं
वॉशिंगटन के रॉक क्रीक कब्रिस्तान में
रास्को की कब्र देखकर

वह बोली पुराने देश के अपने मृतकों के वास्ते
मैं हर उत्सव के दौरान
केक बनाती हूं
और मोमबत्तियां जलाती हूं

और उन इंडियन आदिवासियों के लिए भी
क्योंकि मेरे पड़ोसी बताते हैं कि
उनका कब्रिस्तान हुआ करता था
इन मकानों के ठीक नीचे

और अब मैं उस सर्बियाई कवि के लिए भी
सारे ज़रूरी जतन करूंगी

उसका कोई नहीं हैं यहां.

५. पुरखों के गांव में

एक मुझे गले लगाता है
एक देखता है मुझे भेड़िये सी निगाहों से
एक अपना हैट उतारता है
ताकि मैं उसे ठीक से देख सकूं

उनमें से हर एक पूछता है
जानते हो मैं कौन हूं.

अजनबी पुरुष और स्त्रियां
उन लड़के-लड़कियों के नाम
धारण कर लेते हैं जो दफ़्न हैं मेरी स्मृति में

और मैं उनमें से एक से पूछता हूं
मुझे बतलाइये सम्मानित महोदय
क्या जॉर्ज वोल अब भी ज़िन्दा है

मैं हूं जॉर्ज, वह उत्तर देता है
किसी दूसरे संसार की आवाज़ में

मैं उसका गाल सहलाता हूं हाथों से
और आंखों से उससे याचना करता हूं
कि मुझे बताए क्या मैं भी ज़िन्दा बचा हूं.

६.

निकल जाओ चहारदीवारों से घिरे मेरे अनन्त से
मेरे सिर के गिर्द सितारों वाले गोले से
मुंह में भरे मेरे सूरज से
मेरे रक्त के भीतर के हास्यास्पद समुन्दर से
मेरे बहाव से, मेरे उतार से
समुद्रतट जैसी मेरी ख़ामोशी से
मैंने कहा न, निकल जाओ
मेरे जीवन की खोह से
मेरे भीतर के निर्वसन पितृ-वृक्ष से
निकल जाओ, मुझे कब तक चीखना पड़ेगा निकल जाओ
निकल जाओ मेरे फटते सिर से
निकल जाओ
निकल जाओ बस!

७.

एक क्षितिज से दूसरे तक पसरे इस्पाती जबड़ों वाली
मादा भेड़िये को वे फंसा लेते हैं

वे उसकी थूथन से निकाल लेते हैं सुनहरा नकाब
और उसकी टांगों के बीच से
उखाड़ डालते हैं गुप्त घास को

वे उसे बांध देते हैं
और श्डिकारी कुत्तों को लगा देते हैं
उसकी इज़्ज़त के पीछे

वे उसके टुकड़े कर देते हैं
और छोड़ देते हैं
गिद्धों के वास्ते

बादलों के जबड़ों से ज़िन्दा पानी को पकड़ लेती है वह
अपनी जीभ के ठूंठ की मदद से
और इकठ्ठा करती है अपने को दोबारा से

८. छोटे डिब्बे के क़ैदी

खुलो छोटे डिब्बे!

हम चूम रहे हैं तुम्हारा तला और तुम्हारा ढक्कन
तुम्हारी चाभी और उसका छेद
सारा संसार अट गया है तुम्हारे भीतर
और अब यह दिखता है
जैसा है ही नहीं
शान्ति, इसकी अपनी माता
भी नहीं पहचान सकती अब इसे
ज़ंग तुम्हारी चाभी को खा जाएगी
फिर हमारे संसार को और हमें
और आख़िर में तुम्हें भी
हम तुम्हारी चारों सतहों को चूम रहे हैं
और तुम्हारी चौबीस कीलों को
और उस सब को जो तुम्हारे पास है

खुलो न छोटे डिब्बे!

९.

वापस करो मेरे चीथड़े
विशुद्ध स्वप्नों के मेरे चीथड़े
रेशम मुस्कान के
धारीदार अपशकुनों के
मेरे लेसदार कपड़े के
चकत्तेदार उम्मीदों के मेरे चीथड़े
गोली मार दी गई उम्मीदों के
खानेदार नक्श के
मेरे चेहरे की त्वचा के
वापस करो मेरे चीथड़े
इतने अच्छे से मांग रहा हूं, वापस करो!

१०.

लंगड़ा भेड़िया घूमता है संसार में
एक पंजा नापता है आसमान
दूसरा धरती
वह पीछे की तरफ़ चलता है
पंजों के पुराने निशान मिटाता हुआ
वह चलता है आधा अन्धा
उसकी आंखें भयानक लाल
मरे सितारों और जीवित परजीवियों से भरी
वह चलता है और उसकी गरदन पर
जबरन बंध दिया गया है चक्की का पाट
टिन का एक पुराना डिब्बा बंधा हुआ उसकी पूंछ पर
वह चलता है बिना थमे
कुत्तों के सिरों से बने एक वृत्त से
दूसरे में
वह चलता है बारह मुंह वाले सूर्य के साथ
एक जीभ के सहारे जो लटकी हुई ज़मीन की तरफ़.

११. ईश्वर से नफ़रत करने वाला एक सुन्दर आदमी

स्थानीय शराबख़ाने का एक पुराना ग्राहक
अपनी ख़ाली आस्तीन लहराता है
अपनी अनुशासनहीन दाढ़ी में से बुरा भला कहता है
हमने दफ़ना दिया है देवताओं को
और अब बारी आई है पुतलों की
जो खेल रहे हैं देवताओं से.

तम्बाकू के बादलों में छुप गया है पुराना ग्राहक
चमकता हुआ अपने शब्दों से
बांज के किसी पुराने पेड़ के तने से तराशा हुआ
वह किसी देवता की तरह सुन्दर है
जिसे हाल ही में आसपास खोद निकाला गया हो.

2 comments:

siddheshwar singh said...

आज दूसरे दिन इन कविताओं के निकट जा सका हूँ और अपने लिखे कूड़े को निहार रहा हूँ.
सलाम साब !
और क्या कहूँ!!

Ek ziddi dhun said...

टिप्पणियों से कोई फर्क नहीं पड़ता सिवा नेट की दुनिया से जुड़े समझदार कवि, आलोचकों की चुप्पी के. वो अच्छी पोस्ट पर कुछ कहते हैं तो हम आम पाठकों को `अच्छी या बेचैन करने वाली लगीं` से ज्यादा चीजें खुलने का फायदा होता है.