प्राग, जिसे मैं अब भी अपनी देखी सुन्दरतम जगहों में गिनता हूं, का एक बड़ा आकर्षण है वहां का पुराना यहूदी कब्रिस्तान. यहूदी बस्ती जोसेफ़ोव (अथवा जोसेफ़श्टाट) में अवस्थित इस कब्रिस्तान का इस्तेमाल १४३९ से १७८७ तक किया गया.
यूरोप में इसे सबसे पुराना सुरक्षित यहूदी कब्रिस्तान माना जाता है. जब हिटलर दुनिया को नेस्तनाबूद करता बढ़ रहा था, उसकी नाज़ी सेना यह सुनिश्चित करती थी कि यहूदियों का कोई कब्रिस्तान तक साबुत न बचे. लेकिन हिटलर ने इस कब्रिस्तान को सुरक्षित रखने का फ़रमान दिया था. इसके पीछे एक दुष्ट महत्वाकांक्षा थी. उसकी योजना थी कि समूचे यूरोप से यहूदियों का पूरी तरह सफ़ाया कर चुकने के बाद आने वाली पीढ़ियों के लिए एक यहूदी संग्रहालय बनवाया जाए.
हिटलर अपने मंसूबों समेत तो कब का कब्र में घुस चुका, यह कब्रिस्तान अब भी बचा हुआ है. यह छोटा सा कब्रिस्तान अपने भीतर करीब एक लाख यहूदियों को दफ़्न किए है. एक दूसरे से सटे करीब बारह हज़ार कुतबे देखे जा सकते हैं. मशहूर रब्बी लोव की कब्र का पत्थर यहां का विशेष आकर्षण है. रब्बी लोव की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं पर फ़िलहाल आप तस्वीरें देखिए.
(रब्बी लोव के बारे में एक मज़ेदार पोस्ट जल्द ही प्राग की कुछ और तस्वीरों के साथ जल्दी लगाऊंगा)
4 comments:
आप की आँखो से हम भी दुनिया देख लेते हैं !!!
इन तस्वीरों को देखकर मुझे कवि सोमदत्त की मार्मिक कविता "क्रागुएवात्से में तीसरी क्लास के साथ पूरे स्कूल की परीक्षा " याद आगई जिसमे हिटलर की सेनाओं ने स्कूल के पूरे बच्चों को लाईन में खडा कर मौत के घाट उतार दिया था
शरद जी
दर असल इस कब्रिस्तान से लगा हुआ लाल खपरैलों वाला भवन एक संग्रहालय है जिसकी सबसे ऊपरी मंज़िल पर हिटलर द्वारा बरबाद किए गए एक चलते हुए स्कूल में मारे गए बच्चों के खून रंगे बस्ते कपड़े क्रेयॉन वगैरह प्रदर्शित किए गए हैं.
उस संग्रहालय को देखने के बाद एक पल को मानवता से आपका यकीन उठ जाता है.
Stories of Rakshasas have have alvez been there in our mythology and some of them keep coming back !
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