Monday, June 8, 2009

वे हमारे बर्टोल्ट ब्रेख़्त थे



महान संस्कृतिकर्मी हबीब तनवीर को जन संस्कृति मंच की श्रद्धांजलि

कल ८ जून. २००९ के दिन हमारे देश ही नहीं ,बल्कि दुनिया के महान रंगकर्मियों में शुमार हबीब तनवीर साहब का भोपाल में ८५ साल की उम्र में निधन हो गया। हबीब साहब का जाना सचमुच एक युग का अंत है। उन्होंने नाटक को ज़िंदगी के इतना करीब ला दिया कि उनके नाटक देख कर यह लगता था कि हर इंसान में एक अदाकार छिपा है। दिल्ली में ओखला की मज़दूर बस्तियों के मज़दूरों, जामिया के छात्रों और छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों को उन्होंने शानदार अदाकारों में ढाल दिया। उन्होंने अदाकारी के लिए बड़े- बड़े संस्थानों में प्रशिक्षित कलाकारों की जगह आम जनता के सामान्य लोगों पर भरोसा किया।

देश के वामपंथी आंदोलन, प्रगतिशील आंदोलन और इप्टा के साथ १९४५ से ही उनके सघन जुड़ाव ने उन्हें यह सीख दी थी कि जनता की कला जनता के भीतर से पैदा होगी, न कि अभिजन संस्थानों या फ़िर अपनी दुनिया में रहने वाले बुद्धिजीवियों से। हबीब साहब किसी भी जगह को स्टेज बना सकते थे, फ़िर वह बाज़ार हो, गली मुहल्ले हों या गांव। वे दक्षिण एशिया के बर्टोल्ट ब्रेष्ट थे।

सन १९५४ में ही उन्होंने 'आगरा बाज़ार' की प्रस्तुति के ज़रिए अपने रंगकर्म की निराली संकल्पना को अंजाम दिया। नज़ीर अकबराबादी जैसे १९वीं सदी के निराले जनकवि का हबीब साहब ने अपने रंगकर्म के ज़रिए उसी तरह से पुनराविष्कार किया, जैसा कि संगीत के ज़रिए कुमार गंधर्व ने कबीर का। हबीब साहब कवि और अभिनेता भी थे। रिचर्ड एटनबरो की 'गांधी' सहित ९ से ज़्यादा फ़िल्मों में उन्होंने अभिनय किया और फ़िल्मी परदे पर भी वे जहां भी दिखे, बाकी सबको पीछे छोड़ गए। १९६० के दशक से ही वे 'पोंगा पंडित' नाटक खेलते आए थे, लेकिन ९० के दशक में संघ परिवार ने इस नाटक पर बारंबार हमले किए, लेकिन इस निडर कलाकार का वे क्या कर सकते थे?

हबीब साहब को सरकारों और अकादमियों ने बहुत से सम्मानों से नवाज़ा- संगीत नाटक अकादमी अवार्ड,फ़ेलोशिप, पद्मश्री, पद्मभूषण, राज्य सभा की सदस्यता वगैरह, लेकिन ये सब उनके कलाकार के सामने बहुत छोटे साबित होते हैं। पांडवानी और नाच जैसी लोक कलाओं को दुनिया के स्तर पर अगर अपने नाटकों के ज़रिए ख्याति दिलाई तो हबीब तनवीर ने। छ्त्तीसगढ़ी भाषा को दुनिया हबीब साहब के चलते जानती है,जो 'चरनदास चोर' जैसे उनके महान नाटक की भाषा है। आज कितने संस्कृतिकमी ऎसे हैं, जिन्हें विदेशों मे इतना सम्मान मिला,जो योरप के उच्चतम संस्थानों से संबद्ध रहे, लेकिन अपनी माटी के अलावा जिनका न कोई आदि था न अंत, जैसा कि हबीब साहब का?


भोपाल गैस त्रासदी पर उनका नाटक २००२ में 'ज़हरीली हवा' नाम से खेला गया और इसी त्रासदी पर एक फ़िल्म जिसमें उन्होंने खुद अभिनय किया है, आने को है। इसी बीच अब वे हमसे विदा ले चुके हैं। हम सब उदास हैं। 'नया थियेटर' उनके बगैर भी ज़िंदा रहे, ये हम सबकी ख्वाहिश है।

प्रणय कृष्ण, महासचिव, जन संस्कृति मंच
राजेंद्र कुमार, अध्यक्ष, जसम, उत्तर प्रदेश







(ऊपर के चित्र: 'आगरा बाज़ार' के दो दृश्य)

6 comments:

Yunus Khan said...

हबीब तनवीर वाकई हमारे बर्तोल्‍त ब्रेख्‍त थे ।
उन्‍हें विनम्र श्रद्धांजली ।

Rangnath Singh said...

nhi janta ki in bhavuk kshano me meri is tippani ko aap log kaise lenge ??
fir bhi mai puri vinamrta se kahunga ki wo humare HABIB TANVIR the. unke vyaktitva par kisi aur ki pahchan grahan na lage to behtar. kya ye kum dukhad h ki kalidas aaj tak hartiy kitabo me bhi shakespear of india hi bane huye h.
kya hum whi hasra apne sabhi pratibhavo ka karne wale h

HABIB TANVIR ko vinamra shraddhanjali

Ek ziddi dhun said...

faasiwaad ke khilaf unka sangharsh unke kalaakar ko aur bhi bada bana deta hai.

मुनीश ( munish ) said...

Yes thats the picture ! At least i can't think of him without his pipe. Only a few know how to hold it buddy....only a few !

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

वाकई हबीब तनवीर जैसे शख्स का जाना थिएटर के लिए एक बड़ा सदमा है। इस उम्र में भी वे जिस ऊर्जा से भरपूर थे, वो अतुलनीय थी।

siddheshwar singh said...

नमन