Wednesday, July 8, 2009

एक थी ओरियाना फ़ल्लाची



इटली की ओरियाना फ़ल्लाची (२९ जून १९२९-१५ सितम्बर २००६) पत्रकारिता की दुनिया में विश्वविख्यात नाम है. बाद के दिनों में वे अपने महान और निडर राजनैतिक साक्षात्कारों के लिए जानी गईं. उन्होंने जिन बड़े नामों के इन्टरव्यू लिए उनमें दलाई लामा, हेनरी कीसिंगर, ईरान के शाह, अयातुल्ला खोमैनी, विली ब्रैन्ट, ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो, गद्दाफ़ी, फ़ेदेरिको फ़ेलिनी, यासिर अराफ़ात, आर्चबिशप मकारियोस, गोल्डा मेयर, इन्दिरा गांधी, स्यौन कोनरी और लेख वालेसा प्रमुख रूप से शामिल हैं. ओरियाना ने उपन्यास भी लिखे और इस्लामी राजनीति की विशेषज्ञ के तौर पर उन्हें बहुत प्रसिद्धि मिली.

१९७२ में उन्होंने हेनरी किसिंगर का इन्टरव्यू लिया था. कीसिंगर ने उसमें स्वीकार किया था कि वियेतनाम युद्ध एक "व्यर्थ युद्ध" था. कीसिंगर ने अपनी तुलना एक ऐसे काउब्वाय से की थी जो अपने घोड़े पर सवार होकर अकेला एक वैगन ट्रेन का नेतृत्व करता है.

इस इन्टरव्यू की याद करते हुए बाद में कीसिंगर ने लिखा था: "प्रेस के किसी भी सदस्य के साथ हुआ वह मेरे जीवन का सबसे नष्टकारी साक्षात्कार था."

अयातुल्ला खोमैनी को उन्होंने खुलेआम तानाशाह कहा था और १९७९ में तेहरान में इन्टरव्यू की इजाज़त देने से पहले खोमैनी के सिपहसालारों ने उनसे अपना सिर चादर से ढंकने को कहा था. इन्टरव्यू के दौरान उन की बातचीत का एक टुकड़ा बहुत विख्यात हुआ:

ओरियाना फ़ल्लाची - मुझे अभी आपसे बहुत कुछ पूछना है. मिसाल के लिए इस चादर के बारे में जिसे आपसे साक्षात्कार लेने के लिए मुझे पहनने को कहा गया था. ईरानी की औरतों को इसे पहनना ज़रूरी है. मैं फ़कत इस पोशाक की बात नहीं कर रही, मैं तो उन चीज़ों की बात करना चाहती हूं जिनकी तरफ़ यह संकेत करती है. यानी उस भेदभाव की तरफ़ जिसे ईरान की महिलाओं को क्रान्ति के बाद झेलना पड़ रहा है. वे पुरुषों के साथ विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ सकतीं, न उनके साथ काम कर सकती हैं. उन्हें अपनी चादर ओढ़े हुए यह सब अलग से करना होता है. आप मुझे बताइये आप चादर पहनकर स्विमिंग पूल में कैसे तैर सकते हैं?

अयातुल्ला खोमैनी- इस का आपसे कोई मतलब नहीं है. हमारी परम्पराओं को आपसे कोई सरोकार नहीं. अगर आप को यह इस्लामी पोशाक पसन्द नहीं है तो आप को इसे पहनने को कोई मजबूरी नहीं है चूंकि यह युवा स्त्रियों और सम्मानित महिलाओं के वास्ते है

ओरियाना फ़ल्लाची - आपकी बड़ी मेहरबानी है इमाम साहब! सो मैं इस बेवकूफ़ीभरे मध्ययुगीन चीथड़े को अभी उतार फेंकती हूं.

इस के बाद ओरियाना फ़ल्लाची ने वाक़ई अपनी चादर हतप्रभ इमाम के सामने उतार डाली थी.

(अगली पोस्ट में पढ़िये ओरियाना फ़ल्लाची ने मोअम्मर गद्दाफ़ी की कैसे क्लास लगाई थी)

7 comments:

VIMAL VERMA said...

९० के दशक में ओरियाना फ़लाची की एक रचना "अ लेटर टू अ चाइल्ड नेवर बोर्न" का नाट्यरूपांतरण देखा था दिल्ली में,तभी से उनका लेखन मुझे प्रभावित करता रहा है,शुक्रिया अच्छी जानकारी के देने के लिये।

सुशील छौक्कर said...

एक अच्छी जानकारी और एक अच्छे व्यक्तित्व से मुलाकात।

ravindra vyas said...

बहुत सुंदर । साहसिक, मारक और पत्रकारिता के कोनों की याद दिलाती एक जरूरी पोस्ट।

Rangnath Singh said...

ओरियाना का साहस प्रेरक है। पत्रकारिता के मौजूदा माहौल में तो उनकी रिलेवेंसी और भी बढ़ जाती है। अगली पोस्ट का इंतजार है।
अशोक जी से निवेदन है कि इस महान महिला पर सीरिज पोस्ट करें। जिससे उनक बारे में ज्यादा से ज्यादा जाना जा सके।

मुनीश ( munish ) said...

Bravo !

Unknown said...

अरे वाह!

Uday Prakash said...

बहुत ज़रूरी और साहसिक....