Wednesday, July 8, 2009
कर्नल गद्दाफ़ी पर ओरियाना फ़ल्लाची का हमला
(पिछली पोस्ट से जारी)
त्रिपोली, लीबिया, सोलह दिसम्बर १९७९
ओरियाना फ़ल्लाची: कर्नल, मैं चाहती हूं कि आपकी एक प्रोफ़ाइल तैयार करूं और मैं इसे एक तरह का मुकदमा चलाकर तैयार करना चाहूंगी, एक तरह का आरोपपत्र पेश करते हुए ताकि आपको समझ में आ सके कि आप को दुनिया में इतना कम पसन्द क्यों किया जाता है. वैसे क्या आपको मालूम है या मालूम था कि दुनिया में आपको किस कदर नापसन्द किया जाता है.
गद्दाफ़ी: मुझे वे लोग पसन्द नहीं करते जिन्हें लोग पसन्द नहीं किया करते हैं और वे भी जो स्वतन्त्रता के विरोध में हैं ...
ओरियाना फ़ल्लाची: मगर ज़रा देखिये न आपके बारे में क्या-क्या कहा जाता है ... हम्म्म, कहां से शुरू करें? सम्भवतः उस ख़ूनी अपराधी ईदी अमीन से आपकी दोस्ती. लोग पूछते हैं "कर्नल इस तरह के लोगों के दोस्त कैसे हो सकते हैं?"
गद्दाफ़ी: क्योंकि अमीन इज़राइल के विरोध में हैं. क्योंकि वे पहले अफ़्रीकी राष्ट्रपति हैं जिनके भीतर अपने देश से इज़राइलियों को लात मार कर बाहर निकालने की हिम्मत थी.
ओरियाना फ़ल्लाची: अगर अपने लोगों का कत्ल-ए-आम करने वाला एक तानाशाह सिर्फ़ इस वजह से कर्नल गद्दाफ़ी की दोस्ती का पात्र बन जाता है कि वह यहूदियों से नफ़रत करता है, तो कर्नल गद्दाफ़ी चालीस साल बाद पैदा हुए हैं. आपको तो तब पैदा होना चाहिये था जब हिटलर यहूदियों को मार रहा था. हां, हिटलर की और आपकी बहुत पक्की यारी जमती.
इस वार से तिलामिला कर बेबस गद्दाफ़ी यह कह कर रह गए: "अब हालात फ़र्क हैं. आज यहूदी फ़िलिस्तीनियों की धरती पर काबिज़ हैं."
इसी इन्टरव्यू में आगे जा कर मोअम्मर गद्दाफ़ी के राजनैतिक मैनिफ़ैस्टो का मखौल बताते हुए ओरियाना ने कहा था कि वह इतना छोटा है कि उनकी पाउडर पफ़ की डिबिया में अट जाएगा.
(अगली पोस्ट में ओरियाना के शानदार गद्य की एक बानगी)
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21 comments:
वाह! फोटो में गद्दाफी पूरे अमिताभ बच्चन लगते हैं!
यह तो बताते यह ओरियाना फल्लाची है कौन।
माफ़ करें सुब्रमण्यम साहब, मैंने पिछली पोस्ट का रेफ़रेन्स लगाना चाहिए था. अब लगा रहा हूं. ग़लती की तरफ़ ध्यान दिलाने का शुक्रिया!
अशोक जी, पिछले पोस्ट की कड़ी देने के लिए आभार। थोड़ी गलती मेरी भी है, पिछले पोस्ट देख लेना चाहिए था मुझे।
ऐसी ही जानकारी से भरी अगली पोस्ट का इंतजार।
अब तक की पोस्टों से ओरियाना फल्लाची के बारे में एकतरफा तस्वीर बन रही है. मेरे ख़याल से उन पर गार्डियन में छपी यह ओबिचुअरी भी साथ में पढ़ी जानी चाहिए:
http://www.guardian.co.uk/news/2006/sep/16/guardianobituaries.italy
..
आशु भाई
ऐसा नहीं कि मुझे इस सब का पता नहीं पर मेरा ठोस यकीन है कि इसके पीछे एक पूरी लॉबी काम कर रही थी जो ओरियाना के साहस और उसकी प्रतिभा को पचा पाने में अपने को अटपट महसूस कर रही थी. पहली बात यह कि वह एक महिला थी और दूसरी यह कि वह इतालवी थी. मैं आपको ऐसे सैकड़ों लिंक भेज सकता हूं जहां इस बात की तस्दीक की गई है.
मैं चीज़ों को उनकी फ़ेस वैल्यू पर देखे जाने का कतई हिमायती नहीं हूं.
इन्टरव्यू जैसे भी थे, अगली पोस्ट में उसके गद्य को देखियेगा. उसके एक उपन्यास का अनुवाद कर रहा हूं आजकल.
वह अनुवाद ही इन पोस्ट्स की वजह बना.
वाह अशोक जी!गद्य का इंतजार है।
दरअसल ठीक यही तर्क दूसरा पक्ष भी दे सकता है. बेशक फल्लाची प्रतिभाशाली थीं लेकिन उनके परवर्ती विचारों पर गौर करना भी बहुत ज़रूरी होगा. सिर्फ प्रतिभाशाली होना ही काफी नहीं, बेहतर इंसान होने की भी उतनी ही दरकार है. फल्लाची ने मुसलमानों के लिए जिस भाषा और भावना का परिचय दिया, कम से कम उन्हें हजम कर पाना बहुत मुश्किल है. हैरानी की बात है की नास्तिक होने के बावजूद उन्होंने किसी धर्मविशेष पर इतनी घृणा के साथ कैसे कलम चलायी होगी! बहरहाल मेरा भी फल्लाची के बारे में यह सरसरी नजरिया है. उम्मीद है तुम्हारी ही तरफ से उसके गद्य के उन हिस्सों का भी अनुवाद आएगा जिसकी वजह से वो इतनी विवादस्पद बनीं.
मैं बीते बीस बरसों से ओरियाना का फैन हूं और उनके कई पोस्टर बना कर साथी पत्रकारों को दे चुका हूं।
ओरियाना जबर्दस्त पत्रकार थीं। हमारे यहां उनके मुकाबले का कोई नहीं। पद्मश्री पाईं एक अंग्रेजी चैनल की महिला पत्रकार उनकी फूहड़ नकल करती नज़र आती हैं। अधेड़ होती इस महिला को ओरियाना की कतार में सौवे नंबर पर भी नहीं रखा जा सकता।
यह पेशकश भी अच्छी रही।
Thanx for the slice of Italy. La Dolce Vita!
Whay a coincidence Munish Bhai. I watched the Fellini classic this evening!
शास्त्रों में सत्संग के लाभ के बारे में पढ़ा था। कबाड़खाना पर आकर इस बात का मर्म ज्यादा समझ पाया।
ओरियाना को लेकर हो रही क्रिया-प्रतिक्रया से हमारे सामान्य ज्ञान में सुखद बढ़ोत्तरी हो रही है।
ajit ji aapke sahsik bayan ke liye badhayi...
Ashok bhai wish we had an auditorium where we could share classics of our choice with Kabaad fraternity. Let us hold a 3 days film festival Ashok bhai! Pls. keep this film for me.
अशोकजी, फल्लाची के गद्य का इंतजार रहेगा। कबाड़खाना पर जितनी वैविध्यपूर्ण, स्तरीय और पठनीय सामग्री पढ़ने को मिल रही है उतनी अन्यत्र नहीं।
रवीन्द्र भाई
जल्दी आ रहा है फ़ल्लची का गद्य. शायद आज शाम तक ही.
शुक्रिया ज़र्रानवाज़ी का.
अच्छी पोस्ट!
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