Thursday, August 13, 2009

यारोस्लाव साइफ़र्त की दो प्रेम कविताएं

अपनी परवर्ती कविताओं में साइफ़र्त भीषण अकेलेपन का ज़िक्र करते हैं अलबत्ता उम्मीद हमेशा पार्श्व में एक लौ की मानिन्द जगमग करती रहती है. एक कविता में वे लिखते हैं:

सबसे बुरा समय मेरे पीछे रह गया
- मैं बताता हूं ख़ुद को - मैं अभी से बूढ़ा हो चुका हूं.
सबसे बुरा समय अभी आने को है,
मैं अब भी ज़िन्दा हूं.
लेकिन अगर तुम वाक़ई जानना चाहते हो, तो बताता हूं
मैं ख़ुश था
कभी कभी एक पूरे दिन, कभी एक पूरे घन्टे,
और कभी कुछ मिनटों के वास्ते.

इतना बहुत है.


हालांकि साइफ़र्त अपनी लम्बी कविताओं के लिए जाने जाते हैं जिनमें 'प्लेग स्तम्भ', 'रिले टावर' और 'चार्ल्स सेतु से' इत्यादि बहुत विख्यात हुई हैं, पर इतनी लम्बी कविताओं को यहां लगा पाना सम्भव नहीं होता.

आज इस सीरीज़ के अन्त में उनकी दो प्रेम कविताएं




लड़कियों के बारे में एक गीत

शहर से होकर गुज़रती है एक विराट नदी
सात पुल उस पर सवार.

किनारे किनारे टहलती हैं एक हज़ार सुन्दर लड़कियां
उनमें से कोई भी दो नहीं हैं एक जैसी.

प्रेम की महान ऊष्माभरी लपट में
अपने हाथों को गर्माते तुम गुज़रते हो एक दिल से दूसरे में.

किनारे किनारे टहलती हैं एक हज़ार सुन्दर लड़कियां
वे सारी हैं एक जैसी.

लड़कियों की शमीज़ों का नाच

तार पर झूल रही हैं
लड़कियों की दर्ज़नभर शमीज़ें -
सीनों पर कढ़े हुए फूल
किसी गोथिक गिरजाघर की खिड़कियों जैसे.

ईश्वर
मुझे बचाना सारी बुराइयों से!

लड़कियों की एक दर्ज़न शमीज़ें
- प्यार हैं वे
धूप से रोशन लॉन पर मासूम लड़कियों का खेल
तेरहवीं एक आदमी की कमीज़
- विवाह है वह -
समाप्त होता धोखे और पिस्तौल की गोली में.

हवा जो गुज़र रही है शमीज़ों से
- प्यार है वह
हमारी धरती उसके मीठे आग़ोश में
एक दर्ज़न हवादार शरीर
पतली हवा से बनी वे दर्ज़नभर लड़कियां
नाच रही हैं हरे लॉन पर
हवा बड़ी मुलायमियत से ढाल रही है उनकी देहों को
वक्ष, नितम्ब, वो वहां पेट पर नन्हा सा गड्ढा -
जल्दी खुलो, अरी मेरी आंखो!

उनके नृत्य में दख़ल ने देता हुआ
मैं आराम से चला गया उन शमीज़ों के घुटनों तले
और जब भी उनमें से कोई गिरती नीचे
मैं सूंघता था उसे दांतों से
काटता हुआ उसका वक्ष

प्यार,
जिसे हम सांस में लेते हैं और ज़िन्दा रहते हैं
टूटते जादु के साथ
प्यार,
जिसके भीतर ताले में बन्द हैं हमारे सपने
प्यार,
जो भागता है
हमारे उत्थान और पतन के पीछे-पीछे
- कुछ भी नहीं होता प्यार
तो भी वह निचोड़ होता है सारी चीज़ों का.

हमारी इस विद्युतीकृत दुनिया में
सनकें हैं, नाइटक्लब और बपतिस्मे हैं
और टायरों में भरा जाता है प्यार

ओ मेरी पापी माग्दालेना! रोओ मत
जला चुका आदमी अपनी सारी आगों को
रूमानी प्यार, विश्वासों,
मोटरसाइकिलों और उम्मीदों को.

1 comment:

sanjay vyas said...

शुक्रिया आपका. विश्व कविता के एक बड़े कवि और उतनी ही बड़ी कविताओं को यहाँ पढ़वाने का.
इनकी एक कविता 'कभी- कभी' विशेष याद रहेगी. सच में हम कई बार स्मृतियों की मोटी मोटी रस्सियों से आजाद नहीं हो पाते.
इसी में यहूदी कब्रिस्तान का भी ज़िक्र है. क्या ऐसा कवि अपने शहर के व्यक्तित्व के एक अंश के बारे में अनायास ही बता रहा है या इसका सम्बन्ध यहूदियों के साथ ऐतिहासिक भेदभाव से भी है? आखिर चेक पर भी यहूदियों की अनाम सामूहिक कब्रों के रूप में रक्त रंजित धब्बा तो है.