Thursday, August 13, 2009

'चरणदास चोर' की भूमिका का एक ज़रूरी अंश



वाणी प्रकाशन से प्रकाशित 'चरणदास चोर' (२००४ संस्करण) की हबीब तनवीर द्वारा लिखित भूमिका का एक अंश प्रस्तुत है, ताकि पाठक खुद निर्णय कर सकें कि हबीब साहब का सतनामी समुदाय से क्या रिश्ता था. जबसे सहमत, बहुरूप, जन संस्कृति मंच, इप्टा, प्रलेस, जलेस आदि ने प्रतिबंध का विरोध किया है, तबसे रायपुर से ब्लॉग दुनिया में रिपोर्टें आ रही हैं कि नाटक प्रतिबंधित नहीं हुआ है, किताब या उसकी भूमिका ही प्रतिबंधित है. बहरहाल इन रिपोर्टों में किसी आधिकारिक स्रोत का हवाला नहीं दिया गया है, जबकि हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स अफ़ इंडिया आदि में नाटक खेलने पर भी प्रतिबंध की बात स्पष्ट रूप से कही गई है. बहरहाल यह उद्धरण उसी भूमिका से ही है -

" ... मैने दर्शकों से कहा कि 'हम एक नया नाटक तैयार करने जा रहे हैं. अभी यह दिमाग के कारखाने से पूरी तरह नहीं निकला है, और न ऐक्टरों की तैयारी अभी पूरी हुई है, फिर भी यह देखते हुए कि इस मंचन की आयोजक एक सतनामी संस्था है, और यहां सतनामी दर्शक हज़ारों की संख्या में जमा हैं, और हमारे नाटक का आधार 'सतनाम' धर्म है, अगर आप कहें तो हम इस अधपके नाटक को भी अभी प्रस्तुत कर दें!'. सबने एक आवाज़ हो कर कहा 'हो!, ज़रूर दिखाओ,हम मन ला कोई जल्दी नई है! अभी भोर कहां हुए है?' प्रतिबन्ध, विरोध

विजयदान ने अपनी कहानी में चोर को कोई नाम नहीं दिया है. हम नाम सोचने में लगे थे. पहले सोचा चोर मरने के बाद अमर हो जाता है, क्यों न उसका नाम 'अमरदास' रखें.पंथियों ने कहा, " ये नाम नहीं हो सकता, अमरदास नाम के हमारे एक गुरू गुज़रे हैं." हमने दूसरा नाम तज़वीज़ किया. ये दूसरे गुरू का नाम निकला. आखिर हमने भिलाई के शो के लिए 'चोर चोर' नाम रख दिया, और आगे चलकर 'चरणदास' रख दिया. नाचा पार्टियों में हमारे साथ वर्कशाप में धमतरी के अछोटा गांव की नाचा पार्टी भी थी, उसके लीडर थे रामलाल निर्मलकर. अच्छे कामिक ऐक्टर थे. उनसे कहा,चोर की भूमिका में खड़े हो जाओ.

मैनें दर्शकों से कहा, 'हो सकता है कि बीच में उठकर मुझे किसी अभिनेता की जगह ठीक करना पड़े या संवाद में मदद करना पड़े, तो आप लोग कृपया इस बात को नज़र अन्दाज़ कर दीजिएगा'. बिलकुल यही हुआ.मुझे न सिर्फ़ एकाध बार उठकर किसी सैनिक की मंच पर जगह ठीक करनी पड़ी क्योंकि आगे चलकर इसके कारण सीन में बाधा पड़ने का अंदेशा था, बल्कि बीच बीच में आर्केस्ट्रा के साथ बैठकर खुद गाने भी गाता रहा. गाने उस वक्त तक नहीं लिखे गए थे. मैनें पंथी गीतों की एक छोटी सी पुस्तक अपने पास रख ली थी. साजिंदे हमारे अपने साथ थे ही,बस मैं गाता रहा, कोरस में गाने वाले कलाकार दोहराते रहे, और इस तरह कोई ४५-५० मिनट में नाटक समाप्त हुअ तो मैदान तारीफ़ और तालियों से देर तक गूंजता रहा.

मुझे दर्शकों की राय मिल गई थी, उन्होंने नाटक को अपनी कच्ची शैली और बाकी सब कमज़ोरियों के बावजूद पसंद कर लिया था. दर्शकों में सभी लोग पंथी थे और पंथियों का बुनियादी उसूल है - 'सत्य ही ईश्वर है, ईश्वर ही सत्य है.' यही उसूल उनके रोज़मर्रा के पारंपरिक गीत में भी है, और उसी गीत पर हमने नाटक खत्म किया था. बाकी ये सब देख सुन कर उनकी भावुकता उबल पड़ी थी. इस भावुकता का एक कारण यह भी हो सकता है कि उन्ही के पंथ का एक व्यक्ति नाटक का नायक था जिसे नाटकों में पहले कभी नहीं देखा गया था. पंथ की स्थापना के पहले गुरू घासी दास स्वयं एक डाकू थे. शूद्र वर्ग के लोगों ने सतनामी धर्म अपनाया तो उन्होंने समाज में उनकी अत्महीनता दूर करने के लिए उन्हे जनेऊ पहनने का आदेश दिया. इन तमाम चीज़ों के बावजूद आज तक उनका मुकाम गांव के बाहर है. उनका कुआं, उनका पानी समाज से अलग है, इन्हीं कारणों से सतनामियों में अपने धर्म के प्रति जोश होता है. वे अपनी सुरक्षा के लिए लाठी चलाने में भी निपुण होते हैं और जहां तक अपने अधिकारों के लिए लड़ने का संबंध है, तो इतिहास सैकड़ों साल से उनके आंदोलनों, उनके संघर्ष से भरा पड़ा है."

(यह सामग्री मुझे मेल पर जसम से जुड़े मित्र मृत्युंजय के मार्फ़त प्राप्त हुई है. मेल के अन्त में वे लिखते हैं: "तो मित्रो, ये है हबीब साहब के खयालात सतनामी समुदाय के प्रति, ममता और सम्मान से ओत-प्रोत." मृत्युंजय का आभार.)

7 comments:

प्रीतीश बारहठ said...

इस ब्लॉग पर पर्याप्त संख्या में पत्रकार मित्रों के होते हुए क्या यह संभव नहीं कि इस विवाद पर छत्तीसगढ़ सरकार और सतनामी संप्रदाय के मठाधीशों का अधिकारिक बयान उगलवाया जाये। इस के बाद ही आंदोलन की रूपरेखा निर्धारित हो सकेगी। आप एक साझा विरोध पत्र तैयार करें तो हम भी हमारे राज्य के माध्यम से राष्ट्रपति तक भिजवाने को आतुर हैं।

Sanjeet Tripathi said...

चूंकि रायपुर में पत्रकार हूं। इसलिए यह जानकारी है कि न तो इस नाटक के मंचन पर रोक थी/ है, न ही इस नाटक के किताब पर।
दर-असल छत्तीसगढ़ शासन 3 अगस्त से 9 अगस्त तक स्कूलों में छात्रों के बीच किताबों के प्रति रूचि बढ़ाने के लिए पुस्तक वाचन सप्ताह मनाता है। इस साल इस वाचन सप्ताह के लिए चरणदास चोर नाटक की किताब भी शामिल की गई थी। बकायदा 7 हजार प्रति खरीद भी ली गई थी। लेकिन इसी बीच सतनामी समाज के प्रतिनिधियों नें ुख्यमंत्री/शिक्षामंत्री आदि से मुलाकात की और अपनी आपत्ति दर्ज कराई। इसके बाद शिक्षा विभाग से एक परिपत्र जारी हुआ जिसमें कहा गया था कि
पुस्तक वाचन सप्ताह के दौरान इस किताब का वाचन न किया जाए। अर्थात सिर्फ़ पुस्तक वाचन सप्ताह के दौरान इस किताब के वाचन पर प्रतिबंध लगाया गया। इस परिपत्र में यह कहीं भी उल्लेखित नहीं था कि इस किताब की खरीद-फरोख्त पर प्रतिबंध है या इस नाटक के ही मंचन पर प्रतिबंध है। फिर यह हल्ला क्यों मचा कि नाटक पर प्रतिबंध है, अपनी समझ से बाहर है।
छत्तीसगढ़ के एक प्रमुख दैनिक अखबार देशबन्धु में ललित सुरजन जी ने बकायदा एक विशेष संपादकीय लिखकर यही बात कही है।
यह भी हैरत की बात है हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स अफ़ इंडिया ने नाटक नाटक खेलने पर प्रतिबंध की बात कैसे कह दी।

मुनीश ( munish ) said...

@ Sanjeet Tripathi -- That is why i always suspected this news item and sought a clarification from a 36 garh based journo .There is no reason to doubt you .What a waste of time and energy !

Anil Pusadkar said...

छत्तीसगढ पर जिन मुद्दो को लेकर बहस होनी चाहिये वो तो होती है नही बेवजह विवाद खड़े किये जाते है।इस विवाद पर अब सरकार भी चिल्ला-चिल्ला कर कह रही कोई प्रतिबंध नही है।नक्सल प्रभावित क्षेत्र मे आठ आठ लोगो को ज़िंदा जला दिया जाता है जिनमे एक दो साल की दुधमुंही बच्ची भी है।इस पर कंही कोई शोर नही।पुलिस उस ईलाके मे अड़तालिस घंटे तक़ पंहुच नही पाती कोई आवाज़ नही,पंद्रह जवान नक्सल ईलाके मे पोस्टिंग पर जाने से अच्छा सस्पेंड होना पसंद करते हैं,ए एस पी कोर्टे से स्टे लेकर घर बैठ जाते हैं,कोई शोर नही।एक नाट्क पर प्रतिबंध लगा या नही हल्ल्ला सारे देश मे मच हुआ है।हबीब ने सही माय्ने मे मुक्तिबोध के बाद छत्तीसगढ को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान दिलाई है,हम सब उनके ॠणी है और रहेंगे।

प्रीतीश बारहठ said...

संजीत जी,

आपका आभार !

मैं उनमें से नहीं हूँ जो आहत होने को तैयार बैठे रहते हों, लेकिन जो साथी उत्तेजित हो रहे थे वे अविश्वास करने लायक नहीं हैं। लेकिन एक प्रश्न था कि सरकार का बयान या उसका पक्ष, या वास्तव में हुआ क्या है कुछ भी सामने नहीं आ रहा था। आपका पुनः शुक्रिया ।

Unknown said...

On http://timesofindia.indiatimes.com/NEWS/India/Raman-govt-bans-Tanvir-classic-Charandas-Chor/articleshow/4854396.cms Chor' story filed by
Suchandana Gupta, TNN on 4 August 2009, 02:30am IST says, "The Raman Singh-led BJP government’s ban on the book and the staging of the play came on Saturday following protests by the Satnami community, which alleges that it insults their leader, Guru Ghasidas. The government has decided to withdraw all copies of the book from libraries and educational institutions

Unknown said...

On http://www.hindustantimes.com/StoryPage/StoryPage.aspx?sectionName=nletter&id=ad4622e2-14fa-4758-9560-988d1d07029f&Headline=Chhattisgarh-bans-Habib-Tanvir-s-masterpiece-EMCharandas-Chor-EM, story filed by
Ejaz Kaiser, Hindustan Times
Raipur on August 01, 2009
First Published: 20:32 IST(1/8/2009)Last Updated: 20:39 IST(1/8/2009) says
"The education minister took the decision to remove the objectionable part of the book and it was later decided not only to ban the book but also impose a ban on the play or drama based on it anywhere in the state.
The state education secretary Nandkumar told Hindustan Times that the ‘controversial’ book Charandas Chor would be banned in the state from Saturday. “We will also withdraw the book from all libraries in the state,” he said"