Saturday, August 29, 2009

निरभय निरगुन गुन रे गाऊँगा



निरभय निरगुन गुन रे गाऊँगा ।
मूल कमल दृढ आसन बांधूं जी, उलटी पवन चढाऊंगा ॥
मन ममता को थिर कर लाऊं जी, पाँचों तत्व मिलाऊँगा ॥
इंगला, पिंगला, सुखमन नाड़ी जी, तिरवेनी पर हौं न्हाऊंगा ॥
पांच पचीसों पकड़ मंगाऊं जी, एक ही डोर लगाऊँगा ॥
शून्य शिखर पर अनहद बाजे जी, राग छत्तीस सुनाऊँगा ॥
कहत कबीरा सुनो भाई साधो जी, जीत निशान घुराऊँगा ॥

4 comments:

मुनीश ( munish ) said...

आभार !! सौ बार !

anurag vats said...

bahut achhe... kaise yaad aai iski...mujhse pichle dino kumarji ka sangeet kho gaya...usmen yah bhi tha...:)...

Yunus Khan said...

कुमार गंधर्व को सुनने के लिए अपन कुछ भी कर सकते हैं जी । ये रचना अपने मोबाइल पर कूकती है

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बहुत आभार।