निरभय निरगुन गुन रे गाऊँगा ।
मूल कमल दृढ आसन बांधूं जी, उलटी पवन चढाऊंगा ॥
मन ममता को थिर कर लाऊं जी, पाँचों तत्व मिलाऊँगा ॥
इंगला, पिंगला, सुखमन नाड़ी जी, तिरवेनी पर हौं न्हाऊंगा ॥
पांच पचीसों पकड़ मंगाऊं जी, एक ही डोर लगाऊँगा ॥
शून्य शिखर पर अनहद बाजे जी, राग छत्तीस सुनाऊँगा ॥
कहत कबीरा सुनो भाई साधो जी, जीत निशान घुराऊँगा ॥
4 comments:
आभार !! सौ बार !
bahut achhe... kaise yaad aai iski...mujhse pichle dino kumarji ka sangeet kho gaya...usmen yah bhi tha...:)...
कुमार गंधर्व को सुनने के लिए अपन कुछ भी कर सकते हैं जी । ये रचना अपने मोबाइल पर कूकती है
बहुत बहुत आभार।
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