Saturday, October 17, 2009

जिन्दा रहे उजास की आस !


आप अगर पूछेंगे कि त्योहरों पर क्या करना चाहिए तो मैं यही कहूँगा कि वही करना चाहिए जो कि करना आना चाहिए। पता नहीं मुझे कविता लिखनी / करनी आती है कि नहीं लेकिन आज जब घर के सभी सदस्य अपने काम में लगे थे तो यह कबाड़ी भी अपने काम में लगा था। 'उजास' सीरीज की कुछ कवितायें बन - सी गईं जिनमें एक को , सभी कबाड़ियों की अनुमति की प्रत्याशा में यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ।हालाँकि ऐसा करते हुए यह भान है 'कबाड़ख़ाना' पर कबाड़ी लोग खुद की कवितायें नहीं लगाते हैं. तो हे कबाड़ियों ! अगर मैंने ( अलिखित ) नियम तोड़ा है तो माफी देवो और दीपावली की मुबारक़बाद लेवो ! और हाँ , ठिकाने के सभी पाठकों को शुभ दीपावली ! हैप्पी भैया दूज !


उजास

हर ओर एक गह्वर है
एक खोह
एक गुफा
जहाँ घात लगाए बैठा है
अंधकार का तेंदुआ खूंखार.
द्वार पर जलता है मिट्टी का दीपक एक.
जिसकी लौ को लीलने को
जीभ लपलपाती है हवा बारंबार.

बरसों - बरस से
चल रहा है यह खेल
तेंदुए के साथ खड़ी है
लगभग समूचे जंगल फौज
और दिए का साथ दिए जाती है
कीट - पतंगों की टुकड़ी एक क्षीण
जीतेगा का कौन ?
किसकी होगी हार ?

हमारे - तुम्हारे दिलों में
जिन्दा रहे उजास की आस
और आज का दिन बन जाए खास !

( 'उजास' सीरीज की और दो कवितायें 'कर्मनाशा' पर )

7 comments:

Udan Tashtari said...

अजी ऐसे नियम आप रोज तोड़ें..बेहतरीन रचना!!

सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

सादर

-समीर लाल 'समीर'

Chandan Kumar Jha said...

उजास की आस हमेशा बनी रहेगी । दीपावली की शुभकामनायें ।

मनीषा पांडे said...

सुंदर!

अर्कजेश Arkjesh said...

वाह ! बनी रहे उजास की आस
इस आस में भी है उजास ।

अति सुन्दर ।

हर ओर एक गह्वर है
एक खोह
एक गुफा
जहाँ घात लगाए बैठा है
अंधकार का तेंदुआ खूंखार.

वाणी गीत said...

उजास की आस लिए इस पर्व की हार्दिक शुभकामनायें ..!!

अमिताभ मीत said...

बहुत सुन्दर.

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

...तेंदुए के साथ खड़ी है
लगभग समूचे जंगल फौज
और दिए का साथ दिए जाती है
कीट-पतंगों की टुकड़ी एक क्षीण...

बहुत प्रभावी पंक्तियाँ!

हार-जीत के बारे में निदा साहब का एक शेर याद आता है-

मैदाँ की हार-जीत तो किस्मत की बात है
टूटी है किसके हाथ में तलवार देखना.

आज ही लौटा हूँ गाँव से माँ और बेटी से मिलकर.. यहाँ ये सुन्दर रचना पढ़ने को मिली. बहुत ख़ूब! ज़ोरों से बधाई!